शशिकांत गुप्ते
देश आगे बढ़ रहा है। सन 2014 के पूर्व नहीं बढ़ रहा था। कारण तब जिनके हाथों देश की बागडौर थी उन्हें देश को आगे बढाने का इल्म नहीं था।
पिछले आठ वर्षों से देश आगे बढ़ रहा है।
देश की जनता ने बहुत ही सोच समझकर अपने विवेक को पूर्ण रूप से जागृत कर सन 2014 में अभूतपूर्व परिवर्तन किया है।
इस अभूतपूर्व परिवर्तन का श्रेय देश के कुल मतदाताओं में लगभग 39℅ मतदाताओं को है।
शेष 61% चाहते ही नहीं है परिवर्तन हो?
परिवर्तन करने के लिए कुछ चमत्कारिक नुस्ख़े आजमाने पड़ते है।
एक सेवनिवृत्त फौजी को इंग्लिश में Hire किया गया। सम्पूर्ण देश में ऐसा माहौल बनाया गया कि एक ओर सिर्फ और सिर्फ पाकसाफ सियासतदान है,दूसरी ओर सब, क्या कहा जाए कहने में भी संकोच होता है।
बहरहाल सम्भवतः फौजी को कुछ समयावधि के लिए hire किया गया होगा। ऐसा विरोधियों का आरोप है?
Hire की समयावधि पूर्ण होने पर फौजी, राजनैतिक परिदृश्य से अदृश्य हो जाता है।
सेवनिवृत्त फौजी निहायत ही प्रामाणिक व्यक्ति है। फौजी ने देश को भ्रष्ट्राचार मुक्त करने का संकल्प लेते हुए आंदोनल शुरू किया।
इस फौजी के सहयोग में सेवानिवृत पुलिस की एक आला दर्जे की अधिकारी,कानूनविद साहित्यकार, समाजसेवी और कुछ एनजीओ के संचालक जुट जातें हैं।
इस आंदोलन का नतीजा बहुत ही चमत्कारिक निकला।
एनजीओ संचालकों ने समझदारी का परिचय देते हुए। हाथों में झाड़ू थामें पहले दिल्ली में ‘हाथ” की सफाई की साथ ही कीचड़ में फलने फूलने वाले फूल की थोड़ी बहुत पहचान बरकरार रखी।
झाड़ू कितनी महत्वपूर्ण है, यह
कवि महोदय,कानूनविद और समाजवादी विचारक, किसान नेता को अच्छे से समझ में आ गया। झाड़ू सिर्फ कचरा ही साफ नहीं करती है। अतिविशिष्ट सलाहकारों को दूध में से मख्खी की तरह निकाल भी देती है।
सन 2014 के राजनीति मुक्त और मुफ्त शब्दों को व्यवहारिकता में लाने का प्रयास होने लगा।
रेवड़ी,मुफ्त शब्द का पर्यायवाची बन गया।
जिस दल से देश को मुक्त करने के लिए ढिंढोरा पीटा गया उसी दल के जो लोग भ्रष्ट्राचार की दलदल में फंसे थे। उन्हें बगैर किसी संकोच के अपने दल में शरीक कर अपने साथ बैठाने के लिए उनके गले में लटका तिरंगा दुपट्टा हटाकर उसकी जगह दुरंगी दुपट्टा पहनाया गया। दुरंगी दुपट्टा गले में लटकाते ही भ्रष्ट्राचार में गले तक डूबे हुए एकदम प्रवित्र हो गए।
उपर्युक्त पवित्र नुस्ख़े अपनाते हुए देश को आगे बढाया जा रहा है।
देश कितना आगे बढ़ा है यह तो बेरोजगरों की बढ़ती संख्या से, आकाश को छूने के प्रयास में महंगाई को देखते हुए, ज्ञात हो जाते है। सबसे बड़ा उदाहरण तो रुपये की दौड़ है। रुपया शतक बनाने के लिए आतुर है।
सच में देश को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता है।
सम्भवतः देश भी बुलबुल के पंखों पर सवार होकर आगे बढ़ रहा है।
अच्छे दिनों में सब सम्भवः है।
पहली बार सब मुमकिन हो रहा है।
भाइयों और बहनों सब कुछ पहली बार मुमकिन हो रहा है या नहीं हो रहा है?
शशिकांत गुप्ते इंदौर