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*स्त्रीप्रधान समाज : हर जगह नारी, फिर भी रोये बेचारी*

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        ~ प्रखर अरोड़ा

विद्यार्थी मुर्गा ही क्यों बनता है,
विद्यार्थिनी मुर्गी क्यों नहीं?
बलि के लिए बकरा ही क्यों,
बकरी क्यों नहीं?

बिल्ली मौसी होती है तो,
बिल्ला मौसा क्यों नहीं होता?
लोमड़ी चालाक होती है,
तो लोमड़ा क्या होता है?

बीन बजने पर पगुराने का हक़ भैंस को,
भैंसे को क्यों नहीं?
गली से हाथी के गुजरने ने पर भौकने काम कुत्तों को,
कुतिया की छुट्टी क्यों?

कुत्ते की दुम कभी सीधी नहीं होती. कुत्ते पर ही तंज,
कुतिया की दुम सीधी होती है क्या ?
चोर चोर मौसेरे भाई,
तो चोरनी-चोरनी कौन ?

बेवकूफी करने पर कहा जाता है तुम गधे हो,
गधी ने क्या पीएचडी किया है?
नागिन डांस : डांस सिर्फ नागिन को ही क्यों सिखाया गया ?
नाग इस आर्ट से वंचित क्यों?

रंगीन तो तितला भी होता है.
सारी तारीफें तितलियों को क्यों ?
रंग हमेशा गिरगिट ही बदलता है,
गिरगिटनी क्या संत होती है?

नारी हॉउस वाईफ तो नर हसबैंड (हॉउस का बैंड) क्यों?
स्त्री के लिए 16 श्रृंगार,
पुरुष के लिए क्यों नहीं?

नर को कमतर और मादा को श्रेष्ठ माना जाता है समाज में. समाज तो स्त्री प्रधान है, इसे पुरुष प्रधान बताकर पुरुषो पर व्यंग्य क्यों?

अभी जल्दी में हूँ
इसलिए
बाकी मुद्दे बाद में.

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