अग्नि आलोक

सबके सतत विकास के लिए ज़रूरी है नारीवादी व्यवस्था

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शोभा शुक्ला – सीएनएस

एक ओर तो हमारी सरकारें सतत विकास की बात करने से नहीं थकती हैं, परंतु दूसरी ओर, जो वैश्विक व्यवस्था है – उसके तहत – सतत विकास लक्ष्यों के ठीक विपरीत कार्य करती हैं। मौजूदा वैश्विक व्यवस्था में प्राकृतिक संसाधनों के अनियंत्रित दोहन को ‘विकास’ के नाम पर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है, धन और शक्ति अत्यंत कम लोगों के पास केंद्रित करने को ‘विकास’ से जोड़ा जाता है, सार्वजनिक सरकारी सेवाओं के निजीकरण को ‘विकास’ का चोला पहनाया जाता है, जिसके फलस्वरूप अधिकांश लोग सेवाओं के अभाव में और हाशिये पर रहने को मजबूर हो गये हैं और अनेक प्रकार के मानवाधिकार हनन और हिंसा के शिकार होते हैं।

हम जिस पितृसत्तात्मक, सैन्यीकृत और लालच से प्रेरित दुनिया में रह रहे हैं, उसमें हर जेंडर के इंसान के लिए बराबरी की बात करने की जगह भी नहीं रह गई है। ऐसी जन-विरोधी व्यवस्था का सामूहिक रूप से विरोध होना चाहिए और पूंजीवाद नहीं वरन् नारीवाद पर आधारित वैश्विक व्यवस्था की स्थापना होनी चाहिए। इसीलिए यही केंद्रीय विचार है 2024 के एशिया पेसिफ़िक फेमिनिस्ट फोरम का।

नारीवादी वैश्विक व्यवस्था क्या है?

नारीवादी व्यवस्था का मतलब है एक अलग तरह का विकास मॉडल होना जो सामाजिक रूप से न्यायसंगत और सभी के लिए पारिस्थितिक रूप से टिकाऊ हो। वर्तमान पितृसत्तात्मक व्यवस्था कुछ लोगों को सत्ता हासिल कराने के लिए, अधिकांश लोगों के खिलाफ शक्ति और हिंसा का उपयोग करती हैं। इसके विपरीत नारीवाद, शक्ति को साझा करने और पुनर्वितरित करने के लिए देखभाल और एकजुटता का उपयोग करता है।

अपने निजी अनुभव साझा करते हुए इंडोनेशिया की प्रवासी श्रमिक एनी लेस्तरी जो वर्तमान में वैश्विक प्रवासी श्रमिक समूह (इंटरनेशनल माइग्रेंट्स अलायन्स) की अध्यक्ष हैं, कहती हैं कि “मैं दो दशकों से भी ज़्यादा समय से महिला प्रवास और नारीवादी आंदोलनों से जुड़ी रही हूँ। मैंने देखा है कि कैसे नवउदारवादी वैश्वीकरण ने संरचनात्मक शोषण को और तेज़ कर दिया है और कैसे हर नया संकट और भी ज़्यादा ग़रीबी, विस्थापन और बेरोज़गारी लेकर आता है। मैं खुद 1997 के एशियाई वित्तीय संकट के कारण एक प्रवासी के तौर पर अपने देश इंडोनेशिया से बाहर चली गई थी। उस समय, मैंने और मेरे सहकर्मियों ने सोचा था कि यह विस्थापन एक क्षणिक घटना होगी। लेकिन दुख की बात है कि तब से ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को विस्थापित होने के लिए मजबूर होना पड़ा है क्योंकि प्रवास कई पूंजीवादी देशों के लिए आर्थिक विकास परियोजना का हिस्सा बन गया है। आज, प्रवासियों की संख्या लगभग 30 करोड़ तक पहुँच गई है।”

एनी कहती हैं कि “नारीवादी दुनिया में हर देश में ऐसा आर्थिक और राजनीतिक माहौल होगा, जहां सभी के साथ समानता के साथ उचित व्यवहार किया जाएगा और जहां किसी को जीवनयापन करने के लिए पलायन या विस्थापन नहीं करना पड़ेगा। नारीवादी दुनिया वह दुनिया है, जहां महिलाएं नेतृत्व करेंगी, और सुनिश्चित करेंगी कि समाज में सभी के साथ न्याय और समानता का व्यवहार हो।”

विश्व में विकलांग महिलाओं के अधिकारों के लिए प्रयासरत और पाकिस्तान की विकलांग महिलाओं के लिए राष्ट्रीय मंच की संस्थापक-अध्यक्ष आबिया अकरम के लिए नारीवादी दुनिया एक ऐसी जगह है जहां महिलाएं और सभी विविध लैंगिक और योनिक लोग, स्वयं को सक्षम महसूस कर सकते हैं, और व्यवस्थित परिवर्तन लाने के लिए जमीनी स्तर पर सार्थक रूप से संलग्न हो सकते हैं, जहां हम उन परिवर्तनकारी कानूनों को (जो मानवाधिकार पर आधारित हैं) बनाने और कार्यान्वित करने में नारीवादी दृष्टिकोण की भागीदारी देख सकते हैं।”

मलेशिया में सबसे पहले आगे बढ़ कर महिला-हिंसा झेल रही महिलाओं की मदद और उनको शरण देने की पहल करने वाली महिला का नाम है आइवी जोसिया। मलेशिया की महिला सहायता संगठन (वोमेन ऐड ऑर्गेनाइज़ेशन) की वह पूर्व अध्यक्ष और कार्यकारी निदेशक भी रह चुकी हैं। उनके अनुसार, नारीवादी दुनिया सभी के लिए एक खुशहाल दुनिया है, जहाँ वास्तविक अर्थों में कोई भी पीछे नहीं छूटेगा और वंचित नहीं रहेगा।

“अगर हम नारीवादी नीतियाँ अपनाते हैं तो हम एक शांतिपूर्ण दुनिया की स्थापना कर सकते हैं। यदि युद्ध एक विकल्प है तो शांति भी तो विकल्प है। नारीवादी नीतियाँ और कार्य योजनाएँ समावेशी होंगी – जिनमें जन-साधारण की सहमति शामिल होगी। नारीवादी के रूप में महिलाएँ और अन्य विविध जेंडर वाले लोग, यह भली प्रकार जानते हैं, क्योंकि उनके साथ खुद भेदभाव किया गया है। हम पीछे छूट जाने का दर्द समझते हैं क्योंकि हम स्वयं इस त्रासदी के भुक्तभोगी हैं। इसलिए, जब नारीवादी दुनिया को चलाएँगे तो मुझे पता है कि वह एक ज़्यादा खुशहाल और समावेशी दुनिया होगी। मुझे उम्मीद है कि यह जल्द ही सच हो जाएगा”।

और जैसा कि आइवी जोसिया ने सही कहा है, कि “पुरुष और विविध जेंडर वाले लोग भी नारीवादी हो सकते हैं, यदि वे न्यायिक विकास में दृढ़ता से विश्वास करते हैं। नारीवाद एक अलग विचारधारा (न्यायिक विकास) के बारे में है जो एकजुटता और देखभाल पर आधारित है।

थाईलैण्ड की वारुणी ने सवाल उठाया कि थाईलैण्ड में दूसरी बार, महिला प्रधान मंत्री हैं। इसका मतलब यह नहीं निकले कि अब नारीवादी व्यवस्था स्थापित हो गई है। सभी नारीवादी विशेषज्ञों ने सहमति दर्ज की कि नारीवादी विचारधारा में विश्वास रखने वाले इंसान (भले ही वह किसी भी जेंडर का हो) को ही ज़िम्मेदारी देनी चाहिए (विपरीत इसके जो पितृत्मकता में रमे हैं)।

नारीवादी व्यवस्था पूंजीवाद विरोधी होगी

मुट्ठी भर लोगों के लिए अधिकतम लाभ कमाना ही पूंजीवादी व्यवस्था का ध्येय है, जबकि यह विश्व की अधिकांश आबादी को बेलगाम शोषण और मानवाधिकारों और पर्यावरण उल्लंघनों का सामना करने के लिए मजबूर करता है।

आइवी कहती हैं कि “इसलिए, नारीवादी दुनिया पूंजीवाद-विरोधी होगी। इससे सिर्फ़ कुछ अमीर लोगों को ही लाभ नहीं होगा, बल्कि यह लाभ समान रूप से साझा किया जाएगा। मौजूदा नवउदारवादी नीतियाँ, गरीब लोगों के शोषण पर पनपती हैं। अगर नारीवादी दुनिया को चलाएँगे, तो लोगों का यह बेशर्म शोषण – उनकी ज़मीनों और उनके संसाधनों को लूटना – रुक जाएगा।”

असहमति के लिए बना मुश्किल माहौल

आबिया के लिए, गहरी चिंता का एक और विषय है वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में सामाजिक संगठनों के लिए सिकुड़ते हुए स्थान। ऐसा सक्षम वातावरण बनाना जहाँ सभी को समान अधिकार और अवसर मिलें, अधिकांश देशों के एजेंडे से गायब हैं। विकलांग महिलाओं और लड़कियों, अन्य जेंडर के लोगों के लिए, सभी को समानता और अधिकार-आधारित तरीके से संसाधन और अवसर नहीं मिल रहे हैं। यह तभी संभव होगा जब हम टेबल पर एक-संग समानता के साथ बैठें और उच्च-स्तरीय मंचों पर स्थान साझा करें। नारीवादी आंदोलनों से सार्थक जुड़ाव और समान प्रतिनिधित्व होना चाहिए।

वर्तमान विश्व व्यवस्था नारीवादी विश्व व्यवस्था के विपरीत है

वर्तमान विश्व व्यवस्था, नारीवादी विश्व व्यवस्था के विपरीत है। आज का तथाकथित विकास मॉडल, पितृसत्ता, कट्टरवाद, सैन्यवाद और कॉर्पोरेट पूंजीवाद द्वारा संचालित है। ऐसी विश्वव्यवस्था ने धन, शक्ति और संसाधनों को कामकाजी लोगों से – अमीरों की ओर और विकासशील देशों से अमीर देशों की ओर – मोड़ दिया है। इसके परिणामस्वरूप वित्तीय, पर्यावरणीय, खाद्य और ऊर्जा संकट पैदा हुए हैं जो महिलाओं के जीवन को तबाह कर रहे हैं, खासकर वैश्विक दक्षिण में।

एनी ने कहा कि, “लोगों के कल्याण और विकास के लिए बहुत सारे वादे किए गए हैं। लेकिन ज़मीनी स्तर पर हम जो देखते हैं वह है भयावह गरीबी, जलवायु संकट, लोगों का बड़े पैमाने पर विस्थापन और मानवाधिकारों का उल्लंघन। इसलिए विकास की यह सारी सुंदर भाषा निरर्थक हो जाती है। आज जिसे विकास के रूप में प्रचारित किया जा रहा है वह केवल मुट्ठी भर अभिजात्य वर्ग के लिए है। यह देशों को विदेशी निवेश और ऋण पर अधिक निर्भर बना रहा है। अचानक हम खुद को कर्ज के दुष्चक्र में फंसा हुआ पाते हैं। यह वह विकास नहीं है जो लोग चाहते हैं। हम अब अपनी आँखें बंद नहीं कर सकते और यह दिखावा नहीं कर सकते कि दुनिया ‘ठीक’ है। नहीं, हम ‘ठीक’ नहीं हैं।”

न्यायिक विकास मॉडल के पाँच स्तंभ

वास्तव में, वर्तमान विश्व व्यवस्था को तत्काल न्यायिक विकास मॉडल से बदलने की आवश्यकता है जो देशों के बीच, अमीर और गरीब के बीच, और पुरुषों और महिलाओं और सभी विविध जेंडर के लोगों के बीच, धन, शक्ति और संसाधनों की असमानताओं को संबोधित करता है – एक ऐसा मॉडल जो व्यक्ति को लाभ से ऊपर रखता है।

यह विकास न्याय मॉडल पाँच परिवर्तनकारी बदलावों पर आधारित है – पुनर्वितरण न्याय, आर्थिक न्याय, सामाजिक और जेंडर न्याय, पर्यावरण न्याय और लोगों के प्रति जवाबदेही।यह एक ऐसा भविष्य है जिसे अधिकांश लोग चाहते हैं – जहां वैश्विक समानता, पारिस्थितिक स्थिरता, सामाजिक न्याय, मानवाधिकारों का आनंद और सभी के लिए सम्मान हो।

शोभा शुक्ला – सीएनएस (सिटीज़न न्यूज़ सर्विस)

(शोभा शुक्ला, सीएनएस (सिटीज़न न्यूज़ सर्विस) की संस्थापिका-निदेशिका हैं और लोरेटो कॉलेज की से०नि० भौतिक विज्ञान की वरिष्ठ शिक्षिका रही हैं। उनको ट्विटर पर पढ़ें: @shobha1shukla)

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