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महाभारत के निकृष्टतम कुपात्र पर फिल्म 

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(के. विक्रम राव के सहज प्रतिसंवेदन पर आधारित पोस्ट)

      ~ जूली सचदेबा

       _बालीवुड से शुभ खबर है। महर्षि वेद व्यास द्वारा रचित इतिहास ग्रं​थ ”महाभारत” के निकृष्टतम कुपात्र द्रोणपुत्र अश्वत्थामा पर कई बार टली फिल्म अंतत: अब बनेगी। फरवरी से शूटिंग शुरू होगी।_

         निर्माता रोनी स्क्रूवाला खर्चीले बजट के कारण संशयग्रस्त और संकोची हो गये थे। दो सौ करोड़ से अधिक के बजट का अनुमान था। अब निदेशक विक्की कौशल तथा आदित्य धर ने ऐलान कर दिया है। इन्ही दोनों ने हिट फिल्म ”उरी—दि सर्जिकल स्ट्राइक” बनायी थी। बाक्स आफिस पर बड़ी कामयाब रही। दर्शक मोहित थे।

        कश्मीर आंतकियों द्वारा भारतीय सैनिकों के संहार ही इस कलाकृति की विषय वस्तु थी। राष्ट्रीय पुरस्कार तथा ”फिल्मफेयर एवार्ड” विजेता विक्की कौशल और साराअली खान मुख्य भूमिका में हैं। मशहूर अभिनेत्री कैटरीना कैफ के विक्की पति हैं। सारा की मां अमृता सिंह हैं जिनके पति सैफ अली खां पटौदी हैं।  

अश्वत्थामा की पौराणिक कहानी मार्मिक है। निर्धन ब्राह्मण धनुर्धर द्रोण का इकलौता पुत्र था। गुडगांव (गुरुग्राम, हरियाणा) का वासी वह दुर्योधन का आत्मीय सुहृद था। पाण्डवो का घोर शत्रु। उसने पाण्डवों के द्रौपदी से हुये पांचों बेटों की शिविर में सोते समय हत्या कर दी थी।

      वहीं पाण्डवों के सेनापति धृष्टिद्मयुम्न को भी गला दबाकर मार डाला था। इसी ने उनके पिता द्रोणाचार्य का रणक्षेत्र में सर काटा था। मारा था। गुरु द्रोण को कोई भी नहीं मार सकता था, जब तक उनके हाथ में धनुष—बाण रहा।

        नटवरलाल कृष्ण ने अश्वत्थामा नाम के हाथी को भीम की गदा से मरवा कर द्रोण को पुत्र हत्या के झूठे समाचार से भ्रमित कर दिया। इस पाप के लिये धर्मराज युधिष्ठिर को एक दिन नरक में रहना पड़ा था।

      मगर जघन्यतम पाप इस क्रुद्ध द्रोणपुत्र का ही था कि उसने पाण्डवों की ओर छोड़ा ब्रह्मास्त्र कृष्ण की भांजी उत्तरा और अर्जुन—पुत्र अभिमन्यु के गर्भस्थ पुत्र परीक्षित को भ्रूणावस्था को मारने के लिए दिशा उसी ओर मोड़ दिया था। कृष्ण ने उत्तरा के गर्भस्थ पाण्डव उत्तराधिकारी को बचा लिया।

         मगर अश्वत्थामा को कृष्ण ने शाप दिया कि वह अमर रह कर कष्ट भोगता रहेगा। मौत चाहेगा पर नहीं नसीब होगी। उसके मस्तक पर जड़ी मणि को भी कृष्ण ने उखाड़ लिया। लहू बहता रहा। 

    माना जाता है कि ये महाभारत काल का अकेला ऐसा पात्र है, जो आज तक जीवित है। आज भी कई जगहों पर अश्वत्थामा के जीवित देखे जाने के दावे किए जाते हैं। महाभारत को गुजरे हजारों साल हो गये। त्रेता बीता। कलयुग चल रहा है।

      मगर शापित अश्वत्थामा अभी भी मृत्युलोक में सशरीर भटक रहा है। वृतांत कई हैं कि अश्वत्थामा को देखा गया है।  इस द्रोणपुत्र के बारे में मुझे एक बार समाजवादी नेता स्व. मुलायम सिंह यादव ने मुझे बताया था। इटावा में समाजवादी पार्टी कार्यकर्ता शिविर लगा था। रामगोपाल यादव, शिवपाल सिंह यादव, बृजभूषण तिवारी आदि थे। मैं भी वक्ता था।

      वहां से उस काली वाहन मंदिर देखने गया, जहां कहा जाता है कि प्रत्येक सुबह सर्वप्रथम अश्वत्थामा महादेवी महाकाली की अर्चना करने यहां पधारते हैं। 

    काली वाहन मंदिर में आज तक इस बात का पता नहीं लग सका है कि रात के अंधेरे में जब मंदिर को साफ कर दिया जाता है और जब तड़के गर्भगृह खोला जाता है तो उस समय मंदिर के भीतर ताजे फूल मिलते हैं।

 यह इस बात को दिखते हैं कि कोई अदृश्य रूप में आकर पूजा करता है। अमर पात्र अश्वश्थामा ही आते हैं।

      पिछले वर्षों में कई हिन्दी फिल्मों ऐतिहासिक घटनाओं पर बनीं। मसलन सम्राट पृथ्वीराज, तानाजी, पानीपत, पद्मावत इत्यादि। पौराणिक सीरियल में रामायण तथा महाभारत बने थे पर अश्वत्थामा एक भिन्न फिल्म होगी क्योंकि यह एक पात्र मात्र पर ही केन्द्रित है। यही इसके लोकार्षण का मूल आधार है।

       इस फिल्म की समीक्षा के सिलसिले में मुझे अपना पत्रकारी प्रशिक्षण का दौर याद आ गया, जब मैं ”फिल्मफेयर” में प्रशिक्षु रहा। प्रकाशक बैनेट कौलमन एंड कम्पनी ने भारत में सर्वप्रथम पत्रकार प्रशिक्षण कार्यक्रम 1961 में शुरू किया था।  कोलकाता—स्थित साहू—जैन सर्विसेज की यह योजना अभूतपूर्व रूप में सफल रही क्योंकि उनकी कई पत्र—पत्रिकाएं थीं। टाइम्स आफ इंडिया,—इकनॉमिक टाइम्स से लेकर फिल्मफेयर, धर्मयुग, दिनमान आदि।

       मैं प्रशिक्षुओं के प्रथम बैच में चयनित हुआ था। देशभर से करीब ग्यारह हजार प्रत्याशी थे। पद केवल छह। तीन अंग्रेजी में तथा तीन हिन्दी। इनमें गणेश मंत्री थे जो बाद में ”धर्मयुग” के संपादक बने। विनोद तिवारी थे जो फिल्म पत्रिका ”माधुरी” के संपादक बने। अधुना मुम्बई में मीडिया प्रशिक्षण संस्था से जुड़े हैं।

        अत: इस अश्वत्थामा फिल्म के विषय में मेरी समझ बनाने और संवारने में ”फिल्मफेयर” पत्रिका में मेरा प्रशिक्षण बड़ा सहायक रहा। बात 1962—67 की है। मेरी प्रशिक्षक मोहम्मद शमीम थे। वे अमीनाबाद (लखनऊ) के थे।

बाद में ”टाइम्स आफ इंडिया” दिल्ली संस्करण के चीफ रिपोर्टर भी रहे। देवयानी चौबल रिपोर्टर थी। इसी में विक्रम सिंह भी थे जिनके अग्रज के.एन. सिंह खलनायक के रोल में बड़े मशहूर हुये। ”फिल्मफेयर” के संपादक थे बीके करंजिया, जिनके अग्रज आरके करंजिया साप्ताहिक ”ब्लिट्ज” के संपादक रहे।

     शमीम के मार्फत हिन्दी—मराठी फिल्म जगत में काफी अनुभव मुझे प्राप्त हुआ। यूं उनके विभिन्न मित्रों में युसूफ खान (दिलीप कुमार) नौशाद, के. आसिफ, महबूब खां आदि खास थे। एक बार शमीम मुझे मीना कुमारी की शूटिंग पर ले गये थे। इन्टर्व्यू करना था।

      यह महजबीन बानो ट्रेजेडी क्वीन एक बेहतरीन शायरा और गायिका भी रहीं। उनके पति जनाब कमाल यूपी के अमरोहा के थे। मेरी त्रुटिहीन हिन्दुस्तानी सुनकर मीना कुमारी ने तनिक अचरज से पूछा : ”आप राव हैं, आंध्र के ? तेलुगुभाषी ! मगर आपका तफल्लुज इतना साफ है? ” बताया मैंने कि लखनऊ की परवरिश है। 

        उसी दौर में बिहार के उपन्यासकार फणीश्वरनाथ रेणु के ”मारे गये गुलफाम” उपन्यास पर राज कपूर ”तीसरी कसम” फिल्म बना रहे थे। चेंबूर के आरके स्टूडियों में रेणू जी से भेंट करने शमीम लिवा ले गये थे। मैं पटना के स्कूल में पढ़ा था। उनसे काफी देर चर्चा हुयी थी।

       “टाइम्स” का प्रशिक्षण स्कीम बड़ा लाभप्रद रहा। बाद में ”धर्मयुग” के डा. धर्मवीर भारती और दिल्ली में ​”दिनमान” संपादक रघुवीर सहाय से भी संपर्क हुआ। मैंने इन दोनों पत्रिकाओं में खूब लिखा।

        वहीं धाराप्रवाह हिन्दी भी सीखी। इसीलिए टीस उठती है ​कि प्रकाशन संस्थान आज बड़े हो गये, मुनाफाखोर भी। पर पत्रकार प्रशिक्षण का कार्यक्रम सम्यक नहीं रहा। कौशल विकास हो तो भी कैसे ? (चेतना विकास मिशन).

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