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अंततः गुलाम नबी भी हुए कांग्रेस से ‘आजाद

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-अरुण पटेल

      अंततः कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद कांग्रेस से आजाद हो ही गए और अब वे जम्मू कश्मीर में कांग्रेस से हटकर अपनी एक नई राजनीतिक राह खोजने के अभियान में भिड़ गए हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पांच पेज की उन्होंने जो चिट्ठी लिखी है उसमें असली निशाने पर राहुल गांधी ही हैं और बकौल आजाद कांग्रेस की मौजूदा समय में नैया डुबाने वाले किरदार भी राहुल ही हैं। वैसे यह पहला मौका नहीं है जब कांग्रेस छोड़-छोड़ कर लोग जा रहे हैं बल्कि अक्सर देखने में आया है कि जब-जब कांग्रेस सत्ता से बाहर हो जाती है या नेताओं को लगने लगता है कि अब कांग्रेस की नैया डॉवाडोल होने वाली है उससे पूर्व ही जिसे वह डूबती नाव समझते हैं उससे कूदकर अपना नया आशियाना तलाशते हैं। कई तो इधर-उधर घूमकर अंततः कांग्रेस में ही लौट आते हैं। कांग्रेस छोड़कर जाने वालों के बारे में मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की कई वर्ष पूर्व की गई यह टिप्पणी याद आ जाती है जिसमें उन्होंने कहा था कि कांग्रेस छोड़ने वाले नेता दहाड़ते हुए पार्टी छोड़ते हैं और बाद में मेमने की तरह मिमियाते हुए वापस आ जाते हैं। यह बात उन्होंने अविभाजित मध्यप्रदेश के हैवीवेट नेता अर्जुन सिंह और माधवराव सिंधिया के फिर से वापस कांग्रेस में आने पर कही थी। जिस आयोजन में दिग्विजय ने यह बात कही उसमें फिर से कांग्रेस में लौटे ये दोनों नेता भी उपस्थित थे। अब एक बार फिर कांग्रेस के बड़े नेताओं ने अपनी तोप का मुंह गुलाम नबी की ओर मोड़ दिया है और उन पर जमकर शाब्दिक गोले छोड़ रहे हैं। गुलाम नबी के कांग्रेस छोड़ने से कांग्रेस को वह कितना नुकसान पहुंचा पायेंगे या कांग्रेस में सुधार के नये अध्याय की शुरुआत करने में उनका पार्टी छोड़ना कितना उत्प्रेरक की भूमिका अदा करेगा यह देखने वाली बात होगी। वैसे अभी तक देखने में यही आया है कि चाहे जो भी कांग्रेस छोड़े हों कांग्रेस की कार्यशैली में कोई बदलाव नहीं आता और कांग्रेस अपनी चाल चलती रहती है। अब यह भी देखने वाली बात होगी कि इस बार कांग्रेस कुछ चमत्कार दिखा पाती है या छोड़ने वाले चमत्कारी बन जाते हैं। 

        गुलाम नबी आजाद पर निशाना साधने वालों में वह लोग भी हैं जो हाईकमान की कृपा से बड़े बन गये हैं लेकिन मैदान में उनकी कोई पकड़ नहीं है तो वहीं वे नेता भी खुलकर गुलाम नबी को नसीहत दे रहे हैं जो अपने-अपने प्रदेशो में आज भी पार्टी के हैवीवेट माने जाते हैं, ऐसे लोगों में मुख्यमंत्री द्वय अशोक गहलोत, भूपेश बघेल और दिग्विजय सिंह तथा सचिन पायलट जैसे मैदानी पकड़ वाले नेता भी शामिल हैं। कांग्रेस विभाजित भी हुई है लेकिन अंततः देश की जनता की नजर में वही असली कांग्रेस रही है जो नेहरु-गांधी की विरासत को लिए हुए है। वैसे गुलाम नबी के पार्टी छोड़ने का प्रभाव जम्मू कश्मीर में देखने को मिल रहा है जहां उनके इस्तीफे के बाद कांग्रेस में बगावत सामने आ गई। राज्य के छः बड़े नेताओं ने आजाद के समर्थन में पार्टी से इस्तीफा दे दिया। इनमें गुलाम मोहम्मद सरुरी, हाजी अब्दुल राशिद, मोहम्मद आमीन भट, गुलजार अहमद वानी, चौधरी अकरम मोहम्मद और सलमान निजामी शामिल हैं। गुलाम नबी पर सबसे तीखा हमला राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने करते हुए कहा है कि ऐसे समय पर जब सोनिया गांधी चेकअप के लिए अमेरिका गई हुई हैं इस्तीफा देना अमानवीय है। उनके अनुसार आजाद भी संजय गांधी के समय में चापलूस ही माने जाते थे। गुलाम नबी के इस समय के कदम की टाइमिंग को लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं और कहा जा रहा है कि जी-23 के सदस्यों ने भी उस समय सोनिया गांधी को पत्र लिखा था जब वह अस्पताल में अपना इलाज करा रही थीं और इस बार भी वे अमेरिका में इलाज करा रही हैं। इस समय तो राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भी वहीं हैं। 

       दिग्विजय सिंह ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कांग्रेस ने गुलाम नबी को सब कुछ दिया परन्तु उन्होंने पार्टी को धोखा दिया जो निंदनीय है। यह सब उन्होंने उस समय किया जब सोनिया गांधी इलाज के लिए विदेश गई हैं। उधर दूसरी ओर रीवा के दौरे से लौटने पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ से मीडिया ने प्रतिक्रिया जानना चाही तो उन्होंने मौन साध लिया। हालांकि वह शनिवार को दिल्ली पहुंच रहे हैं और वरिष्ठ पदाधिकारियों से मुलाकात करेंगे। दिग्विजय सिंह ने कहा है कि मैं और गुलाम नबी आजाद एक साथ राजनीति में आये, उन्होंने 1977 में कश्मीर में विधानसभा का चुनाव लड़ा था परन्तु उनकी जमानत जब्त हो गयी। पार्टी ने उन्हें अखिल भारतीय युवा कांग्रेस का महामंत्री और अध्यक्ष बनाया। हमारे अच्छे सम्बन्ध रहे हैं पर मुझे इस बात का दुख है कि जिस पार्टी ने उन्हें सब कुछ दिया उसे उन्होंने धोखा दिया। वह अपने राज्य से चुनाव नहीं जीत पाते थे तब पार्टी ने उन्हें महाराष्ट्र से चुनाव जितवाया। दो बार लोकसभा और तीस साल राज्यसभा का सदस्य बनाया। मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री भी बनाया, वे आज पत्र लिखकर कह रहे हैं कि उस समय आहत हुए थे जब 2013 में राहुल गांधी ने पत्रकारों के सामने अध्यादेश को फाड़ दिया था। यदि आपत्ति थी तो फिर 2014 में राज्यसभा में विपक्ष के नेता का पद क्यों स्वीकार किया और मंत्रिमंडल से त्यागपत्र क्यों नहीं दिया था। राहुल पर लगाये आरोपों को दिग्विजय ने खारिज करते हुए कहा कि ये बहानेबाजी है। उन्होंने भाजपा की ओर इशारा करते हुए कहा कि सीधी बात यह हो सकती है कि आपके उन लोगों से सम्बन्ध बन गये हैं जिन्होंने कश्मीर में धारा 370 समाप्त की। उन्होंने पत्र का हवाला देते हुए कहा कि आपने लिखा है कि कांग्रेस जोड़ो की आवश्यकता है और उसे तोड़ने का कदम उठाया है और वह भी उस समय जब जिस गांधी परिवार ने आपको सब कुछ दिया उस परिवार की श्रीमती गांधी उपचार के लिए विदेश गई हैं। आपको संकटकाल में पूरी दृढ़ता के साथ खड़े होकर कांग्रेस का साथ देना चाहिए लेकिन आपने इस्तीफा दे दिया। मुझ सहित पूरे देश के कांग्रेसजन आपके इस कदम की निंदा करेंगे और भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होंगे। आज देश की सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था बिगड़ रही है। दलित, आदिवासियों और अल्पसंख्यक वर्ग के साथ अत्याचार किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि गुलाम नबी आजाद बहुत दिनों से कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे जबकि पार्टी ने उन्हें पूरा सम्मान दिया है, उनके इस्तीफा देने से पार्टी को कोई नुकसान नहीं होगा। 

*और यह भी*

          आजाद ने अपने त्यागपत्र में सीधा निशाना साधते हुए कहा है कि यूपीए सरकार की अखंडता को तबाह करने वाला रिमोट कंट्रोल सिस्टम अब कांग्रेस पर लागू है। सोनिया गांधी तो नाममात्र की अध्यक्ष हैं सभी फैसले तो राहुल गांधी ले रहे हैं। उससे भी बद्तर स्थिति यह है कि उनके निजी सचिव व सुरक्षा कर्मी ये फैसले ले रहे हैं। उनका आरोप है कि 2013 में राहुल गांधी को पार्टी उपाध्यक्ष बनाना दुर्भाग्यपूर्ण रहा और उन्होंने सलाह-मशविरे के तन्त्र को तहस-नहस कर दिया। मीडिया के सामने अध्यादेश फाड़ना बचकाना व्यवहार था जिसने प्रधानमंत्री व सरकार के अधिकारों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया था तथा 2014 में हार के लिए यह घटना जिम्मेदार है। उन्होंने तथा अन्य वरिष्ठ 22 नेताओं ने पत्र लिखकर पार्टी की बहाली की ओर ध्यान खींचना चाहा तो इसके जवाब में चाटुकारों की मंडली ने हमला बोला और हमें अपमानित किया गया। कांग्रेस की मंडली द्वारा जम्मू में मेरी सांकेतिक शवयात्रा तक निकलवाई गई और जिन लोगों ने यह अनुशासनहीनता की उन्हें सम्मानित किया गया। 2014 का चुनाव लड़ने के लिए जो योजना बनाई गई थी वह नौ साल से स्टोर में पड़ी है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश का कहना है कि आजाद का डीएनए ‘मोदी  मय’ हो गया है और उनका रिमोट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास है। आजाद के साथी रहे पूर्व सांसद संदीप दीक्षित ने जो जी-23 में शामिल थे, कहा कि आजाद का यह पत्र विश्वासघात दिखाता है। तीखी प्रतिक्रिया में युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी.वी. श्रीनिवासन ने कहा कि जो सिर्फ सत्ता व रेवड़ी के गुलाम रहे वे संघर्ष के दौर में अब आजाद हो गये हैं। इस साल 12 बड़े नेताओं के अलावा पिछले आठ साल में 33 बड़े नेताओं सहित 400 से ज्यादा नेता कांग्रेस छोड़ चुके हैं। अब यह तो होने वाले विधानसभाओं और लोकसभा चुनाव के बाद ही पता चलेगा कि इन नेताओं ने कांग्रेस को और कितना नीचे पहुंचाया। मध्यप्रदेश के गृहमंत्री और राज्य सरकार के प्रवक्ता डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उनके इस्तीफे के साथ ही कांग्रेस नेताओं की ‘कांग्रेस छोड़ो यात्रा’ शुरु हो गई है जबकि राहुल बाबा की भारत जोड़ो यात्रा अभी शुरु भी नहीं हो पाई है।

-लेखक सुबह सवेरे के प्रबंध संपादक हैं

– सुबह सवेरे से साभार

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