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विद्यार्थी जीवन की इश्कबाजी और तालिबानी विचारधाराजनित समस्याएं

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        पुष्पा गुप्ता 

   जब किसी का स्कूल कॉलेज टाइम में इश्कबाज़ी होती है तो जैसे ही किसी लड़के की प्रपोजल स्वीकार होती है और लड़का उसको अपनी बंदी कहने लगता है तब साथ में एक रस्म अदा की जाती है विश्वास पैदा करने की।

     इस रस्म के अंतर्गत लड़का लड़की के इंस्टाग्राम और व्हाट्सप्प और बाकी दूसरे सोशल मीडिया के पासवर्ड अपने पास ले लेता है।

      फिर धीरे धीरे लड़का लड़की को बुर्का पहनाना शुरू कर देता है। तू इससे या उससे बात करना बंद कर दे वो बंदा ठीक नही है। या तू ये कपड़े मत पहन वो मत पहन तू शॉर्ट मत पहन न जाने क्या क्या। 

      वह धीरे धीरे लड़की पर बंदिशे बढ़ाना शुरू कर देता है।लेकिन उस बेवकूफ को यह मालूम नही होता की कोई भी स्त्री बंधन और आजादी के बीच झूलती हुई मानसिकता रखती है। किसी भी स्त्री को बंधन के साथ साथ आजादी भी उतनी ही पसंद होती है।

      स्त्री शक्ति या ऊर्जा का रूप होती है। ऊर्जा को गाइडेड तरीके से इस्तेमाल तो किया जा सकता है लेकिन शक्ति या ऊर्जा को स्टोर नही किया जा सकता।

       लेकिन सनातन संस्कृति में स्त्री और पुरषों को बराबर के अधिकार होने कारण   यह बंदिशों का गुब्बारा कुछ समय बाद फट जाता है और इश्कबाजी का ब्रेकअप हो जाता है। फिर ब्रेकअप के बाद पुराने जमाने में चिट्ठी पत्री या फोटो शोटो दिखा कर या आजकल के जमाने में चैट वैट , ऑडियो वीडियो आदि का इस्तेमाल करके लड़का कुछ समय तक लड़की को तंग या ब्लैकमेल करने की कोशिश करता है लेकिन अंत में मुंह की खा कर चार पांच महीने रोना धोना दारू पीना कमीज फाड़ कर बाइक दौड़ाने का काम कर के चुप बैठ जाता है। 

     उसके बाद फिर किसी नई बंदी को पटा कर वही बाते दोहराना शुरू कर देता है। अधिकतर बाहर पढ़ने गए छात्र छात्राओं को यही काम होता है। वे बंदा और बंदी बनने का आनंद लूटते रहते हैं। जबकि उन के मां बाप उनके लिए पेट काट काट कर आरडी एफडी जमा कर कर के उनको डॉक्टर इंजिनियर बनाने  के सपने देखते रहते हैं। 

    जबकि उनके मां बाप ने भी खुद यही कार्यवाही करके उनको उत्पन किया होता है। जो बोया वहीं काट रहे हैं।

     लेकिन तालिबानी संस्कृति का गुब्बारा बहुत मजबूत है क्योंकि इनका समाज और कानून इस प्रकार की बंदिशों को मान्यता देता है। इसलिए तालिबानी संस्कृति के गुब्बारे की क्षमता बहुत ज्यादा है लगभग 1500 साल की। अब इस गुब्बारे में छेद हो चुका है। 

     बीस साल के अमेरिकी शासन की वजह से अफगानिस्तान में एक स्त्रीयों की पूरी पीढ़ी तैयार हो चुकी है। जो तालिबानी संस्कृति में छेद का काम करेगी और यह गुब्बारा आने वाले कुछ सालों में फट जायेगा।

      कुछ कांग्रेसी और कम्यूनिस्ट मित्र सनातन और दूसरे धर्म को बराबर ठहराने की कोशिश कर रहे हैं। जब वे तालिबान की बात कहते है तो सनातन को भी गाली दे रहे हैं। इन वेवकुफों को चाहिए पहले दोनो धर्मों का सार समझ लें। सिर्फ अपनी राजनैतिक इच्छाओं के लिए गधे और घोड़े को बराबर ना समझें। 

     नही तो इन लोगों की पत्नियों से मेरी प्रार्थना है की वे इन लोगों को कुछ ज्ञान प्राप्ति करवाए। इस समय विश्व की सभी जाति समाज धर्म की स्त्रीयों का यह कर्तव्य बनता है।

  कम्यूनिस्ट धर्म और तालिबान धर्म वाले लोग अपनी राजनैतिक और अपने स्वार्थों और अपनी सेक्स की हवस पूरी करने के लिए हथियार उठाने वाले लोग हैं जबकि सनातन संस्कृति के लोग रक्षा के लिए हथियार उठाने वाले लोग हैं।

     इनको बराबर कह देना ऐसा ही है जैसे आर्मी और डाकुओं के समूह को बराबर कह देना।

       इन लोगों को कोई बात तथ्यों और तर्कों पर साबित करनी चाहिए क्योंकि सोशल मीडिया के दौर में लोग सचाई मालूम कर ही लेते हैं। सिर्फ झूठ, अफवाह और गाली गलौच की राजनीति करके आप लोग अपनी विश्वसनीयता समाप्त कर रहे हो। भला चंगा पता होते हुए की सनातन संस्कृति में स्त्रीयों और कन्याओं को पूजा जाता है जबकि तालिबानी संस्कृति में उनको सेक्स स्लेव समझा जाता है। 

      फिर भी आप दोनो को बराबर ठहराते हो। व्यक्तिगत तौर पर हर धर्म समाज के लोगो में बुरे अच्छे लोग होते हैं। प्रश्न यह है की कौन समाज या धर्म बुरी बातों को मान्यता देता है कौन नही। कम्यूनिस्ट और कांग्रेस के लोग अगर बदलते जमाने के साथ भी उन्ही पुराने ढर्रे पर चलते रहे तो ये लोग अपना भविष्य खुद खराब कर रहे हैं।

       कांग्रेसी लोगों की हालत तो उस जोरू के गुलाम की तरह हो चुकी है जो अपनी पत्नी से डरता है और सोचता है की सारी दुनिया मेरी पत्नी से डरती है। जिस प्रकार ये लोग खुद सोनिया जी और प्रियंका जी के आगे नतमस्तक है और उनसे डरते है और उनके सच झूठ को पूरी तरह आखें बंद करके स्वीकार करते है।

      ये सोचते है की सारा देश और समाज भी उनकी तरह सोनिया जी और प्रियंका जी के आगे नतमस्तक है।

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