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*लोकधर्म : व्रात्य और ब्राह्मण*

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      ~ प्रखर अरोड़ा 

प्राचीन भारत में दो धर्म थे , एक व्रात्य धर्म और दूसरा वैदिक धर्म। वैदिक धर्म का केंद्रीय तत्व था  यज्ञ  और व्रात्य धर्म का केंदीय तत्व था व्रत या संकल्प। यक्ष ,नाग ,असुर ,राक्षस व्रात्य थे। ये संकल्प धारण करते थे। आर्य यज्ञ धारण करते थे। 

    धारयति इति धर्म :। जो धारण किया जाय वहीं धर्म है। यज्ञ धारण करने वाले ,होम करने वाले प्राकृति को दिव्य शक्ति के अधीन मानते थे। जो परालौकिक शक्ति को अपने अधीन कर लेता था ,उसे अपने अनुसार परिवर्तित कर लेता था ,उसे वह देवता बोलते थे।‌

     इस तरह आर्य सभ्यता पर लौकिक शक्तियों का अधिष्ठाता , परिमार्जन और संचयन के रुप में विकसित हुई। ये मन और तन से कमजोर लोग थे ,इसलिए हर समय परालौकिक शक्ति की गुहार लगाते थे ,उनके आड़ में छल – कपट‌ , हत्या कर धन और धर्म पर विजय प्राप्त करते थे। हमेशा डरा हुआ समाज धूर्त और कपटी होता है और हर काम को जायज ठहराने के लिए परालौकिक कहानियां गढ़ लेता है।‌

    देवता जो दिव्य है ,जो प्रकाशित है ,जो ज्ञानवान है , जिसके पास हर समस्या का सामाधान हो।‌ देवता शब्द भी व्रात्य संस्कृति से लिया गया है। 

      जैसे – देवव्रत। महाभारत का यह भीष्म पितामह देवता जैसा व्रत धारण करने वाला था।  इससे स्पष्ट है कि देव , व्रत धारण करते थे ,परम संकल्प लेते थे। वे व्रात्य थे।

     इस बात का प्रमाण यह है कि पूरे महाभारत में कुरू वंश को कभी यज्ञ करते हुए नहीं दिखाया गया है। अंत में परीक्षित की कहानी आती है जो अर्जुन का पोता और अभिन्यु का पुत्र था । उसने यज्ञ करवाया। परीक्षित का पुत्र जनमेजय ने भी नाग यज्ञ करवाया।‌ यज्ञ मतलब अपने दुश्मन का होम या स्वाहा करना ,भष्म कर देना।‌ नाग यज्ञ में नागो को भष्म किया गया। 

     इसका कारण था – परीक्षित जब राजा बना तो ,उसने एक तपस्वी के गले में सांप डाल दिया। तपस्वी कौन था इस बात की चर्चा नहीं की गई।‌ सांप डालने का मतलब है मजाक बना देना। तपस्वी का पुत्र इस बात से दु:खी हुआ। वह नाग राजा तक्षक के पास गया। तक्षक ने इस तपस्वी का बदला लिया और परीक्षित को महल में घुसकर हत्या कर दी। 

      यहां स्पष्ट है को नाग राजा तक्षक और राजा परीक्षित अलग – अलग धर्म के लोग थे। नाग राजा तक्षक ने अपने धर्म की रक्षा करने के लिए ,राजा का हत्या कर दी। उसके महल जला कर भष्म कर दिया।‌ 

     बदले में परीक्षित का पुत्र जनमेजय ने नाग यज्ञ किया और सारे नागो को यज्ञ में जलाकर भष्म कर दिया।‌  जनमेजय का उकसाने वाला एक ब्राह्मण था ,उसका नाम उतंक था। उस ब्राह्मण का तक्षक से वैर इतना था कि उसे एक राजा की रानी से सोने का गहना दान में मिला था। उसे तक्षक ने बीच रास्ते में छीन लिया था। 

इससे स्पष्ट है कि कुरू वंश पहले व्रात्य धर्म धारण किया ,परीक्षित तक आते – आते वे लोग आर्य धर्म के तरफ झुकने लगे थे और यहां के व्रात्य धर्म के खिलाफ काम करने लगे। कुरू वंश पुरू और भरत वंश के समिश्रण से बना था , इसलिए दोनों का प्रभाव होना या बरकरार रहना सुनिश्चित था। भरत वंश , भारत जन से बना था। वैदिक युग में भारत जन का सुदास पहले ही दशराज्ञ युद्ध में इंद्र से लड़ चुका था।‌ भारत जन का व्रात्यीकरण पहले हो चुका था।‌

   भारत ,भर से बना है। 

हां , ब्राह्मण उतंक और जनमेजय का एक होना , कुरू वंश का ब्राह्मणीकरण का पूर्ण होना माना जा सकता है। 

सवाल यहां है कि जिस तपस्वी को परीक्षित ने गले में सांप डालकर अपमानित किया था ,वह कौन था। जाहिर है वह ब्राह्मण तो नहीं होगा। अगर ब्राह्मण रहता तो ,परीक्षित की इतनी हिम्मत नहीं होती की उसे अपमानित करते , दूसरी बात अगर वह ब्राह्मण होता तो उसका पुत्र इंद्र के पास जाता , विष्णु के पास जाता ,परशुराम के पास जाता , नाग राजा तक्षक के पास क्यों गया? 

      तक्षक इस अपमान से इतना आहत हुआ कि उसने , उसने महल में घुसकर राजा की हत्या ही नहीं की बल्कि उसके महल को भी जला दिया। 

     सवाल है तक्षक का धर्म क्या था ,वह तपस्वी कौन था? इसका जवाब खुद महाभारत ही दे देता है। तक्षक को वह नग्न तपस्वी भी लिखता है। पूरे प्राचीन इतिहास में नग्न केवल आजीवक ही रहते थे।‌ जाहिर सी बात है कि तक्षक खुद एक आजीवक था ,इस बात से सिद्ध हो जाता है। 

    इस तरह विश्व को पहला विश्वविद्यालय तक्षशीला का निर्माण करने वाला तक्षक आजीवक था।‌ 

   इसकी नकल बाद के बौद्धों ने किया जो ब्राह्मण धर्म का एक offshoot  है। 

    इस तरह यह भी सिद्ध होता है कि भारतीय इतिहास आजीवक और ब्राह्मण के बीच धार्मिक ही नहीं ,राजनैतिक ,सांस्कृतिक लड़ाई का इतिहास है।‌

राजा तक्ष का ननिहाल वैशाली था , रावण के भाई कुबेर का ननिहाल भी वैशाली था ,रावण का मामा मारीच था ,मरीज की मां ताड़का थी। ताड़का रावण की नानी हुई। ताड़का बक्सर में राज करती थी। बक्सर बिहार में हैं।‌ इस तरह रावण का ननिहाल भी बक्सर हुआ। बनारस ,बक्सर और वैशाली तीनों गंगा के किनारे थे।‌

     इस तरह यह गंगा घाटी सभ्यता विकसित थी ,ठीक उसी तरह जिस तरह सिंधु – घाटी सभ्यता थी।‌

     वैशाली बनारस का ही विस्तार था।‌ जिस समय तक्षशिला विश्वविद्यालय था ,उस विद्यालय में पढ़ने के लिए कोसल नरेश प्रसेनजीत गए , वैशाली के राजा पढ़ने जाते थे ,यहां तक की अंगुलिमाल डाकू भी वहीं का विद्यार्थी ,जिसे अपने गुरू के पत्नी के साथ अवैध संबंध होने पर निकाल दिया गया था।‌ लेकिन उस समय के सिद्धार्थ उर्फ बुद्ध वहां पढ़ने नहीं गये थे ,यह भी परम सत्य तथ्य है।‌

आजीवक कौन थे ?

   आजीवक जो जीव को शरीर से अलग इकाई नहीं मानते थे , पुनर्जन्म नहीं मानते थे , परा लौकिक शक्ति में विश्वास नहीं करते थे , प्रकृति ,समाज ,धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए व्रत यानी संकल्प धारण करते थे।‌  रक्षा करते थे इसलिए राक्षस हुए ,व्रत धारण करते थे इसलिए व्रात्य हुए ,पुनर्जन्म नहीं मानते थे इसलिए आजीवक हुए , नग्न रहते थे इसलिए नाग कहलाये , पूर्वजों  को देवता की तरह पूजते थे ,इसलिए यक्ष कहलाए। 

    सूर्य उपासना भी व्रात्य धर्म है।

    ११ वीं शताब्दी के चेरो और खरवार राजा देव उपनाम धारण करते थे।‌ उन्होंने ही सूर्य और छठ पूजा विकसित की। प्राचीन नाग भी सूर्य पूजा करते थे इसका प्रमाण महाभारत में  है।

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