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4 दशक में पहली बार हर जुबान पर बेरोजगारी और बेकारी सबसे प्रमुख मुद्दा

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पिछले 4 दशक से देश में बेरोजगारी जैसे प्रमुख मुद्दे पर हर बार हिंदुत्व, राष्ट्रवाद, क्षेत्रीयता या सामाजिक न्याय जैसे मुद्दे ही हावी बने रहे। 2024 में पहली बार देखने को मिल रहा है, जब हर जुबान पर भयानक बेरोजगारी और बेकारी सबसे प्रमुख समस्या बनकर उभर रही है। जहां तक कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों का प्रश्न है, उन्होंने युवाओं के लिए रोजगार की उपलब्धता को अपना प्रमुख एजेंडा बनाया हुआ है, जबकि भाजपा के संकल्प पत्र में भले ही महिला, किसान, युवा और गरीब के उत्थान की बात शामिल है, लेकिन उसकी योजना में इस बारे में कोई ठोस नीतिगत घोषणा नहीं की गई है। युवाओं के बीच बढ़ती बेरोजगारी से निपटने के लिए जिस एक राष्ट्रीय दल ने पहली बार ठोस रूप से नीतिगत फैसले लेने का संकल्प लिया है, वह है कांग्रेस! जिसने हर शिक्षित बेरोजगार युवा के लिए एक वर्ष अपरेंटिसशिप (प्रशिक्षु) के बदले में 1 लाख रूपये प्रदान करने का मसौदा देश के सामने पेश किया है।

इस योजना के तहत हर 25 वर्ष या उससे कम आयु वर्ग के डिग्री या डिप्लोमाधारी युवा को सरकारी या प्राइवेट फर्म में अगले 12 महीने तक अपरेंटिस के तौर पर रोजगार की गारंटी प्रदान की जायेगी। इस काम के बदले उन्हें प्रतिमाह तकरीबन 8,500 रूपये और ट्रेनिंग पूरी हो जाने पर काम करने का अनुभव प्रमाणपत्र प्राप्त होगा। शुरूआती वर्षों में कोविड-19 महामारी और उसके बाद पढ़ाई पूरी कर चुके नौजवानों को भी शामिल किया जायेगा, ताकि पिछले 4 वर्षों से बेरोजगारी की मार झेल रहे युवाओं को भी ट्रेंड वर्कफोर्स के तौर पर प्रशिक्षित होने का अवसर प्राप्त हो सके। 

देश में अपरेंटिसशिप एक्ट 1961 से लागू लेकिन अमल में नहीं 

ऐसा नहीं है कि देश में पहले से अपरेंटिसशिप की योजना अमल में नहीं थी। देश में अपरेंटिसशिप को बढ़ावा देने के लिए 1961 में ही अपरेंटिसशिप एक्ट लागू किया गया था। लेकिन आज तक कभी भी इस कानून को सख्ती से लागू नहीं किया गया। 2014-15 तक देश में अपरेंटिसशिप के तहत काम करने वालों की संख्या 90,000 तक सीमित थी। वर्ष 2021-22 तक इसमें गुणात्मक उछाल देखने को मिला, जब देश में 5 लाख युवाओं को अपरेंटिसशिप के तहत प्रशिक्षण प्राप्त होने लगा। लेकिन भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश की तुलना में जर्मनी और ब्रिटेन में अपरेंटिसशिप के तहत काम करने वालों की संख्या कई गुना अधिक है। जर्मनी में उपलब्ध कुल श्रमबल में से 4% अपरेंटिसशिप के तहत कार्यरत हैं, जबकि ब्रिटेन में यह 1.7% श्रम बल का प्रतिनिधित्व करती है। इसकी तुलना में भारत में कुल श्रमशक्ति का मात्र 0.1% हिस्सा ही अपरेंटिसशिप के तहत आता है। 

जर्मनी, ब्रिटेन और चीन में अपरेंटिसशिप का महत्व  

अगर हम जर्मनी की तरह देश में अपरेंटिसशिप को लागू करते हैं तो देश को हर वर्ष करीब 2 करोड़ युवाओं को अपरेंटिसशिप के तहत काम देना होगा। इतनी बड़ी संख्या में युवाओं को प्रशिक्षण प्रदान करने का अर्थ है, उनके लिए बड़े पैमाने पर सरकारी और निजी क्षेत्र में विनिर्माण, रियल एस्टेट, सर्विस सेक्टर और एमएसएमई क्षेत्र को बढ़ावा देना। 2 करोड़ युवाओं को प्रतिवर्ष 1 लाख रूपये अदा करने के लिए 2 लाख करोड़ रूपये खर्च करने की आवश्यकता होगी। लेकिन इसके लिए सेवा प्रदाताओं और भारत सरकार के बीच इस बोझ को साझा करने का प्रावधान करने की बात कही गई है। इसके तहत सेवा प्रदाता को मात्र 4,250 रूपये प्रतिमाह में एक शिक्षित प्रशिक्षु हासिल हो जायेगा, जिसे ट्रेनिंग और काम के बदले में सेवा प्रदाता को अन्य स्टाफ की तुलना में काफी कम वेतन देना होगा। इस प्रकार देश में बेरोजगारी के साथ-साथ अकुशल कामगार की समस्या भी बड़े पैमाने पर हल की जा सकती है। 

चीन में 50 से 60 के दशक में भी पारंपरिक चीनी अपरेंटिसशिप मॉडल के तहत विभिन्न उद्योगों को 70 लाख तकनीकी प्रशिक्षु हासिल हुए थे। 80 का दशक आते-आते चीन में काम पर तैनात होने से पहले ही औपचारिक स्कूली शिक्षा में ट्रेनिंग पर जोर देने से वहां के युवाओं में तकनीकी कौशल और ज्ञान में गुणात्मक वृद्धि देखने को मिली। 2014 के बाद से चीन में अपरेंटिसशिप को और आधुनिक बनाने की पहल ली गई, जिसके तहत एक नियोजित अर्थव्यस्था में कौशल उन्नयन पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इसके तहत करीब 1 करोड़ से भी अधिक छात्रों को व्यावसायिक कालेजों में प्रशिक्षित किया गया, जिन्हें आधुनिक उद्योगों के निरंतर संपर्क और बदलती जरूरतों से वाकिफ कराया गया।  

भारत में व्यावसायिक प्रशिक्षण की दशा-दिशा 

भारत में हालांकि अभी भी इस बारे में कोई पहल की योजना नहीं है, जिसके चलते आज भी आईटीआई और पोलिटेक्निक या इंजीनियरिंग कॉलेजों में पाठ्यक्रम 30-40 साल पुराने हैं, जो आज के दौर की तेजी से बदलती प्रौद्योगिकी से मेल नहीं खा पाते हैं। यही कारण है कि औपचारिक तकनीकी दक्षता हासिल होने के बावजूद भारत में नियोक्ताओं को स्किल्ड वर्कफ़ोर्स की कमी का रोना रोते देखा जा सकता है। इसलिए 12वीं या डिप्लोमा पास छात्र को जब अपरेंटिसशिप के तहत श्रमशक्ति में शामिल किया जायेगा, तो उस दौरान भी सैद्धांतिक पहलू के अभाव में उसके लिए सीमित कौशल विकास ही संभव होगा। इसे दूर करने के लिए भारत में चीन, जर्मनी, अमेरिका और ब्रिटेन की तरह स्कूली शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण को जोड़ना एक प्रमुख चुनौती बनी रहने वाली है। 

भारत में रोजगार के सवाल पर अर्थशास्त्री डॉ. संतोष मेहरोत्रा लिखते हैं कि 2023 तक देश में 57 करोड़ लोग श्रम शक्ति के हिस्से के तौर पर कार्यरत हैं, लेकिन मात्र 6 लाख लोगों को ही अपरेंटिसशिप के तहत प्रशिक्षण दिया जा रहा है। केंद्रीय बड़े सार्वजनिक उपक्रमों एवं राज्य सार्वजनिक उपक्रमों के अलावा कॉर्पोरेट और एमएसएमई में अपरेंटिसशिप को नहीं अपनाया जा रहा है। यही वजह है कि 2022 से 2023 के बीच युवाओं में बेरोजगारी की दर दोगुने से ज्यादा रफ्तार से बढ़ी है और सीएमआईई के आंकड़ों के मुताबिक तो 2023 तक 20 से 24 आयुवर्ग में बेरोजगारी की दर 44% तक पहुंच गई है। 

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने भी भारत के जनसांख्यकीय लाभांश के 2036 तक कायम रहने की बात कही है। उसके अनुसार 2021 तक भारत के पास 27% युवा आबादी थी, जो 2036 तक घटकर 21% रह जाने वाली है। अगर भारत को भी चीन की तरह अपने जनसांख्यकीय लाभांश का लाभ उठाना है तो उसे हर कीमत पर देश में उपलब्ध युवा श्रम शक्ति को यथोचित काम उपलब्ध कराने पर अपनी उर्जा लगानी चाहिए। क्योंकि 2050 तक आते-आते भारत भी बूढों के देश की दिशा में अग्रसर हो जायेगा, जिसमें अपेक्षाकृत कम युवाओं के कंधों पर एक बड़ी आबादी का बोझ होगा। आईएलओ ने भी अपरेंटिसशिप की वकालत करते हुए भारत के युवाओं को जल्द से जल्द श्रम बाजार में शामिल करने का सुझाव दिया है।           

मोदी शासन के दौरान कानून में बदलाव लेकिन इच्छाशक्ति का अभाव 

हालांकि एनडीए शासन में भी 1961 के बाद  2019 में अपरेंटिसशिप कानून में आवश्यक सुधार लाकर इसे ज्यादा प्रभावी बनाने की दिशा में कदम उठाए गये हैं। इसके तहत हर औद्योगिक या व्यावसायिक संस्थान, जिसमें 30 या अधिक संख्या में श्रम शक्ति कार्यरत है, को हर वित्तीय वर्ष के दौरान 2.5% से लेकर 15% अपरेंटिसशिप को लागू करना होगा। इसमें से 5 प्रतिशत फ्रेशर्स और कौशल प्रमाणपत्र हासिल करने वाले युवाओं को भर्ती करना होगा। इसके अलावा केंद्र सरकार की ओर से शिक्षा मंत्रालय द्वारा शुरू किये गये कार्यक्रम, नेशनल अपरेंटिसशिप प्रमोशन स्कीम (एनएपीएस) और नेशनल अपरेंटिसशिप ट्रेनिंग स्कीम (एनएटीएस) के तहत फ्रेश बीटेक स्नातकों, डिप्लोमाधारकों और सामान्य स्नातकों के लिए अपरेंटिसशिप कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी। 

लेकिन मोदी सरकार के तहत इस कानून को लागू करने को लेकर कोई ठोस योजना नहीं बनाई जा सकी। पिछले महीने केंद्र सरकार की नींद तब खुली, जब कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के दौरान अपनी गारंटियों में अपरेंटिसशिप कानून के माध्यम से हर शिक्षित युवा को एक वर्ष तक रोजगार की गारंटी देने का वादा किया। केंद्र सरकार ने तत्काल 2019 कानून का हवाला देते हुए अपरेंटिसशिप पोर्टल पर पंजीकृत करीब 1.80 लाख कंपनियों को नोटिस भेजकर अपरेंटिसशिप कानून के तहत अपने-अपने कोटे के तहत युवाओं को शामिल करने का निर्देश दिया है। 

बिजनेस स्टैण्डर्ड अख़बार के मुताबिक इनमें से मात्र 20,000 कंपनियां ही इस नियम का पूरी तरह से पालन कर रही हैं, जबकि 44,000 आधे-अधूरे तरीके से पालन कर रही हैं। अपरेंटिसशिप एक्ट की धारा 30 के तहत यदि किसी कंपनी के द्वारा नियम का पालन नहीं किया जाता है तो पहले 3 माह तक उसे प्रति अपरेंटिस पर 500 रूपये का जुर्माना लगाया जायेगा, जो तीन माह बाद बढ़कर प्रतिमाह 1,000 रूपये वसूला जायेगा। इस कानून के तहत स्नातक स्तर वाले अपरेंटिस कर्मी को 9,000 प्रतिमाह और स्कूली स्तर तक पढ़ाई करने वाले प्रशिक्षु के लिए 5,000 रूपये प्रतिमाह का प्रावधान किया गया था।  

कांग्रेस पार्टी के घोषणापत्र की ड्राफ्टिंग कमेटी के एक प्रमुख सदस्य और आल इंडिया प्रोफेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष प्रवीण चक्रवर्ती के अनुसार, अगर देश में उनकी सरकार बनती है तो 25 वर्ष या उससे कम उम्र के हर युवा डिप्लोमा या समकक्ष को उनकी सरकार अपरेंटिसशिप कानून के तहत एक वर्ष के लिए रोजगार की गारंटी मुहैया कराएगी, और इसके बदले में उन्हें एक साल में एक लाख रूपये का मेहनताना दिया जायेगा। इस बारे में उन्होंने बड़े पैमाने पर उद्योगों और उद्योग संगठनों सहित एमएसएमई से वार्ता की है, जो अपेक्षाकृत कम खर्च में प्रशिक्षु युवा स्कीम को अपने लिए फायदेमंद मान रहे हैं। उनका अनुमान है कि करीब 10 लाख कंपनियों को इसके तहत लाया जा सकता है और शुरू में 30 से 40 लाख युवाओं की ओर से इस स्कीम तहत रोजगार की मांग को आसानी से पूरा किया जा सकता है। सरकार और सेवा प्रदाता के बीच में अपरेंटिसशिप करने वाले युवाओं का खर्च साझा कर सरकार, सेवा प्रदाता और देश के युवा सभी के लिए यह स्कीम लाभदायक होने जा रही है। 

निश्चित रूप से कांग्रेस की यह पहल स्वागत योग्य है। इसके माध्यम से न सिर्फ देश के करोड़ों युवाओं को निराशा की गर्त में जाने से बचाया जा सकता है, बल्कि कुशल श्रम शक्ति के अभाव में जिन देशी और विदेशी कंपनियों को अभी तक भारत में निवेश को लेकर अनिक्षुकता बनी हुई थी, वे भी सकारात्मक रुख अख्तियार कर सकते हैं। लेकिन इसके साथ ही भारत में श्रम आधारित उद्योग-धंधों एवं कृषि उत्पाद से संबंधित उद्योगों एवं प्रसंस्करण पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित करना होगा, ताकि करोड़ों युवाओं के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये जा सकें। इसके साथ ही पश्चिमी देशों एवं चीन की तरह तेजी से स्कूली शिक्षा के साथ व्यावसायिक प्रशिक्षण को प्रयोगात्मक स्तर पर जोड़ना वक्त का तकाजा है, जिसके बगैर भारत सही मायनों में एक आधुनिकतम औद्योगिक राष्ट्र बनने की कल्पना तक नहीं कर सकता। कांग्रेस पार्टी ने इस दिशा में पहल लेकर, 1990 में नवउदारवादी अर्थव्यस्था की शुरुआत के बाद गंभीरता से उसके दुष्परिणामों पर भी विचार किया है, जिसे निश्चित रूप से एक स्वागत योग्य कदम माना जाना चाहिए।

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