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 पहली बार देश की जनता की ओर से पूछे गए सांसदों के सवाल ही उड़ा दिए गए

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*सुसंस्कृति परिहार

भारतीय संसद में लोकसभा और राज्यसभा दो सदन हैं लोकसभा में सीधे जनता के मत से चुने लोग आते हैं जबकि राज्यसभा में राज्यों के विधायक अपने सांसद का चयन करते हैं 14सदस्य मनोनीत होते हैं जिनमें सामाजिक क्षेत्र से जुड़े कलाकार, समाजसेवी, साहित्यकार आदि होते हैं। जो दोनों में जनता की आवाज रखते हैं।यह 1952में गठित पहली संसद से चला आ रहा है।चयनित लोग अपनी आंचलिक भाषाओं में अपने विचार भी रख सकते हैं जिनका बराबर तर्जुमा होता रहा है।ताकि कोई भी सांसद अपनी बात रखने से वंचित ना रह पाए।

इस गरिमामय परिपाटी का हश्र 2014में बनी संघनीत भाजपाई  सरकार ने जिस तरह गिराकर संविधान और लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाई हैं वह देश की जनता के लिए अत्यंत दुखदाई है। पहले विपक्ष की आवाज को दफ़न करने स्पीकर महोदय माईक बंद करवा देते थे।आज पहली बार यह हुआ कि देश की जनता की ओर से पूछे गए सांसदों के सवाल ही उड़ा दिए गए जिसे विपक्ष के नेता कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और सांसद राहुल गांधी ने रखे थे। एक भाजपा सांसद के वे शब्द भी निकाले गए जो राहुल के सवालों के इर्द-गिर्द थे। इससे वे फंस सकते थे अपने ही जाल में।

दलील ये दी गई कि जो सवाल विपक्ष ने उठाए उनकी सत्यता के प्रमाण और तथ्य नहीं रखें गए। स्पीकर जी आपने निष्पक्षता से काम नहीं किया। कोई भी सवाल जो अखबार में छपा है,जिसकी कलई विदेशों में भी खुल रही है जिससे अडानी की ही नहीं भारत सरकार की साख दांव पर है।जीवन बीमा निगम, स्टेट बैंक आदि में सुरक्षित राशि डूबने से निवेशक कोहराम मचाए हुए हैं यदि उनके सांसदों की आवाज़ भाषणों में से हटाई गई है तो यह लोगों के साथ की गई  बहुत बड़ी खिलवाड़ है। जहां तक तथ्यों का सवाल है विपक्षी नेताओं के पास कोई ऐसी एजेंसियां तो हैं नहीं जिससे वह तथ्य जुटाए। आपके अख़बार जो छाप रहे हैं उसकी बात भी यदि गलत है तो यह तो मोदी मीडिया का भी सरासर अपमान है। यूं तो पहले से ही इस पर विश्वास आपने तोड़ा है अब उनकी भी उपेक्षा यह कैसा व्यवहार है। अखबार तो लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है? फिर वे सब सिर्फ जांच कमेटी की ही मांग तो कर रहे थे।

बताया जा रहा है पिछले छै महीने से भाषणों के सवालीय अंश हटाए जाने लगे हैं क्योंकि संसदीय भाषण के रिकार्ड में जब सवालात ही नहीं होंगे तो पी एम की कोई जवाबदेही नहीं रहेगी।इस तरीके से पी एम ने सवालातों से बचकर 2014 के पूर्व की कांग्रेस सरकार गलतियों में नमक मिर्च लगाकर जिस आवेश में सदन में बोला वह पूरी तरह असंसदीय था उसकी चर्चा बेवजह थी जो लोग अब संसद में नहीं हैं सिर्फ सरकार के कामकाज की चर्चा होनी थी ।इस दौरान  अडानी मोदी भाई भाई के नारे प्रतिपक्ष पूरे भाषण में लगाता रहा उनकी तरफ संसद का कैमरा भी नहीं पहुंचा यह स्पीकर का कैसा संसदीय व्यवहार है ? इस व्यवहार से स्पीकरों की निष्पक्षता पर भी प्रश्नचिन्ह लगता है।पी एम महोदय का भाषण के अंत में ये दो बार ये कहना कि एक अकेला -सब पर भारी उनकी तानाशाही मानसिकता का परिचायक है।

राहुल गांधी बहुत पहले और भारत जोड़ो यात्रा में कहते हैं कि उनकी आवाज़ सदन में सुनी नहीं जाती इसलिए उन्हें इस यात्रा में निकलना पड़ा।अब उनकी आवाज़ को कतर दिया गया लेकिन कतरनें वाले ये नहीं जानते कि उनकी आवाज़ सोशल मीडिया के ज़रिए और सदन में हुई स्पीच को इंटरनेट के ज़रिए देश और विदेश में सुना गया उसका क्या होगा?

बहरहाल, असंसदीय शब्द निकालने की जो परिपाटी संवैधानिक तौर पर मौजूद है उसमें ये भाषण नहीं आते हैं।इस बात सदन में  खुले स्तर पर बहस होनी चाहिए यदि यह मुनासिब ना हो तो संसद के इस असंसदीय व्यवहार को सड़कों पर लाना ही होगा वरना ताली पीटने वाले सांसद भी अपना वजूद यूं खोते जायेंगे और एक दिन भारत में जनता की आवाज सदा के लिए ख़ामोश हो जाएगी तथा संविधान सिसकियां लेता रह जायेगा।

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