अग्नि आलोक

जश्न में माफी तो बनती है!

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(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)*

ये विरोधी तो लगता है कि मोदी जी की हर बात का ही विरोध करने की कसम खाए बैठे हैं। बताइए, मोदी की डबल इंजन सरकारों ने जब भीमा-कोरेगांव मामले में सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में बंद किया, जब सीएए-विरोधियों को जेलों में बंद किया, किसानों को जेलों में बंद किया, कप्पन-जुबैर टाइप के पत्रकारों को जेल में बंद किया, लेखकों-कार्टूनिस्टों-पेंटरों वगैरह को जेलों में बंद किया, विपक्षी सरकारों के मंत्रियों को जेलों में बंद किया, जम्मू-कश्मीर में तीन-तीन पूर्व-मुख्यमंत्रियों समेत सारे राजनीतिक कार्यकर्ताओं को जेलों में बंद किया, तब विपक्ष वाले शोर मचा रहे थे कि लोगों को जेलों में क्यों ठूंसा जा रहा है? हालांकि, सरकार “डॉटा नहीं है, डॉटा नहीं है” ही कहती रही, भाई लोगों ने तो जोड़ लगाकर यह भी बता दिया कि मोदी जी के राज के आठ साल में, उससे पहले के दस साल से कितने गुना ज्यादा सरकार-विरोधियों को जेलों में ठूंसा गया है। सरकारी डॉटा नहीं था, न्याय की देवी की तरह मीडिया ने भी खुद ही अपनी आंखों पर पट्टी बांध रखी थी, फिर भी विरोधियों ने मोदी जी की सरकार की इतनी बदनामी की कि भूख-गरीबी-सेकुलर राज वगैरह की तो छोड़ो, डैमोक्रेसी के सूचकांक पर भी विदेश वालों ने नये इंडिया को तेजी से नीचे लुढक़ा दिया और साल-दर-साल लुढक़न नाप कर किसी ने चुनावी तानाशाही, तो किसी ने आंशिक तानाशाही कहना शुरू कर दिया। और खुद अपने देश में विपक्षियों ने तो मोदी जी के राज को बाकायदा तानाशाही कहना भी शुरू कर दिया था।

पर अब, जब अमृत काल में मोदी जी इस इमेज में सुधार कर रहे हैं, जो पहले से जेलों में बंद हैं, उन्हें अमृत काल वाली खास माफी देकर जेलों से छुड़वा रहे हैं, तो विरोधियों को उसमें भी प्राब्लम है। कह रहे हैं कि गुजरात की मोदी जी की डबल इंजन से भी फालतू पॉवर वाली सरकार ने, बिलकिस बानो के साथ हैवानियत करने वालों को माफी देकर कैसे छोड़ दिया? जिन्हें 2002 के दंगे के समय सामूहिक बलात्कार और बिलकिस बानो की तीन साल की बेटी समेत, उसके परिवार के सात लोगों की हत्या के लिए, आजीवन कैद की सजा मिली थी, उन ग्यारह मुजरिमों को माफी देकर कैसे घर भेज दिया! यानी मोदी जी किसी को जेल भेजें तो भी विरोध। और किसी मुजरिम को माफी देकर जेेल से छुड़वाएं तो भी विरोध। बेचारे मोदी जी करेंं भी तो क्या करें?

फिर यह सिर्फ 11 कैदियों की रिहाई का ही विरोध थोड़े ही है। यह पूरे 11 हिंदू कैदियों की रिहाई का विरोध है। बताइए, हिंदू कैदियों की रिहाई अगर हिंदुस्तान में नहीं होगी, तो क्या पाकिस्तान या अफगानिस्तान में होगी? फिर यह सिर्फ 11 की संख्या का मामला नहीं है, जो वैसे भी शुभ होती है। यह तो शरीर अलग होंगे, पर एक संकल्प और एक कर्म से बंधे, 11 संगठनबद्घ हिंदुओं की रिहाई का विरोध है। और हिंदू भी मामूली नहीं। माफी का फैसला देने वाली कमेटी ने बताया है कि इनमें ज्यादातर ब्राह्मïण थे, संस्कारी और पूजनीय। यह हमारे पूजनीयों की रिहाई का विरोध कर के, हिंदुओं की भावनाओं को जान-बूझकर को ठेस पहुंचाने का मामला है। और यह सिर्फ हिंदू समुदाय का ही नहीं, समूचे राष्ट्र  का ही विरोध है। आखिरकार, अमृतकाल तो पूरे राष्ट्र का है। विरोधी क्या यह कहने की कोशिश कर रहे हैं कि अमृतकाल के अपने जश्न में नया इंडिया, 11 बलात्कारियों को माफ भी नहीं कर सकता है! नेहरू-गांधी वाला पुराना, कमजोर भारत समझ रखा है क्या? छप्पन इंच की छाती सिर्फ दिखाने के लिए थोड़े ही है।                                  

*(व्यंग्य लेखक वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं। संपर्क : 9818097260)*

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