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*लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए गेमचेंजर साबित होंगे पूर्व मुख्‍यमंत्री कमलनाथ*

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*विजया पाठक, एडिटर, जगत विजन*

कमलनाथ जी का राजनीतिक जीवन वृतांत देखा जाये तो वह ”लार्जर देन लाईफ” जैसा दिखाई देता है। है। उन्‍होंने कभी भी पद को प्रमुखता नहीं दी है। उनके लिए पद कोई मायने नहीं रखता है। जिसे हम कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी भंवर जितेन्द्र सिंह के बयान से भी समझा जा सकता है। बीते दिनों भंवर जितेन्द्र सिंह भोपाल के दौरे पर थे। इस दौरान उन्होंने सभी चर्चाओं पर पड़े पर्दे को हटाते हुए स्पष्ट कर दिया कि कमलनाथ जी ने तो नैतिकता के आधार पर चुनाव नतीजे आने के बाद अगले दिन ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इसलिये यह कहना गलत होगा कि पार्टी ने कमलनाथ से इस्तीफा लिया। भंवर जितेंद्र सिंह का कहना है कि कमलनाथ जी प्रदेश ही नहीं देश के बहुत बड़े नेता हैं। कमलनाथ जी ने अपना इस्तीफा नैतिक जिम्मेदारी मानते हुए चुनाव परिणाम आने के अगले दिन ही दे दिया था। उसके बाद शीर्ष नेतृत्व ने यह तय किया जब तक नए अध्यक्ष नहीं बनते तब तक वह लगातार रहेंगे। और जो भी इस तरह की कोई बात जो मीडिया द्वारा उठाई जा रही है। किसी ने भी बोला है वह उसकी पर्सनल ओपिनियन हो सकती है। अखिल भारतीय कांग्रेस उनका बहुत सम्मान करती है। हम सब उनका बहुत सम्मान करते हैं। हमारे प्रदेश के बहुत बड़े नेता हैं और आगे भी रहेंगे।

    मध्‍यप्रदेश कांग्रेस में वरिष्ठजनों को पद से दूर रखने की कवायद शुरू हो गई है। यही कारण है कि पूर्व मुख्यमंत्री व प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने खुद ही आगे बढ़कर विधानसभा चुनाव समाप्ति के बाद पद से इस्तीफा देने का फैसला किया। सवाल यह है कि अगर राजनीति में वरिष्ठजनों को इस तरह से पदविहिन कर किनारे करने का फैसला निरंतर लिया जाता रहेगा तो फिर लोकतंत्र किसके हाथों में होगा। जिस तरह से प्रदेश से कमलनाथ के साथ किया है उससे आने वाली पीढ़ी में अभी से ही असुरक्षा का भाव जागृत हो गया है।

*लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए गेमचेंजर साबित होंगे कमलनाथ*

कांग्रेस आलाकमान ने भले ही भाजपा की चाल देखकर प्रदेश अध्यक्ष बदलने का फैसला लिया हो, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि कांग्रेस आलाकमान का यह फैसला पार्टी को नुकसान पहुंचा सकता है। कमलनाथ एक मात्र ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपने राजनैतिक अनुभवों के आधार पर ही राज्य में कांग्रेस को संगठित कर एक सूत्र में पिरोया और पूरे दमखम के साथ चुनाव में उतरे। यही नहीं पार्टी के अंदर जो भी कार्यकर्ताओं और विधायकों, राजनेताओं के बीच आपसी मनभेद और मतभेद थे उन्हें सबको समाप्त कर उन्होंने पार्टी को मजबूती दी। यह उन्हीं की योजना का हिस्सा था कि वे इस बार पूरे दल-बल के साथ लोकसभा चुनाव में उतरने के लिये तैयार थे, लेकिन कांग्रेस आलाकमान के इस फैसले से पूरी योजना अधर में लटक गई।

    दरअसल, राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 230 सीट में से महज 66 सीटें मिली। नतीजे आने के अगले दिन से ही लगातार यह चर्चा जोरों पर रही कि कमलनाथ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। सोशल मीडिया पर एक पत्र भी वायरल हुआ था, जो कमलनाथ के प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने से संबंधित था।

*तो बढ़ सकती हैं लोकसभा में सीटें*

विशेषज्ञों के अनुसार कमलनाथ में वो काबिलियत है जो शायद ही पार्टी के किसी अन्य नेता में है। कमलनाथ ही एक मात्र वह व्यक्ति हैं जो पार्टी को लोकसभा चुनाव में मजबूती दे सकते हैं। उन्होंने कुछ वर्षों में मध्यप्रदेश में रहकर जमीनी स्तर पर कार्य किया है। निश्चित ही उससे आने वाले समय में पार्टी को लाभ मिलता, लेकिन अब स्थितियां बिल्कुल उलट होती प्रतीत हो रही हैं।

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