सनत जैन
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब बुधवार को पेश कर दिया है। चुनाव आयोग ने जो हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में दायर किया है। उसमें कहा गया है, फार्म 17 सी की जानकारी मतदान एजेंट को ही देने का प्रावधान कानून में है। कानून में अन्य किसी व्यक्ति को या किसी संस्था को जानकारी देने का कानून में कोई उल्लेख नहीं है। इसे सार्वजनिक कर देने से आम मतदाताओं के बीच में भ्रम फैल सकता है। चुनाव आयोग ने कहा है, डाक मत पत्र की जानकारी फार्म 17c में नहीं होती है ऐसी स्थिति में यह जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती है। फार्म 17c में पीठासीन अधिकारी को ईवीएम और वीवीपेट मशीनों के नंबर लिखने होते हैं। मतदान केंद्र में कितने वोटर पंजीकृत हैं। उसमें से कितनो ने मतदान किया है। उसमें कितने महिला थे और कितने पुरुष थे। जब मतदान खत्म हो जाता है, तब ईवीएम की क्लोज बटन दबाने के बाद पीठासीन अधिकारी को मतदान से संबंधित पूरी जानकारी एक ही बटन दबाने से मिल जाती है। पीठासीन अधिकारी फॉर्म 17 सी में यह जानकारी भरकर जितने भी उम्मीदवार के प्रतिनिधि होते हैं। उनको देने का नियम है।
पूर्व चुनाव आयुक्त वाईएस कुरैशी ने अपने एक साक्षात्कार में कहा, 2014 में चुनाव आयोग द्वारा फार्म 17 की जानकारी पोर्टल में चुनाव खत्म होने के 24 घंटे के अंदर अपलोड की जाती थी, जिसके कारण प्रत्येक संसदीय क्षेत्र में कितने मतदाता हैं, किन-किन मशीनों का उपयोग किया गया है। उनके नंबर क्या है। उस मतदान केंद्र में कुल कितने पंजीकृत मतदाता थे। उसमें कितनों ने मतदान किया है। स्त्री,पुरुषों ओर ट्रांसजेंडर कितने थे, यह सभी जानकारी फॉर्म 17 में सी शामिल होती है। यह कोई गोपनीय जानकारी नहीं होती है। जिससे चुनाव कहीं प्रभावित हो सके। चुनाव सुधार कार्यक्रम के तहत समय-समय पर नए-नए नियम चुनाव आयोग द्वारा सभी राजनीतिक दलों की सहमति से तैयार किए गए हैं।
सार्वजनिक जानकारी को गोपनीय बनाने के कारण अब चुनाव आयोग के ऊपर तरह-तरह के आरोप तथा विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। 24 मई से सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यों की खंडपीठ चुनाव आयोग से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई करने जा रही है। चुनाव आयोग ने मतदान से संबंधित जानकारी केवल प्रतिशत के आधार पर, प्रथम चरण के मतदान की जानकारी 11 दिन बाद और द्वितीय चरण के मतदान की जानकारी चार दिन बाद चुनाव आयोग के पोर्टल पर अपलोड की थी। इसको लेकर देश भर के भाजपा को छोड़कर सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग से डेटा प्रकाशित करने की मांग की थी। चुनाव आयोग ने अपना नया नियम बना लिया है। परंपरा से जो जानकारी अभी तक दी जा रही थी, उसको छुपाने के पीछे जो तर्क चुनाव आयोग द्वारा दिया गया है, वह वैसा ही तर्क है जो इलेक्ट्रोल बांड को लेकर सरकार और स्टेट बैंक सुप्रीम कोर्ट में देती रही है। इलेक्टोरल बांड लाया ही इसीलिए गया था कि चुनाव में प्रदर्शित आये। पारदर्शिता के नाम पर गोपनीयता का जो खेल सरकार खेल रही थी। उसे सुप्रीम कोर्ट ने उजागर कर दिया।
इसी तरह से वर्तमान चुनाव आयोग की कलई को पूर्व चुनाव आयुक्त कुरैशी ने उजागर कर दिया है। फार्म 17 सी की जानकारी क्यों जरूरी है। यह उन्होंने बता दिया है। मतगणना के समय सभी उम्मीदवारों के पास यह जानकारी उपलब्ध होती है। मतगणना के समय वह ईवीएम मशीनों के नंबर को चेक कर सकते हैं। ईवीएम सील होने के समय जितना मतदान हुआ था: उसका आंकड़ा उम्मीदवार के पास होता है। इससे चुनाव को लेकर सभी पक्षों का विश्वास बढ़ता है। लाखों ईवीएम मशीनें गायब हैं। जिसकी जानकारी चुनाव आयोग नहीं दे पा रहा है। उल्टे जानकारी को छुपा रहा है।
चुनाव अधिसूचना जारी होने के बाद से चुनाव आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायतों का निपटारा चुनाव आयोग द्वारा तय समय सीमा पर नहीं किया गया है। पांचवें चरण का मतदान संपन्न हो चुका है। हर चरण के बाद प्रेस कांफ्रेंस करके चुनाव आयोग सभी जानकारी प्रेस के साथ साझा करता था। वहीं पोर्टल पर सारी जानकारी उपलब्ध होने के कारण चुनाव आयोग की निष्पक्षता मतदाताओं के सामने होती थी। मतदाताओं और राजनीतिक दलों में चुनाव आयोग को लेकर विश्वास बना रहता था। यह विश्वास वर्तमान चुनाव आयोग के कार्यकाल में समाप्त हो गया है। जितनी आलोचना इस चुनाव आयोग के पदाधिकारियों की हो रही है। इसके पहले कभी भी इस तरह की आलोचना चुनाव आयोग की नहीं हुई है।
चुनाव खत्म होने के बाद मतदान का जो प्रतिशत बताया गया। कई दिनों के बाद चुनाव आयोग के आंकड़े में 5 से 6 फ़ीसदी की वृद्धि हो गई। चुनाव आयोग राज्यवार और संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं की संख्या पांच चरण के चुनाव समाप्त हो जाने के बाद भी नहीं बता पा रहा है। चुनाव आयोग ने प्रतिशत कैसे निकाला है, यह भी जानकारी नहीं दी जा रही है। चुनाव आयोग राजनीतिक दलों के किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं देता है। सूचना अधिकार कानून के तहत भी जानकारी नहीं दी जा रही है। जिसके कारण चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर प्रश्न चिन्ह लग चुका है। चुनाव आयोग को कोलकाता हाईकोर्ट की कड़ी फटकार चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन वाले मामले में लग चुकी है। उसके बाद भी चुनाव आयोग के रवैया में कोई परिवर्तन देखने को नहीं मिल रहा है।
ऐसा लगता है कि चुनाव आयोग को मौजूदा केंद्र सरकार के ऊपर विश्वास है। चुनाव आयोग को शायद यह भी लगता है, कि न्यायपालिका के अधिकार सीमित है। चुनाव को लेकर वह जो करेंगे वही सही होगा। वर्तमान स्थिति को देखते हुए कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सीताराम केसरी की याद आना स्वाभाविक है। जब वह कहा करते थे, खाता ना बही, केसरी जो कहे वह सही। यही अब चुनाव आयोग के बारे में होता हुआ हम देख रहे हैं।