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फोर्ट्रेस नेशन, दैट वाज इंडिया

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दुनिया के सर्वाधिक सुरक्षित देशों में एक भारत था। बनावट ऎसी, मानो किसी किले के दीवार, और पानी भरी खाई से सुरक्षित हो। 

खैबर, बलूचिस्तान से कुछ दरवाजे पश्चिम में खुलते है। पर पूरे इतिहास में उधर से सिकन्दर, और कासिम के अलावे, कोई न आया। 

विश्व इतिहास के रंगमंच, याने यूरोप और पश्चिम एशिया से हमारी अत्यधिक दूरी भी फायदेमंद थी। तो मध्यकाल के संघर्षों, और दोनो विश्वयुद्ध की विभीषिका से भारत दूर रहा। 

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किले के भीतर ही विशाल भूभाग, और वैविध्य था। तो हजार साल जो सँघर्ष हुए, आंतरिक ही थे। राजा और राजवंश, किले के भीतर ही सत्ता कायम करके संतुष्ट थे। 

खास हालात में फंसे राजेन्द्र चोल और जयपाल को छोड़, किसी को किले से बाहर निकलने की जरूरत न महसूस हुई।पर शांति के इस दौर में हमारी रवायतें कुछ यूँ बनी, जिसने समाज को विभाजित रखा।

समाज का 90% हिस्सा, शूद्र या निम्न था, कृषक था। राज आते जाते, लेकिन उनका जीवन सदियों से वैसा ही रहा। तो भारतवासियों में जागृत राजनीतिक चेतना, और एका का भाव, कभी रहा नही। 

कोउ नृप होय, हमे का हानि..?

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इसका फायदा अगले हजार सालों में आये आक्रांताओं को मिला।वे मध्य एशिया से आये, रियासत दर रियासत जीतते गए। फिर यहीं टिक गए। 

निम्न जातियां उनसे मिल गयी, उनका धर्म अंगीकार किया, बराबरी पाई और सत्ता में हिस्सेदारी भी.. 

जब मुगल दरबार में स्थानीय रजवाड़ो को भी इज्जत मिली, राज सुरक्षित रहने का आश्वासन मिला, तो वे भी बेखटके अधीनस्थ हो गए। 

पर समाज में, रजवाड़ों में आपसी रंजिश की आदत बनी रही। तो जब अंग्रेजो ने भारत मे पैर जमाये, तो कदम कदम पर भारतीयों ने सहायता की। 

इतिहास गवाह है कि टीपू को नेस्तनाबूद करने  मराठे और निजाम, उनके साथ थे। सिराज को क्लाइव ने नही, मीरजाफर ने हराया था। 

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अंग्रेजी राज विष था, तो अमृत भी।यूरोप के पुनर्जागरण की 300 वर्ष की जमापूंजी, भारत पर भी बूंद बूंद टपकी। उन्होंने हमें सिंगल पोलिटिकल यूनिट में ढाला। 2000 साल में मौर्य और औरंगजेब के बाद यह करने वाले, वो महज तीसरी ताकत थे। 

उन्होंने राजव्यवस्था को भी हमेशा के लिए बदल दिया। लिखित विधान की परिपाटी दी। पश्चिमी पद्धति की शिक्षा, न्याय व्यवस्था, पुलिस, कानून, रेल, जेल और मेल याने डाक व्यवस्था दी। 

भारत मे बांध, सड़क, पुल, नहरें “सरकारी पहल” से बनने लगी। हां, यह सब उन्होंने अपने स्वार्थ के लिए किया, भारी कीमत लेकर किया। लेकिन उन्होंने, पहली बार यह किया।

लिच्छवी गणतंत्र के बाद इस देश मे पहली बार, विधायी सरकारें आयी। मैं 1937 में 11 स्टेट में बनी सरकारो की बात कर रहा हूँ। 

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लेकिन अपनी सत्ता दीर्घ करने के लिए धार्मिक खाई चौड़ी करने की चाल, जो चली, उसने स्थाई डेमेज किया। दो राष्ट्र का सिद्धांत उछला, और इस किले के परकोटे के भीतर ही 3 राष्ट्र बने। 

ये अप्राकृतिक राष्ट्र थे। खेतों के बीच तार लगाकर बनाई ये सीमाएं कृत्रिम थी। ये विभाजन कृत्रिम था, और इस तारबंदी के दोनो ओर का विरोधाभास भी कृत्रिम था।

अंतर दो समुदायों में पूजा पद्धति का था।कीर्तन और नमाज यहाँ  सदियों तक कोएग्जिस्ट की, क आगे भी करती। मगर यह कबीलेबन्दी का बहाना बनाया गया।

और फिर भारत ने अपने ही बदन से, अपना ही जानी दुश्मन पैदा कर लिया। अनंत काल तक के लिए बगल मे जगह दी,

उससे लड़ने लगा। भला कितने देश, कितने समाज ऐसा करते है ? 

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फिर एक और गलती की। हिमालय की ओर, जिन सीमाओं पर कोई ऐतिहासिक क्लेम नही था, हमने बढ़ चढ़कर दावे किए। नतीजा, एक औऱ दुश्मन पैदा होना था। 

तो आज पूरब में निगाह डालो, तो दुश्मन है। पश्चिम में निगाह डालो तो दुश्मन है। दुश्मन पूरब और दुश्मन पश्चिम जहां मिलते हैं, वो कश्मीर भी दुश्मन है। 

अगर इससे जी शांत न हुआ, तो उत्तर पूर्व पर चलें। वहां सीमावर्ती मणिपुर जल रहा है। बाकी के सीमावर्ती राज्यो में असहज शांति है। केवल दक्षिण बच गया था, शांत था। 

पर अब नई संसद बन गयी है। 

तो दक्षिण में शान्ति कुछ बरस की मेहमान है। 

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ईश्वर आपको जब प्रेम करता है, वह एक सुरक्षित स्वर्गिक किला बनाकर देता है। उसमें धन-धान्य, जल, खनिज, और सुंदर संस्कृति देकर, सुख का वरदान देता है। 

पर बहकाये गए मनुष्य स्वर्ग में भी जहरीले फल का लोभ संवरण नही कर पाते। फिर स्वर्ग से निकाले जाते है। अनंत तकलीफों में फेंक दिये जाते हैं। 

हमे बहकाया गया। हम बहके,अपने किले के हिस्से लगाए, अंदर ही दुश्मन पैदा किया, लड़े, अपने बच्चे कुर्बान किये, मगर सबक न सीखा। 

अब फिर लड़ रहे हैं, घर घर मे, आस पड़ोस में गद्दार खोज रहे हैं। हथियारों पर धार कर रहे हैं। 

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शायद इस ईश्वरीय किले के भाग्य में और भी हिस्से होना लिखा हैं। इसलिए कहा.. 

फोर्ट्रेस नेशन , दैट वाज इंडिया!

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