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लोकतंत्र का चौथा स्तभ्म किंकर्तव्यविमूढ़ ?

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शशिकांत गुप्ते

समाचार पत्र प्राप्त होते ही समाचार पत्र की शुरुआत ही मोटरकार के विज्ञापन से होती है,और समाचार पत्र का अंतिम पेज पर कीमती दुपहियां का विज्ञापन दिखाई देता है।
समाचारों में भविष्य में होने वाली कल्पनातीत उपलब्धियों का बखान भी होता है।
वर्तमान में जो भी कुछ समस्याएं हैं,वे भविष्य में ही हल होंगी ऐसे वादें जुमलों में परिवर्तित हो जातें हैं।
हम वर्तमान में भूतकाल पर नुक्ताचीनी करने को ही अपना परम कर्तव्य समझतें हैं।
इस मुद्दे पर प्रख्यात शायर मिर्जा ग़ालिब के इस शेर का स्मरण होता है।
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा

यही हाल इलेक्ट्रॉनिक समाचार माध्यमों का है।
देश के किस राज्य में कितने लोग मुफ्त अनाज प्राप्त कर रहें हैं और कितने लोग कुपोषित हैं,इस मुद्दे पर पक्ष और विपक्ष की बहस के बीच किसी पौष्टिक आहार का विज्ञापन दिखाई देना कितना उचित है?
इस विज्ञापन को देखते ही शायर वसीम बरेलवी का यह शेर याद आ जाता है।
झूठ के आगे पीछे दरिया चलतें हैं
सच बोला तो प्यासा मारा जाएगा

जब भी आसमान छूती महंगाई को लेकर बहस दिखाई देती है।
दूसरी ओर मेहमान नवाजी के लिए बेशक़ीमती साजसज्जा देखकर,शायर इफ़्तिख़ार आरिफ़ का यह शेर सटीक लगता है।
एक चराग़ और एक किताब और एक उमीद असासा
उस के बाद तो जो कुछ है वो सब अफसाना है

(असासा का मतलब गृहस्थी का सामान,असबाब)
(अफसाना मतलब कहानी)
वर्तमान की यही तो हिक़ीक़त है।
आमजन क्या करें।
शायर वसीम बरेलवी फरमातें हैं।
वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीक़े से
मैं एतबार न करता तो क्या करता

इनदिनों एक यह भी मुद्दा बहुत गरमाया हुआ है।
इस असंवेदनशील मुद्दे पर बहुत सोच समझकर बोलना पड़ता है।
इस मुद्दे पर सर्वोदय के प्रणेता गांधीजी के अनुयायी स्वतंत्रता सैनानी आचार्य विनोबा भावेजी के सुविचार प्रासंगिक हैं।
स्वधर्म के प्रति प्रेम,परधर्म के प्रति आदर और अधर्म के प्रति उपेक्षा करनी चाहिए
यह भी सुविचार विनोबाजी ने कहा है।
द्वेष बुद्धि को द्वेष से नहीं मिटा सकतें हैं,प्रेम की शक्ति से ही मिटा सकतें हैं

समझदार को इशारा ही काफ़ी होता है।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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