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*भूत- प्रेत के नाम पर ठगी का मायाजाल*

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           ~ प्रखर अरोड़ा 

“यह भूत बहुत बलवान है इसके लिए सवा मन आटा,  बकरा, बकरी , मुर्गा ,शराब आदि देना पड़ेगा। इसके दिए बिना भूत छोड़कर के नहीं जाएगा।”

   एक ओझा ने जो कि अपनी बच्ची का भूत प्रेत  उतरवाने आया था उससे कहा।

   उसकी बच्ची सुनीता अक्सर बीमार रहती थी। सुनीता की अभी नई-नई शादी हुई थी। शादी को हुए 6 महीना ही बीते थे कि ससुराल में एक बार बेहोश हो गई। उसे परिवार में भूत प्रेत आदि बहुत मानते थे। यही कारण है कि सुनीता का किसी अच्छे डॉक्टर से इलाज की अपेक्षा गांव के एक ओझा को दिखाया।

जहां पर ओझा ने बताया कि इसको ब्रह्म ने पकड़ लिया है बिना मुंडी लिए नहीं छोड़ेगा। इसको भागने के लिए जीव हत्या करनी पड़ेगी!”

      सुनीता के ससुराल के लोग एक नंबर के अंधविश्वासी प्रकृति के थे। जिनकी पीढ़ी दर पीढ़ी अंधविश्वासों में गुजर गए थे। उसकी ससुराल में वार्षिक पूजा के नाम पर बकरा, बकरी ,मुर्गा आदि काटकर देवी देवता के नाम पर भोज चलता था।

    अभी वह नई नवेली दुल्हन थी। इसलिए किसी प्रकार का प्रतिकार नहीं किया । उसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था कि किसी जीव की हत्या की जाए,।

 उसे थोड़ी राहत महसूस हुई। उसकी बेहोशी का कारण देखा जाए तो ऑक्सीजन का अभाव है।

     शादी के बाद जिस जगह उसे रखा गया था वह घर के पीछे का भाग था जो पूर्ण रूप से ढका हुआ था। उसमें किसी प्रकार की खिड़की वगैरा नहीं थी। अधिकांश समय उसे घर के अंदर ही रहना पड़ता था। उसका मन बहुत उलझन में रहता था।इसी उलझन में एक दिन वह बीमार हो गई और उसके घर परिवारों ने स्थित का सही से जायजा न लेकर के उसे ओझाओं के चक्कर में फंसा दिया।

  भारतीय समाज में आज भी भूत प्रेत के चक्कर में हजारों स्त्रियों का धन और धर्म दोनों गवा  रहे हैं। यह ओझा सोखा इतने मक्कार किस्म के लोग होते हैं की सबसे पहले बिना शराब  पिए, बकरा बकरी मुर्गा को चढ़ाए इनका भूत भागता ही नहीं।

       इतना चढ़ाने के बाद भी जब भूत प्रेत की नौटंकी नहीं खत्म होती तो  अन्य बहाने  बनाने लगते हैं। क्या करें हमने तो बहुत कोशिश की अपनी जान लगा दिया, लेकिन भूत इतना बलवान है, भाग नहीं रहा फिर कोई नया बहाना बनाते हैं अब निकारी करनी पड़ेगी ,किसी देवथान में जाकर के बैठाना पड़ेगा आदि आदि।

  सच यह है कि इन ओझाओं सोखाओ में कोई ताकत नहीं होती है। यह सब मात्रा पीढ़ी दर पीढ़ी से चला आ रहा एक प्रकार का अंधविश्वास है। 

  कई कई स्त्रियों को तो भूत प्रेत कुछ नहीं पकड़ा रहता ,मात्र बहानेबाजी किया करती हैं या फिर अपने घर परिवार पति को परेशान करने के लिए नौटंकी करती हैं जो कि उनकी मानसिक समस्या है। इसमें किसी भी भूत प्रेत आदि कि कोई बात नहीं होती।

 जीव को शरीर छोड़ने के बाद अन्यत्र भटकने की कोई व्यवस्था नहीं है ।क्योंकि जीव को अन्य जन्म लेने के लिए एक दिन से 12 दिन के भीतर यह सारी प्रक्रियाएं पूरी हो जाती हैं। इस प्रकार भी किसी को दुख देना, कष्ट देना कैसे संभव हो सकता है?

     अर्थात भूत प्रेत आदि की कोई संभावना नहीं रह जाती है। जो लोग कहते हैं की एक्सीडेंट में मरे हुए की आत्मा भटकती है, भूत प्रेत बनकर उनकी आत्मा फिर जन्म लेती है, तो ऐसा कुछ नहीं होता है।

   व्यक्ति एक्सीडेंट में मरे या व्यक्ति व्याधि से मरे।आत्मा शरीर तभी छोड़ती है जब उसके योग्य शरीर नहीं रह जाती हैं।

  अतः हमें सत्यता को समझना होगा।स्त्रियों में भी प्राचीन काल में ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता है कि किसी को भूत प्रेत की समस्या रही हो ।इतिहास के प्रमाणों का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि मुगलकाल के समय में जब कोई राजा ज्यादा लंपट हो जाता था तो लोग अपनी कन्याओं की अस्मिता की रक्षा के लिए उन्हें भूतोंन्माद का नाटक सिखा देते थे और उसके भीतर कोई भूत -प्रेत, दुष्ट आत्मा पिचास , राक्षस प्रवेश कर गया है इसका प्रचार भी किया जाता था जिससे लंपट राजा ऐसे कन्याओं को परेशान नहीं करता था।

भूत प्रेत की समस्या जिन स्त्रियों को है यह सब मानसिक व्याधियों हैं जिसका ठीक से उपचार किया जाए तो वह ठीक हो जाता है स्त्रियों को बुटादा की समस्या का कारण प्रेम का अभाव है यह भूत का नाटक करके अपने पति या परिवार का प्रेम पाना चाहते हैं माताजी ने स्त्री को भूत-प्रेरताद के समस्या हो उन्हें खूब प्रेम करें उसके दुख दर्द पीड़ा को समझने का प्रयास करें भूलकर भी किसी ओझा सोखा, मियां मजार ,दरगाह पर न जाए। उसका सही प्रकार से मानसिक उपचार करायें।

      वर्तमान समय में देखा जाए तो हमारा पूरा समाज अंधविश्वासों में जगड़ा हुआ है। भोली भाली हिंदू समाज के बहू बेटियां इन ओझाई सोखाई मजार दरगाह आज की पूजा के चक्कर में अपना दीन धर्म सब गवा रहे हैं।

 देखा गया है कि अधिकांश हिंदू ओझा सोखा मजार आदि की पूजा किया करते हैं। कोई व्यक्ति मजार दरगाह पर ना भी जाना चाहे तो यह ओझा सोखा  इतने दुष्ट होते हैं के उसे भी डर भय दिखाकर जाने के लिए मजबूर कर देते हैं।

      पूर्व काल में गांव में शिक्षा का अभाव था। जिसके कारण गांव में जब कोई बीमार होता था तो लोग डॉक्टर के यहां जाने की अपेक्षा ऐसे ओझा गुनिया के पास जाया करते थे। आपने देखा होगा कि यह लोग ऊंट पटांग पूजा आदि करके लौंग को रोगी को खाने के लिए देते हैं। लौंग दर्द नाशक होता है।

     यदि यदि सामान्य दर्द में भी लौंग को मुख में रख लिया जाए तो दांत दर्द , सिर दर्द चक्कर आने में  हल्की सी राहत महसूस होगी। इसमें  किसी देवी देवता का हाथ नहीं है कि उसने ठीक किया है। इसका दूसरा कारण व्यक्ति की मन:स्थित होती है।

      वह जैसी कल्पना करता है उसके साथ वैसा ही होने लगता है। जिस व्यक्ति के मन में यह बैठ गया हो कि हमारी बीमारी भूत-प्रेत के पकड़ने के कारण हुई है और ओझाई कराएंगे तो ठीक हो जाएगा। तो उसके साथ वैसा ही होने लगता है।

     यह सब व्यक्ति के मन में बैठा हुआ विश्वास है जो उसे ठीक कर देता है। यह सारा का सारा खेल मन का है। जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि।

   इसमें किसी भी प्रकार के  ओझा सोखा या किसी दैवी शक्ति का कोई हाथ नहीं होता। 

दूसरी बात है यह है कि भूत का संबंध किसी मरे हुए व्यक्ति से नहीं है। श्रीमद् भगवत गीता में कहा गया है–

   अहमात्मागुडाकेश सर्व भूताशय स्थित. (गीता- १०/२०)

  अर्थात मैं सब भूतों (प्राणियों) के भीतर स्थित हूं। 

        यहां पर भूत का अर्थ जीवित सभी व्यक्तियों से लिया गया है ना कि मरे हुए मुर्दे से। संपूर्ण गीता, श्रीमद् भागवत ,वेद ,उपनिषद् आदि में कहीं भी भूत का अर्थ मृतक व्यक्ति से नहीं लिया गया है।

अब हम कुछ और अर्थ देखते हैं जिससे समझ में आ जाए कि सत्य क्या है असत्य क्या है :

   1.  समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठंति परमेश्वरम् । ( श्रीमद् भगवत गीता १३/२७)

  अर्थात समान रूप से परमेश्वर सभी भूतों ( प्राणियों) में स्थित है।

2. ईश्वर सर्वभूतानां      ह्रदयेशर्जुनतिष्ठति। ( श्रीमद् भगवत गीता १८/६१)

  अर्थात अन्न से सभी भूत प्राणी उत्पन्न होते हैं और वर्षा से अन्न उत्पन्न होता है।

उपर्युक्त श्लोक में भूत का अर्थ जीव- जगत ,पदार्थ जगत और पंच महाभूत (पृथ्वी जल अग्नि वायु और आकाश) से लिया गया है।

   सभी उदाहरणों में कहीं भी भूत का अर्थ मृतक से नहीं लिया गया है । फिर क्या कारण है कि लाखों करोड़ों की संख्या में लोग भूत प्रेत  के चक्कर में अपना धन धर्म मान सम्मान  सब गवा रहे हैं।यह सब बहकावे की बातें हैं कि किसी ओझा सोखा दरगाह मजार आदि की पूजा से भूत प्रेत आदि ठीक होता है। 

आज जहां देखो वही मजार दरगाह के साथ ही सड़क के किनारे कोई पीपल का वृक्ष हो तो वहां भी लोग लंगोट कलावा आदि बाध कर पूजना शुरू कर देते हैं। मूढ़ताबस लोग यह कभी नहीं जानने का प्रयास करते कि उनकी पूजा करने से कुछ होता भी है या नहीं। बस भीड़ देख नहीं की पूजा शुरू कर देते हैं।

    औरतें इसमें कुछ ज्यादा ही आगे होती हैं।भूत भी उनको ही ज्यादा पकडते हैं। सत्य तो यह है कि भूत नाम की दुनिया में कोई कुछ नहीं होता है।जो मर गया वह क्या करेगा भूत बीते हुए समय को कहते हैं।

     ऐसी स्थिति में समाज को जागृत करने की आवश्यकता है।हमें सत्य का साथ देना चाहिए।यदि इसमें कोई सत्यता हो तो मानना चाहिए नहीं तो छोड़ देना चाहिए।

     हजारों वर्षों के मान्यताएं सच है कि एक दिन में खत्म नहीं होगी लेकिन जैसे-जैसे समाज शिक्षित हो रहा है।इस प्रकार की मान्यताएं भी धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं। 

     इसके लिए आवश्यकता है कि विद्यालयों में बच्चों के समक्ष इस प्रकार की बातें  समझाईं जाए और उन्हें बचपन से ही ऐसी मान्यताओं से दूर रखने के लिए प्रेरित किया जाए।

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