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इतनी आसान भी नहीं ट्रंपवाद से मुक्ति

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पुष्परंजन

डोनाल्ड ट्रंप डबल इतिहास रच सकते हैं। पहला, उनके विरुद्ध दो बार महाभियोग लगा है। दूसरा, यदि महाभियोग सिद्ध हो जाता है तो ट्रंप पहले राजनेता होंगे, जिनके चुनाव लड़ने पर रोक लगेगी। सुविधाएं समाप्त हो जाएंगी। ‘हाउस आॅफ रिप्रेजेंटेटिव’ में स्पीकर नैंसी पलोसी का लक्ष्य था महाभियोग प्रस्ताव को जैसे भी हो, पास कराना है। महाभियोग के पक्ष में 232 और विरोध में 197 के साथ निचले सदन ने प्रस्ताव पास कर दिया। हाउस आॅफ रिप्रेजेंटेटिव के चार सदस्यों ने इस प्रक्रिया में भाग नहीं लिया था। इसमें दिलचस्प दस रिपब्लिकन सांसद थे, जिन्होंने ट्रंप के विरुद्ध वोटिंग की। अपनी ही पार्टी के राष्ट्रपति के खि़लाफ वोट, यही अमेरिकी लोकतंत्र की खूबसूरती है। जो कुछ बदनुमा दाग लगा, उसे भी सभी ने 6 जनवरी, 2021 को देखा था। दुनिया को हैरान किया था, संसद में तोड़फोड और पांच की मौत ने।

इस समय सबकी निगाहें सौ सदस्यीय सीनेट पर हैं, जहां दो-तिहाई वोट के बाद महाभियोग सिद्ध होना है। सीनेट में 51 सदस्य डेमोक्रेट के और रिपब्लिकन के 49 सदस्य हैं। रिपब्लिकन के 17 सदस्य या तो ट्रंप के विरुद्ध वोट दें, या फिर सदन से अनुपस्थित हो जाएं, तभी दो-तिहाई कोरम का पूरा होना संभव है। ‘कोरम काॅल’ के दौरान सीनेटरों को अनुपस्थित रहने का अधिकार है, और उनके विरुद्ध पार्टी कार्रवाई नहीं कर सकती। अब सवाल यह है कि कितने रिपब्लिकन सीनेटर ट्रंप के धतकर्मों से ख़फा हैं?

रिपब्लिकन पार्टी में ट्रंप के विरुद्ध मोर्चा पहले से खुला हुआ था। उन्हीं की पार्टी के मिच मेकानल ने सीनेट में 16 दिसंबर 2020 को एक वक्तव्य देकर ट्रंप के गुब्बारे को फुस्स कर दिया था। ‘सीनेट मेजाॅरिटी लीडर’ मिच मेकानल ने बयान दिया कि हम जो बाइडेन को प्रेसिडेंट एलेक्ट मानते हैं, चुनाव में जिस फर्जीवाड़े की बात की जा रही है, उसके सबूत नहीं मिल रहे। 78 साल के मिच मेकानल केंटुकी से सीनेटर हैं और रिपब्लिकन पार्टी के वरिष्ठतम नेताओं में शुमार होते हैं। उनके वक्तव्य से बिफरे ट्रंप ने तब ट्वीट किया था कि लोग मिच के बयान को लेकर ग़ुस्से में हैं। मगर अकेले मिच नहीं, उनके साथ नौ ऐसे सीनेटर थे, जो डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चुनावी फ्राड का भौकाल खड़ा करने से नाखु़श थे। इनमें रिपब्लिकन सीनेटर रोन जाॅनसन (विस्कोंसिन), जेम्स लैंकफोड (ओकहोमा से), स्टीव डेंस (मोंटाना), लुसियाना से जाॅन केनेडी, मार्शा ब्लैकबर्न। माइक ब्राउन (इंडियाना से), वायोमिंग से सीनेटर सिंथिया ल्यूमिस, कैंसस प्रांत से रोजर मार्शल, अल्बामा से बिल हैर्गेटी और टाॅमी ट्यूबरविल ने पार्टी के भीतर और पब्लिक फोरम में ट्रंप से असहमति व्यक्त की थी। लोग जानना चाहते हैं कि बाक़ी सात सीनेटर कौन होंगे?

सवाल यह है कि ग्रांड ओल्ड पार्टी (जीओपी) के नाम से चर्चित रिपब्लिकन पार्टी क्या डोनाल्ड ट्रंप के साथ खड़ी है? रिपब्लिकन पार्टी को ‘ग्रांड ओल्ड पार्टी‘ नाम सबसे पहले 1884 में पत्रकार टी. बी. डोडेन ने दिया था। इस समय ‘जीओपी’ में ट्रंप से असहमति के स्वर जिस तरह दिख रहे हैं, उससे दरार साफ-साफ दरपेश होने लगी है। ट्रंप यदि ‘जीओपी‘ से दूध की मक्खी की तरह बाहर किये जाते हैं तो शायद डैमेज कंट्रोल हो जाए। मगर, एक सच यह भी है कि ट्रंप की ग़लतियों को नज़रअंदाज़ करने वाले सांसदों, सीनेटरों और रिपब्लिकन पार्टी के सदस्यों की संख्या कम नहीं है। इनके लिए दुविधा की स्थिति ट्रंप व ‘फर्स्ट फैमिली‘ द्वारा उत्पातियों को लगातार उकसाये जाने वाले वो बयान हैं, जो बाकायदा रिकार्ड में दर्ज़ हो चुके हैं। यही सबसे बड़ी चूक है, जिसकी वजह से ‘जीओपी’ शर्मसार है और पार्टी नेतृत्व ट्रंप के साथ खुलकर खड़ा नहीं दिखता है। जीओपी को फंड देने वाले कारपोरेट का बड़ा समूह अब मुंह फेरने लगा है।

वाशिंगटन डीसी स्थित निस्कानन सेंटर और फाॅक्स न्यूज़ ने एक साझा सर्वे कराया है, जिसमें 45 प्रतिशत रिपब्लिकन सदस्य संसद को घेर लेने और अंदर उत्पात के पक्ष में बताये गये हैं। सर्वे के अनुसार, 211 में से डेढ़ सौ रिपब्लिकन सांसद हैं, जो चुनाव में पराजय को स्वीकार नहीं कर ट्रंप के पक्ष में मुखर थे। इस सर्वे के लिहाज़ से देखें तो ट्रंप एकदम से राजनीति के बियाबान में नहीं चले गये हैं। ट्रंप, रिपब्लिकन पार्टी में उग्र दक्षिणपंथ का तड़का मारने वाले कोई पहले राष्ट्रपति नहीं रहे हैं। अब्राहम लिंकन, यूएस ग्रांट, रूज़वेल्ट, हर्बर्ट हूवर, आइज़नहावर, रिचर्ड निक्सन, रोनाल्ड रेगन, जार्ज एच.डब्ल्यू बुश और जूनियर जार्ज डब्ल्यू बुश, ये सारे ट्रंप के पूर्ववर्ती राष्ट्रपति रहे हैं, जिन्होंने रूढ़िवादी सोच को आगे बढ़ाया था।

मगर ट्रंप, अपने पूर्ववर्तियों से चंद क़दम आगे निकले, जिन्होंने पार्टी के भीतर ‘अमेरिका फर्स्ट ग्रुप’ बनाकर राष्ट्रवाद का तड़का ऐसा मारा, जिससे सभी सदस्य इत्तेफाक नहीं रखते थे। ऐसी आक्रामक सोच का ही नाम कुछ लोगों ने ‘ट्रंपिजम‘ रख दिया था। जो उनसे असहमत होते, वह अतिवादी-अमेरिका विरोधी निरूपित किये जाने लगे। अमेरिकी अल्ट्रा राइटविंगर के निशाने पर न सिर्फ़ राजनीतिक रूप से असहमत नेता-नौकरशाह थे, बल्कि मीडिया के लोग भी थे। एंटी फासिस्ट जो अमेरिकी दिखता, उन्हें आतंकवादी घोषित करने में यह ग्रुप देर न लगाता। ट्रंप यदि हाशिये पर चले भी जाते हैं तो क्या उस सोच को जड़ से समाप्त करना संभव है? यह नामुमकिन ही लगता है।

रायटर-आईपीएसओएस ने भी एक सर्वे पिछले हफ्ते कराया, जिसका निष्कर्ष था कि ट्रंप के चाहने वालों में से 70 फीसद रिपब्लिकंस अब भी हैं। 18 दिसंबर 2019 को ट्रंप के विरुद्ध अधिकार दुरुपयोग, संसद के कामों में बाधा डालते रहने का महाभियोग लगा था। 5 फरवरी 2020 को सीनेट में इस पर वोटिंग के समय 53 में से 52 रिपब्लिकन्स सभासद उनके साथ खड़े थे, जिसकी वजह से वे महाभियोग से बच गये। मगर, 11 महीनों में कालचक्र घूम चुका है, इस बात से हर अमेरिकी वाकिफ है। सीनेट में इस बार ट्रंप बचा लिये जाएंगे, इस बाबत अमेरिका के तुर्रम विश्लेषक जोखिम भरा वक्तव्य देने से बच रहे हैं।

अमेरिका से बाहर कोई जानता है कि रोना मैक्डैनियल कौन है? जब रिपब्लिकन पार्टी की चेयरवुमन एकदम चुप-सी रहें तो स्वाभाविक है कि लोग उनसे अनजान रहेंगे। 3 करोड़ 50 लाख, 41 हज़ार, 482 सदस्य हैं रिपब्लिकन पार्टी के। उन्हें संभाले रखना और ‘ट्रंपिजम’ से बचाये रखने की ज़िम्मेदारी पार्टी अध्यक्ष रोना मैक्डैनियल की थी। कितनी बेचारगी है, रोना मैक्डैनियल अपने सीनेटरों को समझाने की हालत में नहीं हैं कि बचा लो ट्रंप को। वह रिपब्लिकन सभासदों को पार्टी विरोधी गतिविधियों में सम्मिलित रहने के आरोप में निलंबित तक नहीं कर सकतीं। ऐसा भारत में संभव है क्या?

लेखक ईयू-एशिया न्यूज़ के नयी दिल्ली संपादक हैं।

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