Site icon अग्नि आलोक

 पं. राम प्रसाद बिस्मल और अशफाक उल्ला खान की दोस्ती

Share

अशफाक उल्ला खान और प. राम प्रसाद बिस्मल एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे। अपने देश को गुलामी से मुक्त कराने के लिए दोनों ने युवावस्था में ही अपने देश के काम आये।

अशफाक और राम की बेमिसाल दोस्ती के कई किस्से मशहूर हैं। दोनों देश की आजादी के संघर्ष के लिए साथ रहे और एक दिन वतन की खातिर अपने प्राणों की आहुति दे दी।

पण्डित राम प्रसाद और अशफाक उल्लाह खान स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ-साथ बहुत अच्छे शायर भी थे। राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ नाम से शायरी करते जबकि अशफाक ‘वारसी’ लिखा करते।

दोनों युवा हमारी साझी विरासत यानी गंगा-जमनी तह्ज़ीब के वाहक हैं।
इतिहास के इस महत्वपूर्ण अध्याय से आज की पीढी को अवगत कराना बेहद ज़रूर है। अशफाक उल्लाह खान और पण्डित राम प्रसाद बिस्मल की दोस्ती हिंदू-मुस्लिम एकता की अद्भूत मिसाल है।

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान विकसित हुई यह दोस्ती हिंदू-मुस्लिम एकता की प्रतीक बन गई थी । जेल में मौत की सजा सुनाए जाने के बाद,

अशफाक अपने विचारों को शायरी में यूँ पेश करते हैं।

इन पंक्तियों से हम अशफाक और राम की मित्रता की गहराई का अन्दाज़ा लगा सकते हैं वहीं अशफ़ाक़ के मन में देश के प्रति अपार प्रेम की अद्भूत अभिव्यक्ति के भी यहां दर्शन होते हैं।

कुछ पंक्तियां••••••

जाऊंगा खाली हाथ मगर दर्द मेरे साथ ही रहजाएगा?
जाने किस दिन हिन्दूस्तान आज़ाद मुल्क कहलायेगा…

बिस्मल हिन्दू कहते हैं मैं फिर आऊंगा, मैं फिर आऊंगा
मैं एक मुस्लिम हूं और पुनर्जन्म की बात नहीं कर पाता हूँ

हाँ खुदा अगर मिल गया कहीं तो अपनी झोली फैला दूँगा
जन्नत के बदले उससे फिर एक ज़िंदगी ही मांगूंगा।

देश को आजाद कराने के लिए हिंदू और मुस्लिम दोनों ने मिलकर काम किया, लेकिन आज गंगा-जिमिनी तह्ज़ीब की इस महान परंपरा पर आज सवाल उठ रहे हैं. ऐसे कठिन समय में अशफाक उल्ला खां और राम प्रसाद बिस्मिल की बेजोड़ दोस्ती को याद करना जरूरी है।

19 दिसंबर, 1927 को राम प्रसाद बिस्मल अशफाक उल्ला खान और रोशन सिंह ने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। भारत के इन महान स्वतंत्रता सेनानियों को सलाम….

Exit mobile version