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संघ से लेकर पिछड़े समाजों में भी बदलाव की आहट

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सुसंस्कृति परिहार

 पिछले दिनों RSS प्रमुख मोहन भागवत की दिल्ली में चीफ इमाम इलियासी से मुलाकात की खबरें चौंकाने वाली नहीं है गुजरात लाबी ने देश को किस नफरत के माहौल में ढकेल कर उसकी अस्मिता से खिलवाड़ की है उसे देखते हुए संघ प्रमुख निश्चित तौर पर बेहद परेशान हैं और वे मुस्लिम समाज को जोड़ने की कवायद में लगे हैं। इससे पहले वे हिंदू मुस्लिम के डी एन ए को एक बता चुके हैं इसी कड़ी में वे इलियासी से मिले थे।एक पत्रकार ने जब इलियासी से पूछा कि, ‘मोहन भागवत जो कह रहे हैं वह सही है क्या? तो इमाम इलियासी ने सहमति जताते हुए  मोहनदास गांधी की तरह मोहन भागवत को भारत का राष्ट्रपिता कह दिया।यदि ये चूक नहीं है तो यह गंभीर बात है लगता मोहन भागवत अब राष्ट्र पिता बनने की राह पर हैं।यह अच्छा ही कहा जाएगा यदि वे अपना आदर्श गांधी को मानकर प्राश्यचित करते हैं।
  उनकी ये कोशिश सकारात्मक है किंतु वह  गुजरात  लाबी और संघीय विचारधारा के अनुरूप नहीं है।  यहीं एक महत्वपूर्ण सवाल जन्म ले रहा है कि संघ और भाजपा के सम्बन्धों में क्या अंदर अंदर गंभीर तकरार चल रही है। पिछले दिनों भाजपा के कद्दावर और ऊर्जा वान नेता नितिन गडकरी को जिस तरह भाजपा संसदीय बोर्ड से बाहर का रास्ता दिखाया गया वह मोदी लाबी की आक्रामकता दर्शाता है।

 आजकल जिस तरह राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को समर्थन मिल रहा है और जनता में जो विश्वास उपजा है उससे गुजरात लाबी बहुत परेशान हैं इस यात्रा ने देश को फिर महात्मा गांधी के सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों को जीवंत कर दिया है। इससे पहले सी ए ए और साल भर चले किसान आंदोलन ने गांधी के अहिंसक आंदोलन का देश दुनिया में गांधी का पुनर्पाठ प्रारंभ किया। भारत में भी मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी बन चुका था अब गांधी फिर शिद्दत के साथ याद किए जा रहे हैं। मोदी केबिनेट के नितिन गडकरी हों या राजनाथ सिंह भी गांधी को मान दे रहे हैं। तमिलनाडु और केरला के लोग भी भारत जोड़ो यात्रा में जो सद्भाव प्रदर्शित कर रहे हैं उसमें बापू और हमारी सनातन परम्परा ही नज़र आ रही है।

तब संघ को यदि इस देश में जीवित रहना है तो इस सर्वमान्य सनातनी परम्परा और संस्कृति को अपनाना ही चाहिए।संघ बदल रहा है तिरंगा फहराने लगा है मुस्लिम समुदाय के प्रति घृणा भाव से मुक्त होने की कोशिश में है।सबसे बड़ी बात ये कि देश में ओ बी सी एस सी ,एस टी और अल्पसंख्यक समुदाय की एकजुटता और उनकी जागरुकता से भी वह सजग हुआ है वह पहली बार किसी महिला, खासतौर पर  पिछड़े वर्ग की महिला को अपने वार्षिक कार्यक्रम का मुख्य अतिथि बना रहा है।सूत्र बताते हैं कि दो बार की एवरेस्ट विजेता संतोष यादव को संघ ने आमंत्रित कर जबरदस्त वैचारिक परिवर्तन के संकेत दिए हैं।

इन बिंदुओं पर विचार करते हुए यह भी विचार मन में आना स्वाभाविक है कि क्या खरगोश अपनी प्रवृत्ति बदलकर मांसाहारी बनने जा रहा है। राजनीति में सब कुछ संभव है।सत्ता की चाहत कब कैसी करवट बदल लें कहा नहीं जा सकता अब देखिए आजकल दिल्ली के सत्ता के गलियारों में यह खबर है कि सवर्ण समाज को भाजपा ने दिए 10%आरक्षण खत्म करने का विचार बना लिया है जिसके पीछे ओबीसी एवं अन्य को ख़ुश करने की नीयत ही है। दूसरी और ब्राह्मण तबके के खिलाफ निरंतर जमकर ये समाज प्रहार कर रहा है।म प्र कांग्रेस के एक ब्राह्मण नेता ने भी अपने समाज के खिलाफ बयान देकर नई मुसीबत खड़ी कर दी है। सबसे आश्चर्यजनक तो रहली गढ़ाकोटा के विधायक ,प्रदेश के कद्दावर मंत्री  गोपाल भार्गव का वह भाषण है जिसमें उन्होंने पिछड़े वर्ग के लोगों से सार्वजानिक तौर पर माफी मांगी है।उधर बहोरीबंद कटनी में एक आदिवासी समाज के कार्यक्रम में दलितों के चरण धोकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया।ये सब बदलाव स्वागतेय हैं।

कुल मिलाकर इस समय पीड़ित दमित समाजों की भावनाएं  भी बदल रही हैं मनुवादी संविधान की आहट ने समाज के बहुजन समाज को उद्वेलित किया वह चौकन्ना है एक जुट हो रहा है यदि प्रलोभन की भाजपाई संस्कृति में वह नहीं फंसता है तो निश्चित तौर पर कहा जा सकता है भारत उस राह को पकड़ने वाला है जो बहुजन समाज की तरक्की और विकास का होगा।इसका श्रेय भाजपा के ‘हम दो ‘को ही जाएगा। उन्होंने एक ऐसा माहौल निर्मित किया है जिसने  संघ, कांग्रेस,वामदल और समाजवादियों को नए सिरे से सोचने विवश किया है ।यह सोच यदि विखंडित नहीं होती है तो 2024 में  साहिबानों का सूरज अस्त होने में संदेह नहीं करना चाहिए।ये बदलाव की आहट व्यापारी सरकार के लिए विस्फोटक हो सकती है।

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