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G-20 शिखर सम्मेलन क्रूर बुलडोजर-राज का बहाना नहीं हो सकता

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सुशील मानव

नई दिल्ली। जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) ने तुग़लकाबाद और नई दिल्ली की कुछ अन्य बस्तियों के उन हज़ारों पीड़ित निवासियों के साथ पूरी एकजुटता व्यक्त की है, जिनके घरों को पहले भी और अभी G-20 शिखर सम्मेलन के संदर्भ में तबाह कर दिया गया है। उनके न्यूनतम कल्याण की अवहेलना और उनके अधिकारों का घोर उल्लंघन बेहद निराशाजनक है और हम इस पर तत्काल ध्यान देने और निवारण की मांग करते हैं। यह निंदा करते हुए जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय ने आगे कहा कि कि वह भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (एएसआई) की कार्रवाइयों की निंदा करते हैं, जिसने हाल ही में एक बड़े पैमाने पर बेदखली अभियान चलाया, जिसमें लगभग 1,000 घर नष्ट हो गए। साथ ही अन्य बस्तियों में भी सैकड़ों घर तोड़े गए हैं। कुछ स्थानों पर क़ानून का उल्लंघन करते हुए फेरीवालों को भी क्रूर तरीके से बेदख़ली का भी सामना करना पड़ा है।

गौरतलब है कि अधिकारियों द्वारा किए गए जबरन विस्थापन और विध्वंस ने न केवल 2.6 लाख निवासियों सहित लगभग 1,600 परिवारों को बेघर कर दिया है, बल्कि उनकी सम्पत्ति और आजीविका का भी नुकसान हुआ है। ‘बेदख़ली’ करने के किसी भी कदम से पहले उचित पुनर्वास और न्यायोचित सहायता के अभाव से हाशिए पर जी रहे समुदायों की दुर्बल स्थिति और विकट हो गई है। नागरिकों को उनके घरों से बार-बार विस्थापित करने में केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार की भूमिका निंदनीय है।

जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय ने अपने बयान में आगे कहा है कि विध्वंस अभियान के दौरान कानूनों और नियमों का घोर उल्लंघन भी भयावह है। ये कार्रवाइयां सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत क़ब्ज़ाधारियों की बेदख़ली) अधिनियम, 1971, नई दिल्ली नगरपालिका परिषद अधिनियम, 1994, और संयुक्त राष्ट्र के बुनियादी सिद्धांतों और विकास-आधारित बेदख़ली पर दिशा-निर्देशों में उल्लिखित सिद्धांतों सहित, कानूनी सुरक्षा उपायों और उचित प्रक्रिया की अवहेलना करती हैं। जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय ने कहा है कि वह क़ानून व्यवस्था की इस कदर अवहेलना की कड़ी निंदा करते हैं और सभी श्रमिक समुदायों के प्रति राज्य की जवाबदेही का आग्रह करते हैं। साथ ही अधिकारियों से तत्काल विध्वंस को रोकने, इन उल्लंघनों की जांच करने और तुग़लकाबाद और अन्य इलाकों के बेघर निवासियों के लिए कानूनन सहायता और निवारण सुनिश्चित करने का आग्रह करते हैं।

जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय ने अपने बयान में आगे कहा है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को एक सुरक्षित घर का अधिकार अंतर्निहित है। लोगों के आश्रय के मौलिक अधिकार पर जी-20 शिखर सम्मेलन की तैयारियों को प्राथमिकता देते देखना निराशाजनक है।

कश्मीरी गेट, यमुना बाढ़ के मैदान, धौला कुआं, महरौली, मूलचंद बस्ती और हाल ही में तुग़लकाबाद जैसे वंचित समुदायों के इलाकों में बेदख़ली पहले से धर्म, जाति, लिंग के कारण हाशिए पर रहने वाले लोगों का जीवन और जटिल कर देता हैं। यह न केवल उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हैं, बल्कि सबसे कमज़ोर वर्गों के हक़ को सुनिश्चित करने में राज्य की व्यवस्थागत विफलताओं को दर्शाता है।

मजदूर आवास संघर्ष समिति के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए

जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय की सरकार से प्रमुख मांगें हैं-

वाल्मीकि सोसाइटी के माणिक कुमार ने एक ज्ञापन पत्र समस्त धरना प्रदर्शनकारियों एवं मजदूर आवास संघर्ष समिति की ओर से प्रधानमंत्री कार्यालय को सौंपा। इस कार्यक्रम में दिल्ली के तुगलकाबाद, जनता कैंप प्रगति मैदान, यमुना खादर, बेला स्टेट, मेहरौली, सोनिया गांधी कैंप, सुभाष कैंप, नजफगढ़, मानसरोवर पार्क, सांसी कैंप, कालका स्टोन, कालका जी, भूमिहीन कैंप सहित कई बस्तियों के मजदूर परिवारों एवं जन संगठन के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

इससे पहले 3 मई को सरकारी दमन के ख़िलाफ़ तुग़लकाबाद गांव के हजारों लोग विरोध का झंडा उठाये जंतर मंतर पहुंचे थे। जहां हर मज़दूर की आंखे आंसुओं से नम थी। सविता देवी तो चक्कर खाकर गिर पड़ी। भयंकर बारिश में भी धरना चलता रहा। धरने पर बैठे मजदूर नारे लगाते रहे और सरकार को पुनर्वास के लिए पुकारते रहे। धरने के अंत में पुनर्वास की मांग को लेकर एक ज्ञापन पत्र प्रधानमंत्री कार्यालय को सौंपा गया। गौरतलब है कि भारी बारिश के बीच 30 अप्रैल और 1 मई को रातों-दिन चले 18 बुलडोज़रों ने तुग़लकाबाद गांव में लगभग 2 हज़ार घरों को ज़मींदोज़ कर दिया था।

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