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गैलीलियो : भीड़ मरती है, बुद्धिशील नहीं

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जूली सचदेवा

     _हम सब को बहुत गुस्सा आता है जब हम पढते हैं कि किस तरह क्रूर ईसाई धर्मान्धों ने गैलीलियो को जिंदा जला दिया था। गैलीलियो का गुनाह क्या था? उसने सच बोला था। उसने कहा था कि सूर्य पृथ्वी के चारों ओर नहीं घूमता बल्कि पृथ्वी सूर्य के चारों तरफ घूमती है। जबकि ईसाइयों के धर्मग्रन्थ में लिखा था कि पृथ्वी केन्द्र में है और सूर्य तथा अन्य गृह उसके चारों तरफ घूमते हैं। गैलीलियो ने जो बोला वो सच था।_

      धर्मग्रन्थ में झूठ लिखा था। इसलिए धर्मग्रंथ को ही सच मानने वाले सारे अंधे गैलीलियो के विरुद्ध हो गये।

गैलीलियो को पकड़ कर मुकदमा चलाया गया। अदालत ने सत्य को अपने फैसले का आधार नहीं बनाया, अदालत भीड़ से डर गयी। भीड़ ने कहा यह हमारे धर्म के खिलाफ बोलता है इसे जिंदा जला दो। अदालत ने फ़ैसला दिया इसे ज़िंदा जला दो क्योंकि इसने लोगों की धार्मिक आस्था के खिलाफ बोला है। सत्य हार गया, आस्था जीत गयी। जिंदा जला दिया गया गैलीलियो, सत्य बोलने के कारण।

     _आज भी जब हम ये पढते हैं तो सोचते हैं कि काश तब समझदार लोग होते  तो ऐसा गलत काम न होने देते। लेकिन अगर मैं आपको बताऊँ कि ऐसा आज भी हो रहा और आप इसे होते हुए चुपचाप देख भी रहे हैं। तो भी क्या आप में इसका विरोध करने का साहस है?_

       आप अपनी तो छोड़िये इस देश के सर्वोच्च न्यायालय में भी ये साहस नहीं है। न्यायालय के एक नहीं अनेकों निर्णय ऐसे हैं जो सत्य के आधार पर नहीं धर्मान्ध भीड़ को खुश करने के लिए दिये गये हैं।

पहला उदाहरण है अमरनाथ के बर्फ के पिंड को शिवलिंग मानने के बारे में स्वामी अग्निवेश के बयान पर उन्हें सर्वोच्च न्यायालय की फटकार। दो-दो जिला अदालतों द्वारा अग्निवेश के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिये गये। वो बेचारे ज़मानत के लिए भटकते घूमे। स्वामी अग्निवेश ने कौन सी झूठी बात कही भाई?

      क्या ये विज्ञान सम्मत बात नहीं है कि बेहद कम तापमान पर अगर पानी टपकेगा तो पिंड के रूप में जम जायेगा? अगर डरे हुए करोड़ों लोग उस पिंड को भगवान  मानते हैं तो इससे विज्ञान अपना सिद्धात तो नहीं बदल देगा। या तो बदल दो बच्चों की विज्ञान की किताबें। या फिर कहने दो किसी को भी सच बात।

      उन्हें इस सच को कहने के लिए पीटा गया। उनकी गर्दन काट कर लाने के लिए एक धार्मिक संगठन ने दस लाख के नगद इनाम की घोषणा कर दी। कोई राजनैतिक पार्टी इस बात के लिए नहीं बोली। सबको इन्ही धर्मान्धों के वोट चाहिएं। सबसे ज्यादा गुस्से की बात ये है कि इसी युग में, इसी साल, इसी मामले पर इसी देश के सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले पर स्वामी अग्निवेश को फटकार लगाई।

भयंकर स्थिति है। सच नहीं बोला जा सकता। विज्ञान बढ़ रहा है। विज्ञान का उपयोग हथियार बनाने में हो रहा है। विज्ञान की खोज टीवी का इस्तेमाल लोगों के दिमाग बंद करने में किया जा रहा है।

      _लोगों को भीड़ में बदला जा रहा है। भीड़ की मानसिकता को एक जैसा बनाया जा रहा है। जो अलग तरह से बोले उसे मारो या जेल में डाल दो। अलग बात बोलने वाला अपराधी है। सच बोलने वाला अपराधी है।_

       दलितों की बस्तियां जला देने वाली भीड़, ये आदिवासियों को नक्सली कह कर उनका दमन कर उनकी ज़मीनें छीनने वाली भीड़ जो दंतेवाड़ा से हर जगह तक फ़ैली है, वही भीड़ संसद और सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल हो गयी है। वो कुर्सियों पर बैठ गयी है। वो सोनी सोरी मामले में अत्याचारी पुलिस का साथ  दे रही है।

      _वो गुजरात में दंगाइयों का साथ दे रही है। वो तर्क को नहीं मानेगी, इतिहास को नहीं मानेगी।_

ये भीड़ राजनीति को चलाएगी। विज्ञान को जूतों तले रोंद देगी। कमजोरों को मार देगी और फिर ढोंग करके खुद को धार्मिक, राष्ट्रभक्त और मुख्यधारा कहेगी।

      मैं खुद को इस भीड़ के राष्ट्रवाद, धर्म और राजनीति से अलग करता हूं।  मुझे इसके खतरे पता हैं। पर मैंने इतिहास में जाकर जलते हुए गैलीलियो के साथ खड़े होने का फ़ैसला किया है। मुझे पता है मेरा अंत उससे ज्यादा बुरा हो सकता है।

   _पर देखो न भीड़ मर गयी गैलीलियो नहीं मरा।_

   [चेतना विकास मिशन)

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