Site icon अग्नि आलोक

ध्यान : प्रवेश के लिए कचरा निष्कासन प्रकिया 

Share

    नग़मा कुमारी अंसारी 

 एकांत में बैठकर एक खाली कागज लेकर सिर्फ लिखते चले जाओ. जो भी मन में उठ रहा हो–जो भी। 

     किसी को बताना तो है नहीं, दरवाजा बंद कर देना, ताला लगा देना, कि कोई झांक न ले; किसी को बताना नहीं है, इसलिए ईमानदारी बरतना; ईमान से लिख डालना, और फिर आग लगाकर जला देना ताकि किसी को पता भी न चले.

    कम से कम आपके भीतर का कुछ कचरा साफ हो जाएगा. दस मिनट लिखने बैठोगे तो चकित हो जाओगे कि कौन-कौन सा कचरा खोपड़ी में भरा हुआ है। क्या-क्या चल रहा है! और कहां-कहां से चला आ रहा है!

      संगत-असंगत, प्रासंगिक-अप्रासंगिक; एक कड़ी भजन की आती है, दूसरी कड़ी किसी फिल्मी गीत की आ जाती है; पड़ोस में कुत्ता भौंकता है, उसके भौंकने को सुन कर आपको अपनी प्रेयसी, अपने प्रेमी की याद आ जाती है जिसके पास एक कुत्ता था।

     अब चले! और प्रेयसी/प्रेमी की याद आती है तो पत्नी/पति की याद आ जाती है, कि इसी दुष्ट ने तो सब गड़बड़ करवा दिया! अब लगे कोसने अपने को कि किस दुर्दिन में..!

इसलिए जरा बैठो दस मिनट और  मन में क्या-क्या आएगा, उसे लिखते जाना। जैसा आए वैसा ही लिखना, सुधारना मत! बनावट न लाना, पाखंड मत करना! नहीं तो बैठ कर अच्छे-अच्छे सूत्र लिखने लगो! यदा यदा हि धर्मस्य…! 

    लोग दूसरों को ही धोखा नहीं देते, अपने को भी धोखा देते हैं। अल्लाह ईश्वर तेरे नाम, सबको सन्मति दे भगवान–ऐसे कुछ सूत्र मत लिखने लगना! जो सच्चा-सच्चा आए, वही लिखना। जैसा आए वैसा ही लिखना, भेद ही न करना। और तब तुम देखोगे कि भीतर कैसा कचरा भरा है! क्या-क्या उपद्रव भीतर चल रहा है!

इस कचरे से भरे हुए मन में  चाहते हो, ध्यान में, प्रेम में, परमात्मा का प्रवेश हो जाए, उसका अमृत आ जाए! आप किस आशा पर बैठ हो? 

     इस सारे कचरे को बाहर फेंक देना जरूरी है। इसको बाहर फेंकने की प्रक्रिया, इसको उलीचने की प्रक्रिया का नाम ध्यान है। 

     मगर ध्यान के नाम से भी लोग  कचरा ही भरते हैं। कोई नमोकार मंत्र पढ़ रहा है, कोई गायत्री मंत्र पढ़ रहा है–ध्यान के नाम से!–कोई जय जगदीश हरे घोंटे चला जा रहे! कोई हनुमान चालीसा ही दोहरा रहा है। इससे कुछ भी न होगा।

     कचरा वैसे ही काफी है, उसमें और कचरा बढ़ा रहे हो–धार्मिक कचरा सही! मगर कचरा कचरा है, धार्मिक हो कि गैरधार्मिक, इससे कुछ भेद नहीं पड़ता। खाली करना है। ध्यान है: रिक्त होना। सब कचरा बाहर फेंक दो।

बाहर फेंकने की प्रक्रिया सुगम है, सरल है–साक्षीभाव। जो भी भीतर कचरा चल रहा है, उसको देखते रहो। मात्र देखते रहो। तादात्म्य तोड़ लो। मेरा है, यह भाव छोड़ दो। मैं तो द्रष्टा हूं और जो भी मेरे आमने-सामने आ-जा रहा है, वह सब दृश्य है। मैं दृश्य नहीं हूं। 

    बस, इस भाव में अपने को थिर करते जाओ और धीरे-धीरे पाओगे, कचरा अपने से जा चुका।

ReplyReply to allForwardAdd reaction
Exit mobile version