अजय असुर
16 सितम्बर 2022 को अडानी से आगे पूरे विश्व में सिर्फ एक लुटेरा है, जो उनसे ज्यादा अमीर हैं। इन लुटेरों की सूची में अब सिर्फ अडानी से आगे टेस्ला कम्पनी के मालिक एलन मस्क 273.5 अरब डॉलर के साथ ही आगे हैं। आज ही इस लुटेरों की सूची का एक अन्य लुटेरा जो आज से पहले दूसरे नंबर पर बर्नार्ड अर्नाल्ट 155.2 अरब डॉलर के साथ था। जिसे आज गौतम अडानी 155.5 अरब डालर के साथ उस दूसरे नम्बर के लुटेरे को पछाड़कर खुद दूसरे नम्बर पर पहुँच गया है। अमेजन के मालिक जेफ बेज़ोस 149.7 अरब डालर के साथ चौथे नं पर खिसक गए।
इससे पहले इसी साल फरवरी में खबर आई थी कि अडानी संपत्ति के मामले में भारत के सबसे अमीर आदमी मुकेश अंबानी को पीछे छोड़ दिया है। हालांकि, कुछ ही दिनों के बाद फिर मुकेश अंबानी इस सूची में वापस शिखर पर पहुंच गए। यह कोई हैरतअंगेज बात भी नहीं थी, क्योंकि लुटेरों की सूची में ऊपर-नीचे होने का आधार शेयर बाजार है और इस शेयर बाजार में इनके शेयरों की कीमत ही होती है। इसलिए अगर दो लोगों की संपत्ति में कुछ ही फर्क रह गया हो, तो फिर इस तरह कभी कोई ऊपर तो कभी नीचे चलता है। पिछले छह महीनों में दो-तीन बार यह ऊपर नीचे का सिलसिला चला। अडानी समूह की कुल सात सूचीबद्ध कंपनियां हैं और इनके शेयरों में 100 प्रतिशत से लेकर 1,000 प्रतिशत से ज्यादा तक का उछाल पिछले दो साल में आया है।
सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि 3 जून 2022 को जब मुकेश अंबानी ने पिछली बार गौतम अडानी को पीछे छोड़ा, तब उनकी संपत्ति थी 99.7 अरब डॉलर, जबकि उस दिन अडानी की संपत्ति थी, इससे बस एक अरब डॉलर कम, यानी 98.7 अरब डॉलर, जबकि ब्लूमबर्ग बिलियनेयर इंडेक्स के अनुसार, 2020 की शुरुआत में मुकेश अंबानी की संपत्ति 59 अरब डॉलर और अडानी की संपत्ति मात्र 10 अरब डॉलर थी। यह आंकड़ा 1 जनवरी, 2020 का है। कोरोना महामारी के प्रकोप से ठीक पहले। यानी अडानी की संपत्ति में तेज बढ़त का असली सिलसिला उसके बाद शुरू हुआ। कोरोना काल में अडानी की संम्पत्ति दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ी है और इसी वर्ष जनवरी के बाद से उनकी संपत्ति में 60 अरब डॉलर से ज्यादा की बढ़ोतरी हो चुकी है।
2014 में, गौतम अडानी दुनिया के सबसे बड़े लुटेरों की लिस्ट में, 2.8 बिलियन डालर की मेहनतकश जनता के लूट से इकठ्ठा हुई दौलत के साथ 609 वें नंबर पर थे, जो 137 बिलियन डालर नेट वर्थ के साथ दुनिया में लुटेरों की लिस्ट में तीसरे नंबर पर और एशिया का प्रथम आ गए। इससे पहले बिल गेट्स को पीछे छोड़ा और फ्रेंच फैशन ब्रांड लुई वितां के मुखिया को पछाड़कर यह मुकाम हासिल किया था।
अडानी इसी रफ्तार से बढ़ते रहे, तो जल्दी ही एलन मस्क को भी पछाड़कर इन लुटेरों की लिस्ट में पहले नंबर पर पहुंच जाएंगे। भले करोड़ों लोग भूख से कराह रहे हों, लाखों ख़ुदकशी को मज़बूर हो रहे हों। इस पूंजीवादी लोकतंत्र के सरमायेदार माननीय मोदी जी को एक मलाल ज़रूर है कि किसान बीच में टांग ना अड़ाते और उनके झांसे में आ जाते, तो म्हारो गौतम भाई, जेफ़ बेजोस और एलन मस्क को कब का पीछे छोड़ चुका होता। इस पूंजीवादी लोकतंत्र का अश्वमेध यज्ञ पूरा हो चुका होता।
यह रफ्तार कितनी तेज है, इसका अंदाजा लगाना हो, तो यह समझिए कि जिस दिन ब्लूमबर्ग ने अडानी को दुनिया में तीसरे नंबर का अमीर बताया, उस दिन उनकी संपत्ति 137.4 ट्रिलियन डॉलर आंकी गई थी। लेकिन इसके तीन ही दिन बाद ही फोर्ब्स रियल टाइम बिलियनेयर इंडेक्स में गौतम अडानी की संपत्ति दस अरब डॉलर बढ़कर 147 अरब पर पहुंच चुकी थी। यानी एक ही दिन में तीन अरब डॉलर से ज्यादा का उछाल। इस लुटेरों की इस सूची में एक और खास बात है। मुकेश अंबानी अभी भले ही अडानी से काफी पिछड़ते दिख रहे हों, लेकिन ब्लूमबर्ग के मुताबिक, दुनिया के दस बड़े लुटेरों में अडानी के अलावा वही अकेले हैं, जिनकी संपत्ति इस साल सबसे ज्यादा बढ़ी है। अभी इस लुटेरों की सूची में मुकेश अंबानी 92.2 अरब डालर के साथ 8 नम्बर पर कायम हैं। अब पूंजीवादी लोकतंत्र के सबसे बड़े ओहदेदार मोदी जी दुविधा में फंसे हैं कि अपने एक मालिक अम्बानी को दूसरे मालिक अडानी से आगे ले जाएं या बराबर करवा दें या फिर इन सबको पीछे छोड़ अडानी को दुनियां का सबसे बड़ा लुटेरा बनवा दें।
इसका एक पक्ष और भी है। भारत में कुछ कंपनियों का जिस तेजी से कारोबार फैल रहा है, उसी तेजी से सवाल भी बढ़ रहे हैं। इस वक्त का सबसे बड़ा सवाल कर्ज को लेकर है। फिच रेटिंग की सहयोगी क्रेडिटसाइट्स ने एक रिपोर्ट में चेतावनी भी दी है कि हालात बहुत बिगड़े, तो कर्ज पर डिफॉल्ट का डर भी हो सकता है। रिलायंस इंडस्ट्रीज पर मार्च 2022 में लगभग तीन लाख करोड़ रुपये का कर्ज बताया जा रहा है। उधर अडानी समूह पर कर्ज का आंकड़ा लगभग दो लाख बीस हजार करोड़ रुपये बताया जाता है।
पूंजीवादी सिस्टम में बाजार सिर्फ ‘व्यक्तिगत मुनाफ़े’ को केंद्र में रखता है, ‘समाज’ का नहीं। बाजार का ‘मुनाफ़े’ पर क्या असर होगा, ‘पूँजीपतियों’ को क्या लाभ देगा यह तो ख़ूब ध्यान में रखा जाता है, किन्तु ‘समाज’ पर इसका क्या असर होगा, इसके सम्बन्ध में कुछ नहीं सोचा जाता है। कम्पनियों, और कार्पोरेट घरानों का फ़ायदा ही अर्थतंत्र की धुरी बन जाता है।
आजादी के बाद से ही भारत सरकार अंग्रेज सरकार के ही नक्शेकदम पर पूँजीवाद को बढ़ावा दे रही है, यह पूंजीवाद का बहुसंख्यक जनता के लिये सबसे बदसूरत मॉडल है, जिसके तहत सरकार उद्योगपतियों/पूंजीपतियों को विशेष फ़ायदा पहुँचाती है। अपने चहेते उद्योगपतियों/पूंजीपतियों को सरकारी अनुदान, टैक्स छूट, परमिट आवंटन, टेंडर में पक्षपात के जरिए समर्थन किया जाता है। इन उद्योगपतियों/पूंजीपतियों का उद्देश्य मुनाफा कमाना होता है। यह पूंजीवादी सिस्टम में सरकारी तन्त्र और उद्योगपतियों के बीच मेहनतकश जनता की बेरोकटोक लूट करने का गठबंधन है। इस पूंजीवादी तंत्र में दलाल मीडिया, न्याय पालिका, सुरक्षा एवं प्रशासनिक सस्थाएँ सब सहयोगी एवं सहभागी हैं।
द वेल्थ रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में अरबपतियों की संख्या में अमेरिका पहले स्थान पर है, जहाँ 748 अरबपति हैं। भारत में कुल 145 अरबपति हैं, जो कि तीसरे स्थान पर हैं। अंतरराष्ट्रीय एजेंसी OXFAM के अनुसार भारत में नीचे की 50% जनसंख्या के पास जितनी सम्पत्ति है उससे ज्यादा संपत्ति भारत के सिर्फ 9 अमीरों के पास इकट्ठा हो गई है।
People’s Research on India’s Consumer Economy (PRICE) के हालिया सर्वे के मुताबिक़ भारत में सबसे गरीब 20 फीसदी लोगों की कमाई 2015-16 की तुलना में 2020-21 में 53 फीसदी घट गई थी। जबकि इसी दौरान सबसे अमीर 20 फीसदी लोगों की कमाई 39 फीसदी बढ़ी है।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2021, भुखमरी में 116 देशों की सूची में भारत का 101 पायदान पर है, नेपाल, पाकिस्तान से भी पीछे। वर्ल्ड हैपीनेस इंडेक्स-2022 में 146 देशों की लिस्ट में 136 रैंक पर है।
इन आंकड़ों को आप गौर से देखिये कि अरबपतियों की संख्या में जिस भारत का नम्बर तीसरे स्थान पर है, उसी भारत में दुनिया की सबसे गरीब आबादी निवास करती है, जिनके पास शिक्षा, स्वास्थ्य, रोटी, रोजगार, आवास जैसी मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं है। उनके हालात बद से बदतर हैं और इसकी तस्दीक देश के प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी भी करते हैं। वह खुलेआम अपना 56 इंच का सीना चौड़ाकर कहते हैं कि हमने 80 करोड़ लोगों को 5 किलो मुफ्त राशन दिया। जिस बात पर शर्म आनी चहिए उस बात पर उनके भक्त भी सीना फुलाए घूम रहे हैं।
*अजय असुर*
*रास्ट्रीय जनवादी मोर्चा*