/ आदित्य कमल
झुक के आया , सलाम करके गया
सावधान , वह अपना काम करके गया !
सरे बाज़ार खड़ा , बेच रहा था सपने
आप खोए रहे , वो सब नीलाम करके गया !
जो सब समेट चुका बाँध के झोला-झक्कड़
उठा , हँसा , और राम-राम करके गया ।
उसे आज़ादी थी ,सिल दी ज़ुबान शायर की
और अपनी ज़ुबाँ वो बेलगाम कर के गया ।
वो बोलता गया और तुम यकीन करते गए
यूँ , तेरे क़त्ल का सब इंतज़ाम करके गया !
ग़ज़ब की आग लगा दी समूची बस्ती में
खेल ही खेल में , जीना हराम करके गया ।
ये किस मदारी का है हाथसफाई का हुनर
कि एक जमूरा कारनामे तमाम करके गया ।
---- आदित्य कमल