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जिगोलो/कॉलबॉय/प्लेबॉय/पुरुष’वेश्या : अतृप्त स्त्रियों के चलते बढ़ता धंधा

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 अलीशा (मुंबई)

हरमखाने/रंडीखाने/कोठे/वैश्यालय हर सभ्यता में, हर युग में, हर जगह रहे हैं. पुरुषवर्ग का वैश्या बनना इस युग का व्यवसाय है.

      अब समर्थ स्त्रियां समझौते के बजाए समग्र तृप्ति चाहती हैं और 99% मर्द 5-7 मिनट में लूजर बनकर नामर्द सावित होते हैं. इसलिए 01% वास्तविक मर्दो की चांदी है. वे भरपूर क़ीमत पाते है और यह व्यापार परवान चढ़ता है.

        हम सभी लोग रेड लाइट एरिया और वेश्यावृत्ति के बारे में जानते हैं. कॉल गर्ल्स के बारे में भी यह समाज अच्छे से जानता है. बहुत कम लोग हैं जो पुरुष वेश्यावृत्ति या प्लेबॉय के बारे में जानते हैं. इन्हें जिगोलो कहा जाता है।

        यह एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें जोर जबरदस्ती नहीं बल्कि स्वेच्छा से लोग शामिल होते हैं.  इन की खरीद-फरोख्त भी स्वेच्छा से ही की जाती है। यानी कि यह पुरुष वेश्यावृत्ति औरतों की वेश्यावृत्ति की तरह से तकलीफदेह नहीं है. धनी परिवार की शौकिया औरतों की मांग के कारण आम अवाम के लिए यह महंगा है. यह धंधा शहरों में तेजी से फल-फूल रहा है.

     लड़कियों की वेश्यावृत्ति की तरह से इस पेशे में लड़कों को धकेला नहीं जाता बल्कि लड़के खुद अपनी स्वेच्छा से अपने शौक को पूरा करने के लिए या बेरोजगार होने की हालत में इसे रोजगार की तरह से  करते हैं.

    रात 10:00 बजे से ही जिगोलो की मंडियां सजती है. कारों में औरतें, लड़कियां, उम्रदराज औरतें अपने लिए जिगोलो को चुनती हैं. जी भर उनको दूहती हैं. फिर घंटे के हिसाब से रेट अदा करती हैं और चलती बनती हैं. कभी कभी शहर से बाहर आउट हाउस पर जाने का भी इंतजाम होता है.

     पुरुष वेश्या को 3000 से लेकर 8000 तक के मिलते हैं. एक रात में 8000 कमा लेना कौन नहीं चाहेगा. महीने का जोड़ लो आप. यह मिलते हैं किसी पब में डिस्को में और बड़े होटलों में. इसमें काम करने वाले 18 साल के लड़के से लेकर 60 साल साल के पुरुष भी हो सकते हैं. मैटर करता है, स्त्री के बेसुध नहीं होने तक उसको सेक्ससुख देते रहना.

 प्रेम, अपनत्व, समर्पण, त्याग भावात्मक लगाव : यह सब इनके लिए डिक्शनरी में ढूंढे जाने वाले शब्द नहीं हैं. इन शब्दों का इनके जीवन में नितांत अभाव रहता है।

      मर्दों की मंडी में पुरुषों के जिस्म की नुमाइश होती है. औरतें इन्हें छू कर और परख  कर अपने लिए पसंद करती हैं.  फिर कुछ घंटे शराब, सिगरेट और मदहोशी के नशे में बिताकर मुंह अंधेरे ही वापस सफेद उजाले में आने के लिए तैयार हो जाती हैं।

      इस काम को करने वाले अधिकतर कम उम्र के लड़के ही होते हैं यानी 16 से 30 वर्ष के. इनकी डिमांड ही अधिक है. ‍अधिक उम्र वाले तब बिकते हैं ज़ब उनका लम्बी रेस वाला स्वाद गर्ल्स को पसंद आ जाता है. तब गर्ल्स उनकी माऊथ पब्लिसिटी कर देती है. ऐसे में उनके स्वाद के लिए किशोर भी दुत्कार दिए जाते है.अब वे प्रोढ या बूढ़े होकर भी इस दुनिया के सुपर स्टार बन जाते है.

    यहां औरतें बोली लगाती हैं और मर्द बिकते हैं. कई बार यह अच्छे कॉन्टेक्ट्स पाने के लिए भी लोग इस काम को करते हैं। सड़क किनारे कुछ इलाके प्रमुख बाजारों के पास लड़के खड़े हो जाते हैं. लक्ज़िरी गाड़ियां रूकती हैं और सौदा तय होने पर जिगोलो बैठता है और गाड़ी धुआं उड़ाती चल देती है. होटलों में यह काम थोड़ा आसान हो जाता है क्योंकि वहां उन्हीं के कमरों में इस काम को अंजाम दिया जाता है। 

    इनकी भी एक अलग से यूनिफॉर्म होती है और यह रेस्त्रां में बैठकर ग्राहकों का इंतजार करते हैं। यह धंधा किसी कॉरपोरेट सेक्टर की तरह से काम करता है। यहां डीलिंग का काम बहुत सिस्टेमेटिक तरीके से भी होता है और तब कमाई का 20% बिकने वाले पुरुष को अपनी संस्था को देना होता है जिससे वह जुड़ा होता है।

      शुरू में तो शायद वह अपनी जरूरतों को पूरी करने के लिए करता है लेकिन बाद में उसे इस काम की आदत और लत लग जाती है.

      यदि एक घंटा पसीना बहाने पर 3000 भी मिल रहे हैं तो यह हर हाल में फायदे का सौदा है. शायद इसीलिए बाद में लड़के इसे छोड़ना नहीं चाहते. कई बार उन्हें यह काम फिल्मों में और मॉडलिंग में जाने की सीढ़ी भी लगता है।

      सेक्स इंडस्ट्री : यह सही है कि लड़कियों को अक्सर इन कामों में धकेला जाता है. उसके लिए उन्हें यातनाएं दी जाती हैं और बहुत कम दामों में उन्हें बेच दिया जाता है. लेकिन यह लड़के अपनी स्वेच्छा से इस काम को कर रहे हैं.

विचारणीय प्रश्न :

 कल को जब ऐसे लडके अपना घर बसाना चाहेंगे तो क्या वे अपने परिवार के लिए एक आदर्श पिता और आदर्श पति बन पाएगा?

   बेरोजगारी के चलते  भी इन चीजों में बढ़ोतरी हुई है. क्या यह एक सभ्य समाज को गलत दिशा की तरफ मोड़ने जैसा नहीं है ? और रोग??

   यदि वेश्याओं की मंडियों पर छापे पड़ते हैं तो इन सम्भ्रांत परिवार की औरतों की अय्याशी के लिए बने यह जिगोलो के् अड्डों पर छापे क्यों नहीं पड़ते?

   हम प्रेम जैसे बहुमूल्य शब्द का अर्थ खोते जा रहे हैं तेजी से. समाज में जहां एक पुरुष के लिए औरत का शरीर ही सब कुछ है अब एक और ऐसा समाज पैदा हो रहा है तेजी के साथ जहां एक औरत के लिए सिर्फ पुरुष का शरीर ही सब कुछ रह गया है. अंजाम क्या होगा?

    मुझे नहीं लगता कि 1 घंटे में या 1 रात में कोई किसी के साथ आत्मीय नहीं सकता है. अगली रात कोई और होगा. ‌हम मानसिक ना होकर सिर्फ शारीरिक रह गए हैं और शरीर ही सब कुछ है. इसलिए शरीर की पूर्ति के लिए शरीर ढूंढ रहे हैं। जानवर और हम में फर्क बचा है क्या?

      चिकित्सा विज्ञान आज काफ़ी समर्थ है. नामर्दी निवारण अब कतई असंभव नहीं. सर्जरी से पेनिस की डेमेज नसों को ठीक करना, पेनिस को मनचाहा स्वरूप देना ही नहीं; कृत्रिम पेनिस निर्माण तक संभव हो रहा है. बहनें अपने पति/प्रेमी का इलाज करवा लें. इसके लिए पैसे नहीं हैं तो व्हाट्सप्प 9997741245 के ज़रिए निःशुल्क इलाज के लिए चेतना मिशन से संपर्क करें.

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