डॉ. नीलम ज्योति
माया और योगमाया दोनों भगवान की शक्तियाँ हैं। शक्ति और शक्तिमान में पृथकत्व नहीं हो सकता।
उदाहरण से समझिए :
आग और उसकी जलाने की शक्ति। आग में जलाने की शक्ति होती है। आग को अलग कर दो और जलाने की शक्ति बची रहे, ऐसा नहीं हो सकता।
यही बात भगवान और उसकी शक्तियों पर भी लागू होती है।
*योगमाया क्या है?*
योगमाया भगवान की अंतरंग शक्ति है। यह भगवान की अपनी शक्ति है। भगवान के जितने भी कार्य होते हैं वह योगमाया से होते हैं। भगवान जो भी लीला करते हैं वह योगमाया के द्वारा करते हैं। भगवान जो कुछ भी सोचते हैं, योगमाया तुरंत वह कर देती है। कृष्ण जब जन्म लिए तो द्वारपाल सो गए, द्वार अपने आप खुल गए, यमुना ने मार्ग दे दिया, ऐसा सबकुछ योगमाया से होता है।
*योगमाया की पहचान*
जब भी कोई असंभव-सी क्रिया या घटना संभव हो रही है, तो आप समझ लीजिये की यह योगमाया के द्वारा हुआ है। वेदों ने कहा कि भगवान स्वतंत्र है, वह किसी के अधीन नहीं है। वही भगवान यशोदा मैया के डंडे से डर जाते हैं, उनकी रस्सी से बंध जाते हैं। यह सर्वज्ञ भगवान, सर्वशक्तिमान भगवान, सबको मुक्त करने वाला भगवान रस्सी से बंध जाता है, माँ से मुक्त करने की विनती करता है, वो भी अभिनय में नहीं वास्तव में : जैसे हम लोग माँ से डरते है, ऐसे ही। यह योगमाया के कारण होता है।
तो भगवान की जो लीलाएं हैं वह योगमाया से होती हैं। या ऐसा कह दो कि भगवान जो कुछ भी करते हैं, वह सब योगमाया के कार्य होते हैं।
केवल भगवान नहीं जितने संत- महात्मा हैं, जो सिद्ध हो चुके हैं, भगवान की प्राप्ति कर ली है; वह भी योगमाया की शक्ति से कार्य करते हैं।
*योगमाया की क्रियाविधि :*
योगमाया की शक्ति कुछ ऐसी है कि कार्य हम माया के करते हैं, लेकिन हम को यह माया नहीं लगती। क्रोध करना माया का विकार है, दोष है.
महापुरुष और भगवान भी क्रोध करते हैं. उनका क्रोध माया का क्रोध नहीं होता. वह योगमाया का क्रोध होता है। देखने में लगता है कि भगवान क्रोध कर रहे हैं चेहरे पर गुस्सा है, महापुरुष को क्रोध कर रहे हैं चेहरे पर गुस्सा है; लेकिन वो योगमाया से क्रोध करते है और हम कहते हैं कि यह संत भी माया के आधीन है।
वास्तविकता यह है कि वह योगमाया से कार्य कर रहे हैं अर्थात् चेहरे पर क्रोध है लेकिन अंदर कुछ क्रोध नहीं है. यह योगमाया की विलक्षणता है.
गोपियों को शंका होती है कि श्रीकृष्ण अखंड ब्रह्मचारी कैसे हैं? दुर्वासा ने अपने जीवन में दूब के अलावा कोई स्वाद नहीं लिया है?
इस प्रश्न का उत्तर श्री कृष्ण देते हैं कि “यह कार्य योगमाया से होते हैं. योगमाया से मायावी कार्य किए जाते हैं, लेकिन वह और महापुरुष माया से परे रहते हैं।
दुर्वासा अनेक प्रकार के व्यंजन खाया है. यह माया का कार्य है, सबको दिख रहा है। योगमाया के कारण यह मायावी स्वाद उन्हें अनुभव नहीं होता।
यही कार्य अर्जुन ने किया था. वह सब को मार रहा है दुनिया देख रही है कि हाँ! अर्जुन ने सबको मारा है. वास्तव में अर्जुन ने किसी को नहीं मारा है। योगमाया ने मारा, अर्थात भगवान की शक्ति ने.
*माया क्या है?*
माया भगवान की बहिरंग शक्ति है। जो भगवान से विमुख जीव हैं या जो भगवान को अपना नहीं मानते या अपना सब कुछ नहीं मानते या जिनको भगवत्प्राप्ति नहीं हुई है, उन पर यह माया हावी रहती है।
जिन्होंने भगवान की प्राप्ति कर ली उनसे भगवान माया को हटा देते हैं और उन्हें योगमाया की शक्ति दे देते हैं। इससे वह माया के कार्य करते हैं, लेकिन माया से परे रहते हैं।
*योगमाया का स्वरूप :*
दुर्गा ,सीता ,काली ,राधा ,लक्ष्मी ,मंगला ,पार्वती का मूर्त रूप है योगमाया। इसी योगमाया से कृष्ण राधा का शरीर है, राधा कृष्ण का। इसीलिए राधे श्याम हैं और सीता राम हैं।
शंकर के घर भवानी है योगमाया। ये साधारण नारियां नहीं हैं दिव्या हैं. इन नारियों को नारी मत समझियेगा। ये चाहे तो स्त्री के रूप में रहें या पुरुष के रूप में। ये स्वेच्छा से किसी भी रूप को धारण कर सकती हैं.
योगमाया बिना किसी स्वरूप के भी भगवान और महापुरुष के साथ रहती है। जैसे नारद जी, तुलसीदास, इनके साथ कोई स्त्री नहीं है, लेकिन योगमाया की शक्ति है।