हल्दीघाटी के युद्ध के लगभग एक दशक पहले, मध्य प्रदेशस्थित सतपुड़ा जंगल में एक और योद्धा ने मुग़लों को नाको चने चबवा दिए. ये वीरांगना थी, गोंड रानी दुर्गावती
संचिता पाठक

बात है सन 1576 के जून के महीने की. मेवाड़ के राणा, महाराना प्रतापऔर मुग़ल शासक अकबर की सेना के बीच हल्दीघाटी का युद्ध लड़ा गया. अकबर ने मान सिंह प्रथम को महाराना प्रताप का मुकाबला करने के लिए भेजा था. मान सिंह प्रथम के साथ 80,000 मुग़ल सैनिक थे और वहीं महाराना प्रताप की सेना में 3000 राजपूत सैनिक), हकीम खान सुर के कुछ अफ़गान सैनिक और कुछ भील जनजाति (Bhil Tribe) के सदस्य थे. इस युद्ध को लेकर इतिहासकारों में खासा मतभेद है, लेकिन इतना तय है कि महाराना ने कम सैनिकों के बावजूद अकबर को ख़ासी टक्कर दी थी और काफ़ी क्षति पहुंचाई थी. इस युद्ध के बाद महाराना ने मुग़लों से अपने राज्य का अधिकांश हिस्सा वापस छीना.
हल्दीघाटी के युद्ध से हम सभी परिचित हैं लेकिन महाराना प्रताप से पहले एक और योद्धा ने मुग़लों के पसीने छुड़ा दिए थे.
हल्दीघाटी के युद्ध के लगभग एक दशक पहले, मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) स्थित सतपुड़ा जंगल (Satpura Forest) में एक और योद्धा ने मुग़लों को नाको चने चबवा दिए. ये वीरांगना थी, गोंड रानी दुर्गावती
रानी दुर्गावती का प्रारंभिक जीवन
5 अक्टूबर, 1524 को बांदा के कीर्तिसंह चंडेल के घर में रानी दुर्गावती का जन्म हुआ. वो अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी. Live History India के एक लेख के अनुसार, ये परिवार ख़ुद को चंदेल शासकों का वंशज था. चंदेल शासकों ने ही मध्य प्रदेश स्थित खजुराहो बनवाया था और महमूद ग़ज़नवी के आक्रमणों को मुंहतोड़ जवाब दिया था. 16वीं शताब्दी तक चंदेल वंश की शक्तियां और उनकी ज़मीन भी कम होती गई और चंदेल साम्राज्य सिमट कर कालिंजर के आस-पास (Kalinjar) तक ही रह गया.
रानी दुर्गावती के समय में लड़कियां तलवारबाज़ी, तीरंदाज़ी, घुड़सवारी नहीं सिखती थी लेकिन दुर्गावती ने ये सभी गुर सीखे. पिता के साथ रहकर उन्होंने युद्धकलाओं में भी महारत हासिल की
रानी दुर्गावती का ज़िक्र अबु फ़ज़ल ने अकबरनामा में भी किया है, उन्होंने लिखा, “वो बंदुक और तीर से निशाना लगाती थी, वो नियमित शिकार खेलने जाया करती थी.”
गोंड राजा से विवाह
18 की उम्र में सन 1542 में रानी दुर्गावती का गोंड राजा, दलपत शाह (Dalpar Shah) के साथ विवाह कर दिया गया. दलपत शाह के पिता राजा संग्राम शाह (Raja Sangram Shah) थे. The Better India के एक लेख के अनुसार, वे मध्य प्रदेश के गोंडवाना क्षेत्र के 4 गोंड राज्यों- गढ़ मंडला (Garh Mandala), देवगढ़ (Devgarh), चंदा (Chanda) और खेरला (Kherla) पर राज करते थे. दुर्गावती के पति दलपत शाह का राज गढ़ मंडला में था.
पहली बार राजपूत राजकुमारी का गोंड राजकुमार से विवाह?
पहली बार किसी राजपूत राजकुमारी का विवाह, गोंड घराने में हुआ था. चंडेल और कलचुरी (Kalachuri) की लड़ाइयां होती रहती थी. कलचुरी जबलपुर के पास रहते थे. दिल्ली सल्तनत भी चंडेल वंश को नुकसान पहुंचा रही थी. इस विवाह की वजह से चंडेल और गढ़ मंडल के बीच मैत्री और रिश्तेदारी दोनों हो गई.
1545 में जब शेर शाह सुरी (Sher Shah Suri) ने कालिंजर पर आक्रमण किया तब गोंड राजा ने उनकी मदद की और शेरशाह को खदेड़ने में कामयाब रहे. रानी दुर्गावती ने 1545 में एक पुत्र को जन्म दिया, नाम रखा गया वीर नारायण.
काल की कुछ और ही मंशा थी, 1550 में रानी दुर्गावती के पति दलपत शाह का देहांत हो गया. बेटे को सिंहासन पर बैठाकर उन्होंने गोंडवाना की बागडोर रानी ने संभाली.
कुशल शासक बनकर उभरी रानी दुर्गावती
पति के देहांत के बावजूद रानी ने ख़ुद पर दुख को हावी होने नहीं दिया और राज्य की देखभाल में जुट गईं. रानी ने राज्य की राजधानी को सिंगौरगढ़ किलेसे स्थानांतरित कर चौरागढ़ किलेको नई राजधानी बनाई. इतिहासकारों का कहना है कि ये सुरक्षा और राजनैतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण निर्णय था.
राज्य का विकास
रानी ने अपने राज्य की सीमाएं बढ़ाईं. रानी एकतरफ़ दुश्मनों से राज्य की सुरक्षा कर रही थी और दूसरी तरफ़ राज्य के वासियों की खुशहाली के लिए भी काम कर रही थीं. रानी ने अपने शासनकाल में अनेक मठ, बावड़ियां, कुंए और धर्मशालाएं बनवाई.
रानी ने अपने नाम पर रानीताल, अपने विश्वासी दीवान, आधारसिंह के नाम पर आधारताल और यहां तक कि अपनी दासी के नाम पर चेरीताल बनवाया.
रानी दुर्गावती, एक महान योद्धा
1556 में मालवा के सुल्तान बाज़ बहादुर ने रानी दुर्गावती के साम्राज्य, गोंडवाना पर पूर्व दिशा से आक्रमण कर दिया. रानी दुर्गावती ने बाज़ बहादुर की सेना के छक्के छुड़ा दिए. 1562 में अकबर ने बाज़ बहादुर को हराया और मालवा क्षेत्र को मुगल साम्राज्य में शामिल कर लिया. रानी दुर्गावती के साम्राज्य के पूर्व में स्थित रीवा (Rewa) को आसफ़ ख़ान (Asaf Khan) ने जीत लिया.
1564 में असफ़ ख़ान ने गोंडवाना पर आक्रमण कर दिया. इस युद्ध में रानी दुर्गावती ने सेना की कमान संभाली. छोटी सेना लेकर रानी मुग़लों पर टूट पड़ी और उनका शौर्य देखकर मुग़ल भी चौंक गए. रानी कुछ सैनिक जबलपुर स्थित लेकर नरई नाला (Narai Nala) पहुंची. ये जगह पहाड़ी क्षेत्र के बींचों बीच थी और इसके एक तरफ़ गौर नदी बहती थी और दूसरी तरफ़ नर्मदा. जैसे ही दुश्मन ने घाटी में प्रवेश किया दुर्गावती के सैनिकों ने हमला बोल दिया. युद्ध में रानी का सेनापति शहीद हो गया और रानी ने सेना की कमान संभालते हुए दुश्मन को खदेड़ा.
आख़िरी सांस तक मुग़लों से लड़ती रही वीरांगना दुर्गावती
हार के अगले ही दिन मुग़ल अत्यधिक सेना लेकर पहुंचे. इस बार रानी को उनके बेटे की मदद मिली, रानी अपने सफ़ेद हाथी सरमन पर चढ़कर युद्ध करने पहुंची. कहते हैं रानी और उनके बेटे वीर नारायण ने इस युद्ध में तीन बार मुग़लों को खदेड़ा. वीर नारायण युद्ध में बुरी तरह घायल हो गए थे, रानी ने उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने की व्यवस्था की और लड़ाई जारी रखी. सिर्फ़ 300 सैनिक शेष थे. रानी को सीने और आंख पर चोट लगी थी, उन्हें सैनिकों ने पीछे हटने की राय दी लेकिन रानी लड़ती रहीं.
जब रानी दुर्गावती को लगा कि वो अब युद्ध नहीं कर पाएंगी तब उन्होंने आधार सिंह से कहा कि वो उनकी जान ले लें. आधार सिंह ऐसा नहीं कर पाए, रानी दुर्गावती ने अपनी कटार अपने सीने में उतार ली.
24 जून, 1564 को मुग़लों से लड़ते हुए रानी ने अंतिम श्वास ली. उनके निधन के बाद वीर नारायण ने चौरागढ़ से लड़ाई जारी रखी लेकिन वे भी शहीद हो गए. इस तरह गढ़ मंडला मुग़ल साम्राज्य का हिस्सा बना. जबलपुर में रानी की समाधि है और जबलपुर में रानी दुर्गावती के नाम से एक विश्वविद्यालय भी है.वीर रानी दुर्गावती की कहानी से आज भी बहुत से लोग अपरिचित है, ज़रूरी है हम उनकी वीरगाथा को पढ़े, सुने और उनसे प्रेरणा लें.