सनत जैन
देश में महंगाई का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है। खाद्य तेल, सब्जियाँ, दालें और दवाइयों के दाम आसमान छू रहे हैं। रही सही कसर इंटरनेट के शुल्क ने पूरी कर दी है। टेलीकॉम कंपनियों ने इंटरनेट के रेट बढ़ा दिए हैं। एक ही परिवार में दो से तीन ओसतन स्मार्टफोन हैं। हाल ही में रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने महंगाई पर काबू पाने का भरोसा दिलाते हुए एक जुमला फेंका है। जुमले और ज़मीनी हकीकत कुछ और ही स्थिति बयां कर रही है। विभिन्न खाद्य तेलों जैसे पाम ऑयल, सरसों तेल, सोयाबीन और सूरजमुखी तेल के दामों में 25 से 35 फीसदी का भारी इजाफा हुआ है।
इसके साथ ही, टमाटर, प्याज, आलू जैसी आवश्यक सब्जियों के दाम भी आम जनता की पहुँच से बाहर हो रहे हैं। दालों के दाम भी बढ़कर 250 से 300 रुपए प्रति किलो के आसपास पहुँच गए हैं। सिर्फ खाद्य पदार्थ ही नहीं, बल्कि अन्य जरूरी वस्तुएं और सेवाएं भी महंगी होती जा रही हैं। डॉक्टर की फीस, ट्रांसपोर्ट, मोबाइल के दाम और बिजली की दरें सभी में इज़ाफा हो रहा है। लेकिन यह सभी चीजें सरकारी महंगाई दर में सही से परिलक्षित नहीं होतीं, जो आम जनता को भ्रामक लगती हैं। देश में महंगाई से निचले और मध्यम वर्ग का जीवन कठिन होता जा रहा है। राहुल गांधी जैसे नेता भी जब इस समस्या को आम लोगों के बीच जाकर समझने की कोशिश करते हैं, तो वहाँ की स्थिति से यह स्पष्ट होता है कि आम आदमी की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। गरीब और मध्यम वर्ग के लोग अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने में ही असफल हो रहे हैं। हालात इतने बुरे हैं कि एक आम नागरिक अपनी रोजी-रोटी भी ढंग से नहीं चला पा रहा है।
इन हालातों में, नेस्ले के सीईओ की टिप्पणी की ओर भी ध्यान देना आवश्यक है, जिसमें उन्होंने भारत के मध्यम एवं निम्न वर्ग की आर्थिक तंगी पर चिंता जताई। उन्होंने साफ़ कहा कि देश का मध्यम वर्ग अत्याधिक वित्तीय तंगी में है। सरकार को लगता है, जनता के पास बहुत पैसा है। यदि जनता को महंगाई और टैक्स से कोई परेशानी होती तो जनता सड़कों पर उतरती। कई राज्यों के विधानसभा हो गए। लोकसभा के चुनाव भी हो गए। यदि महंगाई कोई मुद्दा होती तो इसका असर मतदान में दिखता। इसी कारण सरकार महंगाई और बेरोजगारी को कोई मुद्दा नहीं मानती है। सरकार हर बार महंगाई कम होने का जुमला फेंकती है।
आम जनता उसे सही मान लेती है। हाल ही हरियाणा में भाजपा को ऐतहासिक जीत हासिल हुई है। महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव होने वाले हैं। अन्तरराष्ट्रीय बजारों में कच्चे तेल के दाम 35 फीसदी तक घट गए हैं। सरकार ने पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं घटाये हैं। इससे स्पष्ट है, सरकार महंगाई को मुद्दा नहीं मानती है। विपक्ष जरूर चिल्लाता रहता है। यदि महंगाई वास्तव में कोई मुद्दा होता तो जनता सड़कों पर आती। जिस तरह से भाजपा ने हरियाणा का चुनाव जीता है, उससे स्पष्ट है कि देश में महंगाई कोई मुद्दा नहीं है। यदि है भी तो जनता ने उसे स्वीकार कर लिया है। इसलिये सरकार को जरा भी चिंता नहीं है। जुमलों से काम चल रहा है।