मुनेश त्यागी
हाथरस सत्संग में हुई निर्दोष महिलाओं और बच्चों की मौत से दिल दहल गया। यह खबर सुनकर जैसे दिल बैठ ही गया। एकदम आह निकल गई, कहने को कोई शब्द नही थे। इससे पहले भी अनेकों बार सत्संग में हुई मौतों की खबरें आती रही हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार इन धार्मिक आयोजनों में पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम न होने और दूसरी तमाम लापरवाहियों के कारण 2003 से जुलाई 2024 तक 1500 से ज्यादा लोगों की अकाल मौत हो चुकी हैं और बेगुनाह लोग अकाल मौत का ग्रास बन गए हैं।
इन सत्संगों में भाग लेने वाले भक्तगण अपने-अपने भगवान बाबाओं के नाम पर इन धार्मिक आयोजनों में इकट्ठा होते रहे हैं। ये घटनाएं लगातार होती रहती हैं और इन सारी मोतों और घायलों की संख्या तमाम सरकारों और प्रशासन की नजरों में हैं। यह भी जग जाहिर है की इतनी अकाल मौतों के बाद भी शासन, प्रशासन और सरकारें अंधी, बहरी और अनजान बनी हुई हैं और इन दुर्भाग्यपूर्ण हादसों को रोकने के लिए वे कोई प्रभावी कदम नहीं उठा रही हैं।
यहां पर दो सवाल मुख्य रूप से उठते हैं,, एक राजनीति और दूसरा धर्म, भगवान और देवी देवताओं से संबंधित है। ये सारे श्रध्दालू लोग इन बाबाओं को भगवान समझते हैं। ये सब श्रद्धालु इन तथाकथित बाबाओं भगवानों की शरण में कुछ ना कुछ आशाएं और अपूर्ण इच्छाएं लेकर जाते हैं और उनका मानना है कि ये बाबा रुपी भगवान उनकी इच्छाओं और आशाओं को पूरा करेंगे क्योंकि इन बाबाओं के समर्थक लोगों और प्रचारकों द्वारा ऐसा प्रचार प्रसार करके ही गरीबों के दिमागों में ये भावनाएं और बातें भरी जाती हैं।
ये तमाम श्रद्धालु और भक्तगण आशा करते हैं कि ये तथाकथित भगवान बाबा उनकी गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, पिछड़ेपन, और अभावग्रस्तता को दूर करेंगे और और उनके जीवन में जो सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, व्यक्तिगत और पारिवारिक समस्याएं हैं, उन सबको ये बाबा दूर कर देंगे, उनका मनचाहा समाधान कर देंगे। इन्हीं आशाओं और उम्मीदों के सहारे लाखों लाख की संख्या में श्रद्धालु इन तथाकथित भगवानों और बाबाओं के सत्संगों में जाते हैं।
यहीं पर सबसे प्रमुख सवाल उठता है कि जब ये लाखों लोग इन बाबाओ को भगवान मानकर इनकी शरण में जाते हैं तो ये भगवान इनकी मदद क्यों नहीं करते? इनको अकाल मौत मरने और जख्मी होने से क्यों नहीं रोकते और इन भगवान की लालसा पाले ये हजारों श्रद्धालु लोग अकाल मौत के शिकार क्यों हो जाते हैं? क्यों कोई भगवान या बाबा समय रहते अपने श्रद्धालुओं को इन जान लेवा हादसों से बचाने आगे नहीं आते? यह बात अपने आप में निर्विवाद रूप से बिल्कुल सही है कि मौतें मक्का में हों, या केदारनाथ में, या हाथरस में हों, कोई आसमानी शक्ति बचाने नहीं आती, यानी कोई परालौकिक शक्तियां नहीं हैं।
यहीं पर यह जानना भी जरूरी है कि क्या भगवान जैसी कोई शक्ति है जो इनकी इच्छाओं का, उनके दुःख दर्दों का, उनकी समस्याओं का समाधान करेगा? और अगर वह कहीं है तो वह इन लाखों लाख श्रद्धालुओं की समस्याओं का हल क्यों नहीं कर रहा है? इन लगातार बढ़ती मौतों को देखते हुए यह बड़ी आसानी से कहा जा सकता है कि भगवान के नाम पर ये तथाकथित बाबा डोरा डालते हैं, जनता का मन मोहते हैं, उन्हें तरह तरह के प्रचार प्रसार द्वारा बहलाया, फुसलाया, बहकाया और गुमराह किया जाता है। इस अंधाधुंध प्रचार प्रसार का शिकार होकर, अपनी इन्हीं कामना पूर्ति की आशा और विश्वास के साथ ये श्रद्धालु इनकी शरण में जाते हैं। हकीकत यह है कि इन बाबाओ के पास कोई देवीय या भगवान की शक्ति नहीं है। ये सिर्फ एक छलावा हैं जिसे ये गरीब, वंचित, अभावग्रस्त और अंधविश्वासी लोग समझने और मानने को तैयार नहीं हैं।
दूसरा सवाल यह है कि जब पूरे देश में राज्य सरकारें हैं, जिला शासन, प्रशासन और पुलिस व्यवस्था है तो वे इन आयोजनों का सफल आयोजन क्यों नहीं करती और सरकार क्या करती रहती है? इन पूरे प्रकरणों को देखकर लगता है कि ये सारी समस्याएं इस जनविरोधी व्यवस्था और सरकार द्वारा पैदा की गई है। पूरा देश देख रहा है कि हमारे देश में 82 करोड़ से ज्यादा लोग गरीब हैं। आजादी के 77 साल बाद भी उनकी बुनियादी समस्याओं जैसे रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार का समाधान नहीं हुआ है। वे आज भी हजारों साल पुराने शोषण, अन्याय, जुल्मों सितम गैर बराबरी, छुआछूत, ऊंच नीच और छोटे बड़े की अमानवीय मानसिकता की सोच के भयंकर शिकार बने हुए हैं। इन समस्याओं का निराकरण और सही समाधान करने के लिए सरकार कोई प्रभावी कदम नहीं उठा रही है, ना ही कोई ऐसी नीतियां उसके पास मौजूद हैं, हां वह दिखावा करने के लिए बहुत सारे काम करती है और बहुत सारे बहाने बनाकर जनता को खुश करने की कोशिश करने का स्वांग रचती है।
सरकार यह बखूबी जानती है कि अगर इन करोड़ों की संख्या में मौजूद श्रद्धालुओं को, इन बाबाओ के सत्संग में जाने से रोका गया, तो ये सारे लोग अपनी बुनियादी समस्याओं को लेकर सरकार के खिलाफ धरना, प्रदर्शन और आंदोलन करेंगे और अपनी मांगों को पूरी करने के लिए सरकार से मांग करेंगे। इसलिए अपनी सत्ता और कुर्सी को बचाने के लिए, सरकार एक साजिश के तहत उनकी समस्याओं का समाधान करने से बचने के लिए इन श्रद्धालुओं को, इन गरीबों को, परेशान लोगों को, इन साधु बाबा भगवानों के सत्संगों और आश्रमों में जाने से नहीं रोकती है। अतः यह समस्या पूर्ण रूप से एक राजनीतिक समस्या है क्योंकि सरकार द्वारा पालन की जा रही जनविरोधी नीतियां, करोड़ों की संख्या में इस अभागी और बेसहारा जनता को हताश और निराश रखे हुए हैं।
वैसे तो ये तमाम तथाकथित सत्संगी कार्यक्रम सारे देश में होते रहते हैं, मगर पूर्वी और दक्षिणी भारत में वहां की सरकारों की नीतियों की वजह से और वहां के वैज्ञानिक संस्कृति के लगातार अभियान के वजह से, वहां के लोगों का पाखंडी और अंधविश्वासी नजरिया बहुत कमजोर हुआ है। केरल और तमिलनाडु में वैज्ञानिक नजरिए का तेजी से विस्तार हुआ है। वहां पाखंडों और अंधविश्वासों में विश्वास करने में काफी कमी आई है। वहां ऐसी दुखदाई खबरें देखने सुनने को नहीं मिलतीं। वहां की जनता अपनी वैज्ञानिक संस्कृति और ज्ञान विज्ञान के विकसित नजरिए के कारण इन बाबाओं के जाल में आने और फंसने से बची रहती है।
इसके विपरीत उत्तरी भारत खासकर उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली में वैज्ञानिक नजरिए व तर्कवादी सोच और मानसिकता का काफी अभाव है। यहां लोग अभी भी धार्मिक और अंधविश्वासी बने हुए हैं। उत्तरी भारत की धर्मांध और अवैज्ञानिक शिक्षा प्रणाली और सांप्रदायिक, धार्मिक और अंधविश्वासी ताकतें, इसके लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। धर्म और भगवान के नाम पर इन अंधविश्वासों को बढ़ावा देने वाली ताकतों ने, सत्संग को धन कमाने और पीड़ित, वंचित जनता को गुमराह करने का एक बड़ा धंधा और जरिया बना लिया है।
यहां तर्क और वैज्ञानिक नजरिए का अकाल है। यहां की अधिकांश गरीब, अभावग्रस्त और वंचित जनता और कुछ पढे लिखे अंधविश्वासी और धनवान लोग भी इन सत्संगियों के प्रभाव के सबसे ज्यादा शिकार हैं। यहां की अधिकांश जनता गरीबी, उत्पीड़न और सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक अन्याय, शोषण और जुल्मों सितम का शिकार है। वह अपनी तमाम समस्याओं का समाधान इन्हीं सत्संगों में ढूंढती है। इन्हीं मनोदशाओं, इच्छाओं और उम्मीदों के कारण आम श्रद्धालु इन हादसों के आसान शिकार बनने को अभिशप्त और मजबूर हैं। यहां की सरकारों द्वारा की जा रही राजनीति, इस सबके लिए सबसे बड़ी और सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। जब तक जनविरोधी नीतियों और अंधविश्वासों को बढ़ावा देने वाली इस मानव विरोधी राजनीति को नहीं बदला जाएगा और जब तक जनता की बुनियादी समस्याओं का समुचित समाधान नहीं किया जाएगा, तब तक ये हृदयविदारक हादसे रुकने वाले नहीं हैं।
यहीं पर सबसे बड़ा सवाल उठता है कि ऐसे में क्या किया जाए? इन तमाम हादसों को रोकने के लिए तमाम जनवादी, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और जनता का कल्याण चाहने वाली तमाम ताकतों को एकजुट होना पड़ेगा। इन अभाव ग्रस्तों के बीच में जाना पड़ेगा, उनसे बातचीत करनी पड़ेगी, उनकी राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक और व्यक्तिगत समस्याओं के समाधान के रास्ते ढूंढने पड़ेंगे और उनकी मुक्ति का कार्यक्रम बनाकर सरकार के सामने पेश करना होगा और उस मुक्ति के प्रोग्राम को जमीन पर उतरने के लिए लगातार जन जागृति और संघर्ष करना पड़ेगा, ज्ञान विज्ञान और वैज्ञानिक नजरिए का प्रचार प्रसार करना होगा और इन तमाम बाबाओं के अंधविश्वासों, धर्मांधताओं और नकली और झूठे आश्वासनों से इस पीड़ित जनता को परिचित कराना होगा और इस पूरी जनता को इन तथाकथित भगवानी बाबाओं के जंजाल से मुक्ति दिलानी होगी और सरकार को जनकल्याणकारी नीतियों को अपनाने पर मजबूर करना पड़ेगा, तभी इस प्रकार के हृदयविदारक हादसों से बचा जा सकेगा।