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बढ़ता मानसिक दवाब आत्महत्या (आत्मदाह)का कारक

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भरत गहलोत

वर्तमान समय में आजकल आत्महत्या आम बात हो गई है ,
आए दिन विभिन्न समाचार पत्रों में आत्महत्या के मामले आ रहै है खबरे आ रही है,
इनमें से अधिकतर आत्मदाह मानसिक दवाब के कारण होता है,
युवाओं में इसकी बढ़ती गणना चिंता का विषय है,
आजकल युवक व युवतियो में आत्मदाह साधारण बात हो गई है,
अब सवाल यह है कि व्यक्ति आत्म हत्या क्यो करता है इसका साधारण शब्दो में जवाब यही है कि जब व्यक्ति कुंठा से भर जाता है अपने आपको इस दुनिया में अकेला पाता है किसी वेदना से ग्रसित हो जाता है ,
पीड़ा इतनी होती है कि उसे आत्मदाह के अलावा कोई मार्ग न दिखता हो,
मानसिक दबाव में हो शारीरिक कष्ट में हो अपने आपको किसी भी संकट में अकेला पाए तब आत्म हत्या जैसा कठोर कदम उठाता है,
पिछले 2 -3 तीन सालों में जब से कोरोना ने दस्तक दी थी विश्व की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है,
तब आत्महत्या के मामलों में व्रद्धि हुई है,
वैसे आत्म हत्या एक कायरता पूर्ण कार्य है अर्थात आत्महत्या कायर करते है ,
जो व्यक्ति कायर होते है वो आत्महत्या जैसे कृत्य को अंजाम देते है ,
हम जब छोटे थे तब स्कूल में हमे एक प्राथना बुलाई जाती थी,
मनुष्य तू बड़ा महान है ,
रे भूल मत मनुष्य तू बड़ा महान है ,
तू जो चाहे पर्वत पहाड़ों को तोड़ दे,
तू जो चाहे धरती के मुख को भी मोड़ दे ,
अमर तेरे प्राण तू है मनु की संतान तेरी मुट्ठियों में छुपा महाकाल है रे ,
मनुष्य तु बड़ा महान है,
वही मनु की संताने आज थोड़ी सी पीडा व मन कुंठित होने से आत्मदाह जैसे कुकृत्य कर देते है,
उन्हें भारत का इतिहास व संस्कृति को पढ़ना चाहिए कि कैसे विषम परिस्थितियों व कठिनाईयो से जूझकर भी कैसे महान लोगो ने अपने लक्ष्य को प्राप्त किया ,
इतिहास में ऐसे कही उदाहरण है जैसे चंदगुप्त मौर्य , आचार्य चाणक्य ने मिलकर अंखण्ड भारत का निर्माण किया ,
यूनानी आतातायी सिकन्दर से भारत की व भारतीय संस्कृति की रक्षा की,
विषम परिस्थितियों में रहकर घनानंद जैसे दुराचारी राजा के अत्याचार से मगध की प्रजा को मुक्त कराया,
महाराणा सांगा जिनके एक हाथ , एक आँख व एक टांग , शरीर पर अस्सी घाव होने पर भी युद्ध में भारत का नेतृत्व करते थे,
महाराणा प्रताप जिन्होंने घास की रोटियां खाई ,संघर्ष किया व अपने लक्ष्य को प्राप्त किया ,
ऐसे कई अनगिनत उदाहरणों सेे भारत व विश्व का इतिहास भरा पड़ा है,
अतः व्यक्ति को जब लगे कि वो अकेला है व उसके जीवन का उद्देश्य
खत्म हो गया है तो उसे महापुरुषों की जीवनी पढ़नी चाहिए व महानयोद्धाओं की जीवनी से सीख लेनी चाहिए ,
कहा जाता है कि मनुष्य जीवन 84 हजार
योनियों के बाद प्राप्त होता है और उस ईश्वर (परमात्मा) ने किसी को भी निरुद्देश्य नही भेजा है इस सँसार में इस सँसार में मनुष्य को भेजने का उसका कोई न कोई तो मूल होगा,
जरुरत है व्यक्ति को उस मूल कारण को पहचानने व अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की ,
और परिवारजनों व शुभचिंन्तको को
चाहिए कि उनकी वेदना को जानने का प्रयास करे ,
उनके दुख पीड़ा में सहभागी बने उनके दुःख दूर करने का सम्मलित प्रयास करे,
क्योंकि इस सँसार में कुछ भी स्थाई नही है ,
सब कुछ क्षणिक है ,
और सुख और दुःख तो जीवन के दो पहिए है ,
कभी सुख है तो कभी दुःख है ,
कभी दुःख है तो सुख जरूर आएगा ,
पूरे जीवनकाल तक दुःख नही रहेगा,

भरत गहलोत
जालोर राजस्थान
संपर्क सूत्र -7742016184 –

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