अग्नि आलोक

*जे पी लोहिया होते तो मोदी गद्दी छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व करते*

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जे पी – लोहिया की समाजवादी  दृष्टि से वर्तमान समस्याओं का हल ढूंढें समाजवादी*

*- डॉ सुनीलम*

  लोकनायक जयप्रकाश नारायण का 11 अक्टूबर को जन्म दिवस और 12 अक्टूबर को डॉ राम मनोहर लोहिया की पुण्यतिथि के अवसर पर देशभर में समाजवादियों द्वारा सैकड़ों कार्यक्रम आयोजित किए गए। ज्यादातर जगहों पर जेपी और डॉ.लोहिया के स्वतंत्रता आंदोलन एवं समाजवादी आंदोलन में योगदान की चर्चा हुई।

  देश के समाजवादियों एवं जेपी – लोहिया के समर्थकों, शुभचिंतकों ने वर्तमान चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए जेपी और लोहिया की वैचारिकी से क्या दिशा और सीख मिलती है, इस पर  भी चर्चा की।

इस विषय पर मेरी दृष्टि आपसे सांझा कर रहा हूं।

 आज यदि जेपी हमारे बीच होते तो वे फिर एक बार लोकतंत्र की बहाली के लिए 

देशव्यापी दौरे कर रहे होते।

इस बार बेरोजगारी, महंगाई, सामाजिक न्याय, राज्य का दमन और संघवाद जैसे मुद्दों के साथ साथ वे कॉरपोरेट लूट और सांप्रदायिक कट्टरता और नफरत के खिलाफ

आंदोलन चला रहे होते। किसानों और मजदूरों के आन्दोलन के साथ-साथ फिलिस्तीन की आजादी के आंदोलन 

का सक्रिय समर्थन कर रहे होते। हो सकता है सरकार उन्हें जेल में डाल देती, तो जेल में रहकर भी वे वर्तमान  तानाशाहीपूर्ण, सांप्रदायिक एवं अडानी-अंबानी की सरकार को हराने और अपदस्थ करने के लिए आंदोलन कर रहे होते।

     जनता पार्टी के गठन और बिखराव के 1977 के अनुभव के बाद वे पहले समाजवादियों की एक मजबूत पार्टी बनाते अर्थात

समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल एवं अन्य समान विचारधारा के दलों  और संगठनों को पहले एक साथ लाकर फिर देशभर के समाजवादियों की एक पार्टी खड़ी करते।

 विपक्षी पार्टियों के साथ विलय नही करते परंतु इतना तो तय है कि वे विपक्षी पार्टियों का फेडरल फ्रंट अवश्य बनाते। भले ही उसका नाम इंडिया गठबंधन ही देते। एक न्यूनतम सांझा कार्यक्रम और सांझा संघर्ष का कार्यक्रम तय कराते।

 जेपी ने अपने जीवन काल में जिस तरह से कश्मीरियों और पूर्वोत्तर के लोगों का साथ दिया था, यदि वे होते तो मणिपुर की हिंसा को रोकने तथा जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने और राज्य का विभाजन करने का पुरज़ोर विरोध करते। 

जम्मू कश्मीर में राज्य सरकार बन जाने के बाद राज्य को एकजुट कर विधान सभा के माध्यम से 

संघीय ढांचे को मजबूत करने के लिए विपक्षी दलों के साथ मिलकर

फेडरलिज्म और विकेंद्रीकरण की लड़ाई को सदन के भीतर और बाहर लड़ने की गोलबंदी करते।

लद्दाख में सोनम वांगचुंग के आंदोलन का समर्थन करते। उनके साथ पदयात्रा करते, अनशन करते।

    डॉ. लोहिया यदि जीवित होते तो वे गैर कांग्रेसवाद के सफल प्रयोग के बाद आज की जरूरत के अनुसार  संविधान और देश को बचाने के लिए गैर भाजपावाद की रणनीति बनाते और भाजपा-एनडीए के हर उम्मीदवार के खिलाफ हर चुनाव में विपक्ष का एक उम्मीदवार देने की कोशिश करते ताकि मत विभाजन को रोकना संभव हो पाता।

    मुझे यह भी लगता है कि जेपी और लोहिया होते तो वे पूरी दुनिया में दौरा कर विश्व समुदाय को भारत के समक्ष उत्पन्न तानाशाही के खतरे से आगाह करते। रूस और यूक्रेन के युद्ध को रोकने तथा फिलीस्तीन राष्ट्र की स्वतंत्रता और सुरक्षित अस्तित्व के लिए प्रयास करते।

    जेपी और लोहिया होते तो वे न केवल किसानों की एम एस पी, कर्जा मुक्ति और मजदूरों के 44 श्रम कानूनों  की बहाली के लिए आंदोलन करते बल्कि संपूर्ण विपक्ष को किसानों और मजदूरों के समर्थन में सड़कों पर उतारते।

    मुझे शिद्दत से यह भी महसूस होता है कि जेपी और लोहिया होते तो वे विपक्षी पार्टियों के सांसदों से साथ सड़क पर देश को बचाने के लिए अनिश्चित आंदोलन चलाते।

      यह सर्व विदित है कि डॉ. लोहिया ने सप्त क्रांति और जेपी ने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था। वर्तमान तानाशाहीपूर्ण, सांप्रदायिकता और मोदानी राज से निपटने के लिए वे जन क्रांति का आह्वान करते ।

    वे 1942 के ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन की तर्ज पर ‘मोदी गद्दी छोड़ो’ आंदोलन चलाते ।  दोनों नेताओं ने देश के नवनिर्माण की कोशिश अंतिम समय तक की थी तथा समता, न्याय, लोकतंत्र, बंधुत्व और स्वतंत्रता के मूल्यों को अंतिम समय तक बचाने और मजबूत करने का कार्य किया था, वही कार्य दोनों समाजवादी नेता कर रहे होते।

        जे पी ने छात्र आंदोलन का नेतृत्व करते हुए छात्र युवा संघर्ष वाहिनी, पीयूसीएल, सीएफडी, हिंद मजदूर सभा का गठन किया था। जेपी के समर्थकों को जेपी को याद करते हुए इन संस्थाओं और संगठनों को मजबूत करने का संकल्प आज हमे लेना चाहिए। इसी तरह डॉ.लोहिया ने अपने जीवन काल में अनेक पत्रिकाएं जिसमें कांग्रेस सोशलिस्ट, जन, मैनकाइंड पत्रिकाओं का संपादन किया था। उन पत्रिकाओं के पुनर्प्रकाशन का प्रयास भी किया जाना चाहिए।

   डॉ.लोहिया ने जेल,वोट,फावड़ा का जो सिद्धांत प्रतिपादित किया था, समाजवादियों को इन्हीं तीन सूत्रों के आधार पर समाजवादी राजनीति को पुनर्स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए।

डॉ सुनीलम

पूर्व विधायक (सपा) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष किसान संघर्ष समिति

8447715810

samajwadisunilam@gmail.com

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