अशोक मधुप
मेरठ में 36 साल पूर्व हुए मलयाना कांड का निर्णय आ गया।अदालत ने इस कांड के सभी जीवित 39 आरोपियों को बरी कर दिया।इन्हें इसलिए बरी किया गया कि केस में आरोपियों के खिलाफ सबूत नही थे। सभी आरोपी बरी हो गए।किंतु केस में मरने वाले 63 लोगों के साथ न्याय नही हुआ। वे मरे तो थे।उनकी मौत किसने की ,इसका जवाब निर्णय में नही है। वे मरे तो थे। उन्हें किसने मारा।उनके साथ क्या हुआ, इसका भी तो जवाब मिलना चाहिए।उनके मारने वालों को भी तो सजा होनी चाहिए। पर ऐसा नही हुआ। केस का निर्णय आधा− अधूरा सा लगता है। न्यायालय ने इन 39 आरोपियों को बरी कर दिया, पर उसे मारने वालों की खोज करने का पुलिस को आदेश भी देना चाहिए था।
कल शनिवार को जब निर्णय आया तब भी रमजान चल रहे थे। कल नौवां रोजा था। 36 साल पहले जब ये सामूहिक हत्याकांड हुआ। तब भी रमजान चल रहे थे। उसदिन रमजान की 25वीं तारीख और अंग्रेजी कलेंडर के हिसाब से 23 मई 1987 की सुबह थी।लगभग सात बजे मलियाना में एक खबर आयी कि आज मलियाना में घर-घर तलाशी होगी । गिरफ्तारियां होंगी। कोई भी इसकी वजह नहीं समझ पा रहा था। भले ही 18/19 की रात से पूरे मेरठ में भयानक दंगा हुआ , लेकिन मलियाना शांत था । यहां पर कर्फ्यू भी नहीं लगाया गया था।यहां हिन्दू और मुसलमान साथ-साथ सुख चैन से रहते आ रहे थे।
लगभग बारह बजे पास संजय काँलोनी में गहमागहमी हुई। वहां देसी शराब के ठेके से शराब लूटी गई। इसी दौरान पुलिस और पीएसी ने मलियाना की मुस्लिम आबादी को चारों ओर से घेरना शुरू कर दिया। कुछ ही समय में जौहर की अजान हुई । बहुत सारे लोग हिम्मत करके नमाज अदा करने मस्जिद में चले गए। नमाज अभी हो ही रही थी । आरोप है कि पुलिस और पीएसी ने घरों के दरवाजों पर दस्तक देनी शुरू कर दी। दरवाजा नहीं खुलने पर उन्हें तोड़ दिया गया। घरों में लूट और मारपीट शुरू कर दी नौजवानों को पकड़कर एक खाली पड़े प्लाट में लाकर बुरी तरह से मारा-पीटा गया। उन्हीं नौजवानों में मौहम्म्द याकूब थी था, जो इस कांड का मुख्य गवाह है। तभी पूरा मलियाना गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज गया। दंगाइयों घरों को लूटना और जलाना शुरू कर दिया। तेजधार हथियारों से औरतों और बच्चों पर हमले हुए। आरोप है कि पुलिस पीएसी ने भी गोली चलाई।यह सब दोपहर ढाई बजे से शाम पांच बजे तक चलता रहा। कुल 63 लोग मारे गए।होली चौक पर सत्तार के परिवार के 11 सदस्यों के शव उसके घर के बाहर स्थित एक कुए से बरामद किए गए। मारे गए लोगों में केवल 36 लोगों की शिनाख्त हो सकी।शासन प्रशासन ने इस कांड को हिन्दू-मुस्लिम दंगा प्रचारित किया था। लेकिन यहां पर किसी एक गैरमुस्लिम को खरोंच तक नहीं आयी थी। कत्लेआम के बाद मलियाना नेताओं का तीर्थस्थल हो गया था। शायद ही कोई नेता ऐसा बचा हो, जो मलियाना न आया है। विपक्ष और मीडिया के तीखे तेवरों के चलते इस कांड की एक सदस्यीय जांच आयोग से जांच कराने का ऐलान हुआ।आयोग के अध्यक्ष जीएल श्रीवास्तव ने एक साल में ही जांच पूरी करके सरकार को रिपोर्ट सौंप दी थी। किंतु ये रिपोर्ट कबाड़ में चली गई।
इस केस की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रेक कोर्ट बना, पर निर्णय आने में 36 साल लग गए।लंबी सुनवाई के बाद एडीजे छह लखविंदर सूद की अदालत ने 39 आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया। इस मामले में 40 आरोपियों की मौत हो चुकी है और 14 को पहले ही क्लीनचिट मिल गई थी।केस में कुल 93 आरोपी बनाए गए। एक आरोपी का नाम दो बार आया। चार आरोपी ऐसे भी रहे,जिनकी मृत्यु दंगे से दस साल पहले 1977 मे ही हो गई । 88 के खिलाफ चार्ज शीट दाखिल हुई। 40 आरोपियों की सुनवाई के दौरान मौत हो गई।नौ आरोपी ऐसे रहे जिनका पुलिस पता नही लगा सकी। बाकी बचे 39 दोष मुक्त रहे।
केस की जांच के दौरान ही पता चल गया था कि नामजद चार आरोपियों की घटना से पहले ही मौत हो गई है।इसके बावजूद केस की मानिटिरिंग करने वाले अधिकारियों ने यह नही देखा की नामजदगी फर्जी है।केस के दस साल पहले मर चुके चार लोगों के नाम होने के बावजूद किसी ने नही सोचा कि केस कोर्ट में जाकर फर्जी साबित हो जाएगा।सरकारे आती रहीं बदलती रहीं, किंतु किसी ने भी इस केस की सही से मानीटिरिंग नही कराई।
वादी मोहम्मद याकूब की गवाही न्यायालय में दो दिसंबर, 2022 को हुई थी। याकूब ने बताया था कि मुकदमे में सलीम ने थानाध्यक्ष टीपी नगर को मतदाता सूची देकर नाम लिखवाए थे। रिपोर्ट पर उसके हस्ताक्षर अगले दिन कराए थे। रिपोर्ट उसे देखने को नहीं मिली थी।वादी ने खुद न्यायालय में अपने बयान दर्ज कराए कि जिन आरोपियों को दंगे का आरोपी बनाया गया है, उनके द्वारा यह घटना नहीं की गई थी, बल्कि पुलिस और पीएसी वालों ने ही गोलियां चलाकर घटना को अंजाम दिया था।
कोर्ट में साक्ष्य के अभाव में साबित हुआ कि नरसंहार के बाद दर्ज मुकदमे में पुलिस ने फर्जी नामजदगी की थी।मुकदमे में 74 गवाह बने थे, इनमें से अब 25 ही बचे । पुलिस ने विवेचना में 61 गवाहों का हवाला दिया । इनमें से 14 लोगों की गवाही हुई।
न्यायालय की नजर में केस का निस्तारण हो गया। मुख्य आरोपी पुलिस और पीएसी वाले थे।उन्हें आरोपी बनाया नही गया।जो आरोपी बनाये गए थे,वे निर्दोष थे। वे सब छूट गए।न्याय हो गया किंतु मरने वाले 63 लोगों को न्याय नही मिल सका। उनकी मौत के गुनाहगारों को सजा नही मिल सकी।केस की सुनवाई के दौरान उनका पता नही लग सका।63 लोगों की मौत का सच पुलिस और कानून के दरवाजे पर दफन हो गया।अब कोई इस केस के अपराधियों को जान ही नही पाएगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)