आज उस सियासी दिग्गज की कहानी जिसने अंग्रेजों के सामने यूनियन जैक को उतारकर कांग्रेस का झंडा फहरा दिया था। जिसने सोवियत संघ के राष्ट्रपति मिखाईल गोर्बाचेव को ऐसी फटकार लगाई थी के वे सन्न रह गये थे।
आज हम आपको एक ऐसे शख्स की कहानी सुनाने जा रहे हैं जिसने अंग्रेजों के सामने यूनियन जैक को उतारकर कांग्रेस का झंडा फहरा दिया था। जिसने रूस (उस समय सोवियत संघ) के राष्ट्रपति जो कि उस दौर में दुनिया का सबसे ताकतवर नेता हुआ करता था उसको ऐसी फटकार लगाई थी के वह सन्न रह गया था। पहले हम पहली वाली कहानी जान लेते हैं क्योंकि वह भारत से जुड़ी हुई है और ज्यादा रोचक भी है।

साल था 1932, दिन था 23 मार्च, शहीद भगत सिंह का पहला शहादत दिवस। कांग्रेस कमेटी के क्रांतिकारी धड़े ने पंजाब की कचहरियों पर कांग्रेस का झंडा फहराने की योजना बनाई। लेकिन इस योजना के बारे में ब्रिटिश सरकार को पता चल गया। इसके बाद पंजाब में जिलेवार मोर्चा संभाल लिया गया। कांग्रेस नेताओं ने एक गुप्त बैठक बुलाई, जिसमें भूमिगत होने की बात कही गई। लेकिन उस बैठक में 16 साल का युवक पीछे हटने को तैयार नहीं था।
अंग्रेजों की गोली भी नहीं हिला सकी हौसला
नेताओं ने उसे समझाने की कोशिश की, अंग्रेजों ने गोली मारने की धमकी भी दी। लेकिन युवक किसी की बात सुनने को तैयार नहीं था। वहां मौजूद एक कांग्रेस नेता ने उससे कहा कि हम कायर हैं और तुम ज्यादा बहादुर हो, इसलिए खुद जाकर झंडा फहराओ। युवक का उबलता खून शांत होने वाला नहीं था। उसने अपने कुर्ते में झंडा छिपाया और झंडा फहराने के लिए कचहरी पहुंच गया। वहां तैनात ब्रिटिश सेना को चकमा देकर वह झंडा फहराने के लिए कचहरी की छत पर चढ़ने लगा।
यूनियन जैक उतारकर फहराया कांग्रेसी ध्वज
इस दौरान नीचे खड़े ब्रिटिश सैनिकों ने उस पर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। लेकिन एक भी गोली उसे छू नहीं सकी। युवक ने यूनियन जैक का झंडा उतारकर फेंक दिया। और देखते ही देखते उसने कांग्रेस का झंडा फहरा दिया और भाग गया। कुछ दिनों बाद उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तार युवक को अगले दिन अदालत में पेश किया गया। अदालत में जज ने उसका नाम पूछा, युवक ने तुरंत जवाब दिया, “मेरा नाम लंदनतोड़ सिंह है।”
आज शनिवार 23 मार्च को उसी ‘लंदनतोड़ सिंह’ यानी सरदार हरकिशन सिंह सुरजीत की 109वीं जयंती है। सरदार हरकिशन सुरजीत सिंह का जन्म साल 1916 में आज ही के दिन पंजाब में जालंधर के बुडाला गांव में हुआ था। 14 साल की उम्र में उन्होंने सियासत की देहरी पर कदम रखा और 6 साल बाद यानी 1936 में कम्युनिस्ट झंडा थाम लिया।
सियासी संभवानाएं भांपने वाला ‘कॉमरेड’
हरकिशन सिंह सुरजीत एक ऐसे नेता थे जो राजनीति की सभी संभावनाओं को भांप लेते थे। एक समय ऐसा भी था जब उन्हें लगता था कि मुलायम और लालू उत्तर भारत में खासकर यूपी और बिहार में बीजेपी को हरा सकते हैं। उनके अनुसार वे धर्मनिरपेक्ष और मंडल के मसीहा थे। इसीलिए 1996 और 1997 में दो मौकों पर जब कई दलों के गठबंधन से बने संयुक्त मोर्चे को प्रधानमंत्री चुनना था, तो सुरजीत ने मुलायम पर हाथ रख दिया।
मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव और सरदार हरकिशन सिंह सुरजीत
इस मौके पर ज्योति बसु और वीपी सिंह के इनकार के बाद ज्योति बाबू और कामरेड सुरजीत को लगा कि अब वामपंथ को अपने क्षेत्रीय अवतार से बाहर आना होगा। उन्हें देश चलाना चाहिए, भले ही कुछ महीनों के लिए, ताकि वे लोगों को अपने इरादे दिखा सकें। लेकिन प्रकाश करात और दूसरे शुद्धतावादियों को यह अवसरवाद लगा।
चकनाचूर किया सीताराम केसरी का सपना
फिर सरदार सुरजीत पीस मेकर और ब्रेकर की भूमिका में आ गए। देवेगौड़ा चुने गए। दूसरी बार सुरजीत ने ही सीताराम केसरी के पीएम बनने के सपने को चकनाचूर कर दिया। फिर उन्होंने जीके मूपनार के नाम पर वीटो लगा दिया। उन्होंने मुलायम को प्रोत्साहित किया। लालू को नहीं। क्योंकि चारा घोटाले का भूत उन्हें परेशान कर रहा था। फिर सुरजीत मास्को चले गए। मुलायम ने सोचा, अब उनकी बारी है। लेकिन पीठ पीछे खेल खेला गया।
1996 की एक घटना याद आती है। केंद्र में देवेगौड़ा की सरकार बन चुकी थी। यूपी में चुनाव होने थे। रामविलास पासवान चाहते थे कि जनता दल मुलायम सिंह की सपा के साथ गठबंधन करे। शरद यादव चाहते थे कि जनता दल बसपा के साथ गठबंधन करे। मुलायम भी गठबंधन के लिए तैयार थे। बसपा के साथ। लेकिन एक शर्त थी। न मायावती सीएम बनेंगी और न ही मैं।
‘दिल्ली जाने के लिए मुंबई की ट्रेन पकड़ते हैं’
इस बहस के बीच मायावती ने साफ इनकार कर दिया। जिसके बाद जनता दल और वामपंथी दलों को अनिच्छा से सपा के साथ आना पड़ा। उन दिनों चंदौली में एक छोटी सी जनसभा थी। उसमें सुरजीत ने जनता दल के लोगों पर कटाक्ष करते हुए कहा, “हम जनता दल के साथ हैं। लेकिन उन्हें खुद नहीं पता कि वे किसके साथ हैं। वे दिल्ली जाना चाहते हैं, लेकिन मुंबई की ट्रेन में बैठते हैं।”
सबसे ताकतवर राष्ट्रपति को लगाई फटकार
अपनी विचारधारा के प्रति समर्पित सरदार सुरजीत ने सोवियत संघ के मिखाइल गोर्बाचेव से साफ कहा था, “जिस तरह से आप लोग साम्यवाद चला रहे हैं, वह कुछ दिनों तक ही चलेगा।” यह साल 1987 की बात है। उनकी भविष्यवाणी जल्द ही सही साबित हुई। कम्युनिज्म के प्रति उनका समर्पण ऐसा था कि जब सोवियत संघ का पतन हुआ, तो उन्होंने क्यूबा को पार्टी की तरफ से और नरसिम्हाराव सरकार से अनुरोध करके अनाज भिजवाया था।