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है यहाँ सत्य अहिंसा का डेरा?

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शशिकांत गुप्ते

सन 1965 में प्रदर्शित फ़िल्म सिकन्दर-ए-आजम का यह गीत देश भक्ति से परिपूर्ण गीत है। यह गीत सिर्फ 15 अगस्त और 26 जनवरी को ही सुनने को मिलता है।
यह गीत लिखा है। गीतकार राजेंद्र कृष्णजी ने।
इस गीत की शुरुआत ही इन पंक्तियों से होती है।
जहाँ डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा
वो भारत देश है मेरा
इन पँक्तियों को सुनकर मन प्रसन्न हो जाता है।
इन पंक्तियों के आगे की पंक्तियां तो मन को पूर्ण रूप से भावविभोर कर देती है।
यहाँ सत्य अहिंसा और धर्म का पग पग लगता डेरा
गीतकार ने जब इस गीत की रचना की होगी तब, वह निश्चित ही मानसिक रूप से सतयुग में ही विचरण कर रहा होगा।
कल्पना की उड़ान की कोई सीमा नहीं होती है। कहावत है “जहाँ न पहुँचे रवि,वहाँ पहुँचे कवि।’
इनदिनों गीत की इन पंक्तियों को बार बार गुनगुनाने का मन करता है।
यहाँ सत्य अहिंसा और धर्म का पग पग लगता डेरा
इन पंक्तियों को गुनगुनातें ही अच्छेदिनों का एहसास होने लगता है। वे सारी खबरें मिथ्या लगती है जो साम्प्रदायिक रंग में रंगी होती है?
धर्म का पग पग लगता डेरा, यह पंक्ति तो चरितार्थ होते हुए स्पष्ट दिखाई देती है। जब धर्म संसद के आयोजनो की खबरें प्रकाशित और प्रसारित होती है?
यह गीत हमेशा सकारात्मक सोच रखने की प्रेरणा देता है।
मानव के मानस में जब सकारात्मक सोच पैदा होत है,तब मानव पन्द्रहलाख की परवाह नहीं करता है? रोजगार को प्राप्त करने के लिए, दूसरों पर अवलंबित नहीं रहता है।
वह नायब स्वरोजगार योजना को मूर्त रूप देता है। नाले की गैस का ईंधन के रूप में उपयोग कर पकौड़ों का व्यापार करने लगता है?
जब सब कुछ सुचारू रूप से,शुचितापूर्ण माहौल में होने लगता है। तब कुछ नकारात्मक सोच रखने वाले, आलोचना करने से बाज नहीं आतें हैं।
ये विघ्नसंतोषी लोग होतें हैं।
इन आलोचकों को समझना चाहिए कि,अच्छेदिन आते नहीं है ना ही लाए जातें हैं।
अच्छेदिनो को महसूस करना चाहिए।
उक्त गीत की ये पंक्ति भी महत्वपूर्ण है।
यहाँ आसमान से बातें करते मंदिर और शिवाले
किसी नगर में किसी द्वार पर कोई न ताला डाले
इन पंक्तियों का स्मरण होते ही।
एक भजन की ये पंक्तियां गुनगुनाने का मन करता है।
तेरे फूलों से भी प्यार तेरे कांटो से प्यार
तू जो देना चाहे दे दे करतार
चाहे हमें लगा दे पार या डुबो दे मझधार

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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