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हिंदी दुनिया की एक बेहतरीन भाषा

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मुनेश त्यागी

       आज विश्व हिंदी दिवस है। उर्दू हिंदी के मेल से हिंदुस्तानी यानी हिंदी भाषा दुनिया की एक बेहतरीन भाषा बन गई है जिस पर हर कोई इलाज कर सकता है सिर्फ हिंदुत्ववादियों को छोड़कर। आज हमारे मध्यम वर्ग के अधिकांश घरों में बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाने, बोलने की रुत चल रही है। उनके लिए जैसे हिंदी पढ़ना और बोलना एक निचले दर्जे का काम है। ये लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी पढ़ा कर ही गौरव महसूस करते हैं। इस मानसिकता को बनाने में हमारे शासक वर्गों का बहुत बड़ा हाथ है। वे आज भी यही काम कर रहे हैं। उन्होंने पूरी दुनिया से नहीं सीखा कि कैसे अंग्रेजी, चीनी और रूसी भाषा को विश्व की भाषाएं बनाया गया है और विकसित किया गया है।

       हम यहां पर जोर देकर कहना चाहते हैं कि हमारी हिंदी भाषा एक बहुत ही सशक्त भाषा है, बस यह जरूरी है कि हम हिंदी भाषा का जनवादी स्वरूप अपनाएं और विकसित करें। इसमें संस्कृत और अरबी, फारसी के शब्दों को जबरदस्ती डालकर हिंदी को बोझिल भाषा बनाने से बचा जाए। हमारी हिंदी भाषा एक जोरदार और बहुत ही सशक्त भाषा है, इसे पुष्पित पल्लवित करने के लिए उसके जनवादी कवियों, लेखकों, साहित्यकर्मियों सहित सांस्कृतिक कर्मियों को मैदान में आना होगा और हिंदी के जनहितकारी स्वरूप को जनता के बीच में ले जाना होगा। यह काम हमारे जन साहित्यकारों को करना पड़ेगा। हमारा शासक वर्ग इस काम को कभी नहीं करेगा। वह तो आज भी अंग्रेजी में ही लटका पड़ा है।

           दुनिया में हजारों यानी 6,800भाषाएं हैं। अलग-अलग देशों की अपनी भाषाएं हैं। किन्हीं किन्हीं देशों में तो हजारों भाषाएं हैं और हमारे देश में भी 19,569 बोलियां और बहुत सारी भाषाएं हैं। हर एक देश के लोग अपनी-अपनी भाषाओं का सम्मान करते हैं, उनका गुणगान करते हैं और उन पर अभिमान करते हैं। ऐसे ही हम भी अपने देश की भाषा हिंदी यानी हिंदुस्तानी का सम्मान करते हैं, इस पर गर्व और अभिमान करते हैं। हमें खुशी है कि हम एक ऐसे देश में पैदा हुए, जहां अधिकतर राज्यों में अपनी अपनी भाषाओं के साथ साथ हिंदी भी बोली और समझी जाती है और लगभग पूरे देश में समझी और सुनी जाती है।

      हिंदी की महानता यह है कि हिंदी के नगमें, गाने और गजल सुनकर लोग नाचने गाने लगते हैं। हमारी हिंदी की महानता यह है कि इसको हमारे देश के लगभग ज्यादातर लोग समझते हैं। ऐसा ही एक वाकया 1994 का चेन्नई का है, जब हम वहां एक वकीलों के सम्मेलन में भाग लेने गए। वहां पर आह्वान किया गया कि अगर कोई साथी, कोई वकील, कोई गाना या ग़ज़ल पेश करना चाहता है तो वह कर सकता है। इसके लिए हमने अपने आप को पेश किया और यह क्रांतिकारी गीत वहां पर पेश किया। 

     इस क्रांतिकारी गीत को सुनकर वहां के अधिकांश वकील साथी, इसको गुनगुनाने लगे, हमारे साथ गाने लगे और पूरा का पूरा होल इस गाने पर झूम उठा और वहां पर उपस्थित सारे वकील, इस गाने को हमारी साथ गाने लगे और उन्होंने इसे एक सामूहिक गान बना दिया। हमारी जिंदगी का यह एक अद्भुत और अविश्वसनीय नजारा था। हमने अपनी जिंदगी में इस तरह का अद्भुत नजारा पहले कभी नहीं देखा था। केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा,  बंगाल और उत्तरी भारत के साथी अधिवक्ता तो इसे सुनकर ऐसे भाव विभोर हुए कि उन्हें क्या हीरे मोती मिल गए हैं? हिंदी में लिखा गया यह क्रांतिकारी गीत आज भी अपनी प्रासंगिकता को बनाए हुए हैं और देखिए हिंदी किस क्रांतिकारी रूप में वहां पर पेश हुई,,,,

घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए
जवाब दर सवाल है कि इंकलाब चाहिए
इंकलाब जिंदाबाद, जिंदाबाद इंकलाब।
जहां आवाम के खिलाफ साजिशें हों शान से
जहां पे बेगुनाह हाथ धो रहे हो जान से,
जहां पे लफ्जे अम्न एक खौफनाक राज हो
जहां कबूतरों का सरपरस्त एक बाज हो,
वहां न चुप रहेंगे हम, कहेंगे हां कहेंगे हम
हमारा हक हमारा हक, हमें जनाब चाहिए।
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए
जवाब दर सवाल है कि इंकलाब चाहिए
इंकलाब जिंदाबाद, जिंदाबाद इंकलाब।

और देखिए कि हिंदी कितने सशक्त रूप से हमारे राष्ट्र कवि माखनलाल चतुर्वेदी की कलम से निकलकर हमारे सामने आती है। वे कहते हैं,,,,

मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर तुम देना फैंक,
मातृभूमि पर शीश नवाने
जिस पथ जाएं वीर अनेक।

 और देखिए, कैसे हिंदी भाषा मेहनतकशों की, दुनिया भर के मेहनतकशों की आवाज बनकर हमारे सामने आती है। मास्को में लिखा गया यह क्रांतिकारी अंतरराष्ट्रीय गीत महान शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के लफ्जों में,,,,

हम मेहनतकश जग वालों से
जब अपना हिस्सा मांगेंगे
एक खेत नहीं एक देश नहीं
हम सारी दुनिया मांगेंगे।

और देखिए पाकिस्तानी कवि हबीब जालिब किस तरह से हिंदुस्तानी में अपनी बात कहते हैं और झूठ की बात को नकारते हैं,,,

फूल शाखों पे खेलने लगे तुम कहो
जाम रिंदों को मिलने लगे तुम कहो
चाक सीनों के सिलने लगे तुम कहो
इस खुले झूठ को, जहन की लूट को
मैं नहीं मानता, मैं नहीं मानता।

और जब हिंदी गजल सम्राट दुष्यंत कुमार, अपनी ग़ज़ल को हिंदी में पेश करते हैं तो किस तरह से हिंदी हमारे जन गण मन की भाषा बन जाती है। वर्तमान समय में विश्व प्रसिद्ध गजल का यह और सबसे ज्यादा पढे जाने वाला यह गज़ब का शेर, सड़कों से लेकर सांसद तक में गूंजता है और किसानों, मजदूरों, नौजवानों की सभा शुरू होने से पहले और सभा के अंत में गाया और पढ़ा जाता है। वे कहते हैं,,,,,

हो गई पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए,
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है यह सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में ना सही, तेरे सीने में ही सही
हो कहीं भी , मगर आग जलनी चाहिए।

और देखिए किस तरह से  शायर  रहजनों की पोल खोलते है। वे झूठ को बेनकाब कर देते हैं। शायर हिंदी में कहते हैं कि,,,,

मालो-दौलत ही नहीं, लूट लिए सपने भी
ऐसे तो रहजन भी न थे, जैसे ये रहबर निकले।

 देखिए कवि किस तरह से अपनी बात कहता है और हिंदी अपने बुलंद हौंसलों के साथ और दृढ़ निश्चय के साथ, कविता बनकर हमारे सामने आती है और हमें कुछ करने का जज्बा पैदा करती है,,,,

गंगा की कसम जमुना की कसम
यह ताना बाना बदलेगा,
तू खुद तो बदल तू खुद तो बदल
बदलेगा जमाना बदलेगा।
रवि की रवानी बदलेगी
सतलज का मुहाना बदलेगा,
गर शौक में तेरे जोश रहा
यह जुल्मी जमाना बदलेगा।

और देखिए किस तरह से हिंदी अंधेरों से लड़ने की बात करती है, होली और रमजान बनने की बात करती है, मेलजोल की राह निकालती है और क्रांति का गीत बनकर हमारे सामने आती है। देखिए जरा ,,,,,,

इस अंधकार के मौसम में
हम चंदा तारे दिनमान बनें,
यह मारकाट के आलम में
हम होली और अनजान बनें।

उस माहौल की बात करें
जहां मेलजोल की राह बने,
जन मुक्ति के सपने देखें
हम क्रांति का नवगान बनें।

और देखिए जब हमारी हिंदी समता ममता की बात करती है, आपसी झगड़े छोड़ने की बात करती है, मिलने जुलने की बात करती है और सारे ताने-बाने को बदलने के साथ साथ, पूरे इंकलाब की बात करती है तो वह अद्भुत रूप धारण करके हमारे सामने आती है। आप भी देखिए जरा,,,,

जात धरम के झगड़े छोड़ो
समता ममता की बात करो,
बहुत रहे लिए अलग-थलग अब
मिलने जुलने की बात करो।

सारे ताने-बाने को बदलो
खुद भी बदलने की बात करो,
हारे थके, आधे अधूरे नहीं
पूरे इंकलाब की बात करो।

और देखिए शायर किस तरह से अपनी बात कहता है, अंधविश्वास और धर्मांधता पर और अंधेरों पर किस तरह से गजब की चोट करता है और दुनिया के सबसे बड़ी पहेली की पोल खोलता है, तो तब हिंदी गजब का रूप धारण करके हमारे सामने आती है,,,,,

आसमानों से उतरते हैं पयम्बर ना किताब
आसमानों में कुछ भी नहीं अंधेरों के सिवाय।

 और देखिए जब शायर कहता है कि,,,

मुझ में करोड़ों लोग रहते हैं, मैं चुप नही रह सकता, तो यहां हिंदी क्या गजब का बाना धारण करके हमारे सामने आती है। शायर कहता है कि,,,,
मैं इन नजारों का अंधा तमाशबीन नहीं
मुझ में रहते हैं करोड़ों लोग चुप कैसे रहूं।

 कवि इतने भर से ही चुप नहीं रहता। वह कहता है कि सिर्फ चिल्लाने से इंकलाब नहीं आता और अंधेरों को हमें सूरज बनकर निगलना होता है। देखिए यहां पर हिंदी क्या गजब का रूप धारण करती है,,,,

सिर्फ चिल्लाने से ही नहीं आता है इंकलाब
बाहर को बदलने से पहले भीतर को बदलना होता है,
अंधेरा सिर्फ आवाजों से नहीं भागता
उसे सूरज बनकर निकलना होता है।

 जब हिंदी, हिंदू और मुसलमान की एकता की बात करती है और कोई माने या ना माने तो पूरे हिंदुस्तान की बात करती है, तब वह अद्भुत रूप धारण करके हमारे सामने आती है। देखें जरा,,,,,

मैं आधा हिंदू हूं मैं आधा मुसलमान हूं
कोई माने ना माने, मैं पूरा हिंदुस्तान।

जब हिंदी माताओं, बहनों, बहुओं और देश दुनिया में सबसे खूबसूरत प्राणियों की बात करती है तो वह बेहतरीन लुक में हमारे सामने प्रकट होती है। देखिए इस बारे में हमारी हिंदी क्या कहती है,,,,

हम माताएं हैं, हम शिक्षिकाएं हैं
हम खूबसूरत खूबसूरत प्राणी हैं,
हम बेटियां हैं , हम बहूएं हैं
हम सारी मानवता की जननी हैं
हम खूबसूरत खूबसूरत प्राणी है।

  हमने बहुत सारे लोगों को कहते सुना हैं कि हम क्या कर सकते हैं, हम क्या करें? इसका जवाब हिंदी बहुत बेहतरीन तरीके से हमें देती है और वह इन पंक्तियों के साथ हमें पूरा जीवन दर्शन और हमारे जीवन की दिशा तय कर देती है, जब वह कहती है,,,,,,,

किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार
किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार
किसी का गम मिल सके तो ले उधार
जीना इसी का नाम है जीना इसी का नाम है।

 और जब कवि जमाने को बदलने की बात करता है, हाथों में हाथ लेकर चलने की बात करता है, किसानों और मजदूरों को, पूरी दुनिया को सजाने और संवारने का आह्वान करता है और पूरी दुनिया में लाल परचम फहराने की बात करता है, तो हिंदी क्या असाधारण और अद्भुत रूप धारण करके हमारे सामने आती है। देखिए जरा, कवि हिंदी का बाना धारण करके क्या कहता है,,,,,

करेंगे हम शुरुआत जमाना बदलेगा
होंगे हाथों में हाथ जमाना बदलेगा,
तुम आओ मेरे साथ जमाना बदलेगा
हम हो जाए एक साथ जमाना बदलेगा।
किसान आ, मजदूर आ
दुनिया को संवारने वाले आ,
साथी, दोस्त, सहयोगी आ
इस जग को सजाने वाले आ,
फहरेगा परचम लाल जमाना बदलेगा।

यह बात सही है कि हमने बहुत काफी हद तक विकास किया है मगर आजादी के 75 साल बाद भी हमारे बहुत सारे दुख दर्द, शोषण, जुल्म, अन्याय, गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार अभी भी हमारे समाज को परेशान कर रहे हैं। देखिए हिंदी इस बात को किस तरह से हमारे सामने पेश करती है,,,,,,
ये किसने कह दिया भला सितम के दिन निकल गए रकाब ओ जीन हैं वहीं सवार तो बदल गए
सुना जो आंधियों के देश में चिराग जल गए
वतन फरोश भी वतन के रहनुमा में ढल गए
जिसे न पढ़ सके हो तुम न खुद पे मढ सके हो तुम
बदल के जिल्द आ गए सफे उसी किताब के
भटक न जाएं साथियों कदम ये इंकलाब के
ये इंकलाब के कदम, कदम यह इंकलाब के।

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