Site icon अग्नि आलोक

हिंदू_हिंदुत्व_और_बाबाविश्वनाथ_का_स्वर्ण_शिखर

Share

सुनीलसिंह बघेल

काशी कॉरिडोर अभी चर्चा में है.. और हिंदू और हिंदुत्व के बीच अंतर की बहस भी चर्चा में है।तो आइए क्यों ना काशी विश्वनाथ मंदिर के स्वर्ण मंडित शिखर से जुड़े एक प्रसंग से ही, हिंदू और हिंदुत्व का अंतर समझते हैं.. सिखों के महाराजा रणजीत सिंह का नाम तो आपने सुना ही होगा.. वही शेर ए पंजाब जिनके पास कोहिनूर भी था.. जिसे वे द्वारका मंदिर को दान देना चाहते थे.. वही सिख महाराजा जिन्होंने अंग्रेजों और अफगानों को हराकर विशाल सिख साम्राज्य की नींव डाली। लाहौर को राजधानी बनाया।
अब आते हैं काशी पर ..यह जो काशी विश्वनाथ मंदिर के दो स्वर्ण जड़ित शिखर देख रहे हैं ना, इन पर सोना महाराजा रणजीत सिंह ने ही मढ़वाया था.. सन 1835 में अपनी काशी यात्रा के दौरान उन्होंने 10-20 नहीं बल्कि लगभग 1000 किलो सोना दान दिया था.. उसी दान से स्वर्ण मंडित शिखर, कलश आज भी चमक रहे हैं। हिंदू धर्म के प्रति और कैसा आस्थावान चाहिए..।
यह हिंदू धर्म रक्षक रणजीत सिंह जाट सिख परिवार से आते थे। जी हां वही #सिख जिनको किसान आंदोलन के दौरान लोगों का एक तबका और गोदी मीडिया, लगातार देशद्रोही,आतंकी, खालिस्तानी.. के तमगों से नवाजते रहे। उन्हीं सिखों को, जिनकी सावरकर द्वारा दी गई ‘हिंदू’ की परिभाषा के अनुसार भी देखे तो, पुण्य भूमि ,कर्मभूमि हिंदुस्तान ही है..
खुद के अंदर झांक कर देखिए.. यदि आपको भी कपड़े.. पहनावे..भाषा के आधार पर उन सिखों में,जाटों मे, किसानों में यही सब कुछ नजर आता है तो तय मानिए कि आप हिंदुत्ववादी हैं..
यदि नहीं तो फिर आप भी गर्व से कहिए मैं हिंदू हूं..
याद रखिए कोई हिंदुत्ववादी अपने हिंदू होने का दंभ नहीं भर सकता.. क्योंकि हिंदू या सनातन धर्म तो “सर्वे भवंतू सुखिनः, सर्वे संतु निरामया..” की बात करता है..।
जबकि हिंदुत्ववादी तो, अपने आराध्य सावरकर को भी दरकिनार कर भाषा, कपड़े के रंग, पहनावे के आधार पर तोड़ने की बात करता है..।।

Exit mobile version