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जनता के पक्ष में सर्वोच्च नयायालय का ऐतिहासिक निर्देश

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 मुनेश त्यागी

      पिछले काफी समय से उत्तर प्रदेश में बुल्डोजर राज चल रहा है और भक्तगण इसे बुल्डोजर न्याय की संज्ञा  लगे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार के इस डरावने, पक्षपातपूर्ण और मनमाने रवैए का शिकार, कई  विपक्षी राजनीतिक दलों के लोगों और मुसलमानों को बना जा रहा था। इस जनविरोधी, न्याय विरोधी, संविधान विरोधी, कानून के शासन विरोधी और मानवाधिकारों के विरोधी अभियान ने समाज में, कानून के हलकों में, बेहद बेचैनी, रोस, गुस्सा और खौफ पैदा कर दिया था।

    सरकार के जनविरोधी कदमों और नीतियों की आलोचना करने वाले पत्रकार, कवि, टिप्पणीकार, लेखक और बुद्धिजीवी भी इससे परेशान नजर आने लगे थे। वे भी अपने को डरा डरा और घुटा घुटा और सहमा सहमा महसूस करने लगे थे। जैसे कुछ भी कहने, लिखने, पढ़ने की आजादी का खात्मा हो गया है। योगी की जीत के बाद तो इस प्रकार के कृत्य और तेज गति से किए जाने लगे थे।

     सारी हदें तो तब पार हो हो गईं, जब पिछले दिनों नमाज के बाद की गई पत्थरबाजी के बाद मुस्लिम पक्ष को खास निशाना बनाया गया। मुसलमान आरोपियों को थाने में बेरहमी से क्रूरता और बर्बरता के साथ पीटा गया और देखते ही देखते जावेद मोहम्मद का मकान ढा दिया गया जो कि उसका नहीं था बल्कि उसकी पत्नी को उसके पिता ने गिफ्ट में दिया था।

     इन सारी घटनाओं को शासन प्रशासन और पुलिस द्वारा जानबूझकर कानून के शासन को, संवैधानिक प्रक्रियाओं को और न्याय शास्त्र के बुनियादी और जरुरी सिद्धांतों को ताक पर रखकर किया जा रहा था। इसमें जैसे न्यायपालिका, पुलिस विभाग, कानून के शासन, कानून के प्रावधानों और वकील दलील और अपील, सब को धता बता दिया गया और सरकार मनमानी हरकत और अत्याचारों पर उतर आई।

      सरकार की इन हरकतों को देखकर, वकीलों और सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायमूर्तियों में एकदम  रोष पैदा हो गया। जैसे संविधान, कानून के शासन, न्याय शास्त्र के अनिवार्य प्रावधानों की और मानवाधिकारों की एकदम अनदेखी करके, प्रदेश में असभ्य बर्बर और जंगलराज पैदा हो गया है।

     इस सब के मद्देनजर, सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायमूर्ति बी सुदर्शन रेड्डी, न्यायमूर्ति वी गोपाला गौवड़ा, न्यायमूर्ति ए के गांगुली, दिल्ली उच्च न्यायालय के जज ए पी शाह, मद्रास हाई कोर्ट के जज के चंद्रू, न्यायमूर्ति मोहम्मद अनक और सर्वोच्च न्यायालय के 5 सीनियर वकीलों ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना को एक पत्र लिखकर उपरोक्त अत्याचारों के खिलाफ समुचित निर्देश देने की मांग की।

    पत्र में कहा गया कि प्रदर्शनकारियों को सुनाएं का मौका दिए बगैर उनकी हवालात में पिटाई करना और उनके घरों को ध्वस्त करना न्यायपालिका की परिधि और प्रक्रिया के बाहर है, संविधान की मर्यादा और कानून के शासन का खुलम खुला उल्लंघन है और आरोपियों के मानवाधिकारों का घनघोर उलंघन है।

     भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने उपरोक्त पत्र पर गंभीरता से विचार किया और सुनवाई के लिए दोनों पक्षों को बुला लिया और दोनों पक्षों की दलीलों को विस्तार से और गंभीरतापूर्वक सुना। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से बड़े-बड़े नामचीन अधिवक्ताओं की सेवाएं ली गईं।

     सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की गंभीरता को देख कर, दोनों पक्षों के वकीलों को सुनवाई का समुचित मौका देकर सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को तत्काल निर्देश जारी कर दिया। 16 जून 2022 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार को दिए गए निर्देश में कहा गया है कि “अंतिम रूप से ध्वस्तीकरण की कोई भी कार्यवाही, कानूनी प्रक्रिया पूरी किए बिना नहीं की जाएगी। सब पर कानून का शासन लागू होना चाहिए। गैरकानूनी निर्माण में ध्वस्तीकरण की कार्यवाही को ऐसा नहीं लगना चाहिए कि यह किसी समुदाय विशेष के खिलाफ की जा रही है।”

    ” वे भी समाज के हिस्से हैं।अगर अदालतें नागरिकों के हितों की रक्षा नहीं करतीं, उनकी मदद के लिए आगे नहीं आती तो यह उचित नहीं होगा। सब कुछ निष्पक्ष रुप से होना चाहिए।”

      इस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्देश जनता के लिए एक खुशखबरी बनकर आया है और एक रामबाण सिद्ध हुआ है। इसके बाद सरकार को एक निर्देश ने बहुत सारे बेगुनाह लोगों को बेघर होने से और सरकार के जुल्मों सितम, अत्याचार, पक्षपात और अन्याय से बचा लिया है।

     सर्वोच्च न्यायालय का समय से दिया गया यह निर्देश बहुत सारे निर्दोष आरोपियों की जान बचाएगा और बहुत सारे घरों को ढहाए जाने से बचाया। सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्देश से बुलडोजर के न्याय और बुलडोजर के राज़ पर एकदम रोक लगेगी और बहुत सारे निर्दोष आरोपियों को, सरकार के जुल्मों सितम, अत्याचार और मनमानी हरकतों से राहत मिलेगी।

    आने वाले दिनों में सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्देश एक ऐतिहासिक निर्देश के रूप में देखा और गिना जाएगा और यह मील का पत्थर साबित होगा। यहां पर सरकारी जुल्मों सितम और अत्याचार पर रोक लगाने के लिए भारत का सर्वोच्च न्यायालय बधाई और सम्मान का पात्र है। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश से न्यायपालिका के अन्य जजों की भी आंखें खुलेंगी, उनकी भी नींद टूटेगी, उन्हें भी रहा और दिशा मिलेगी और वे  जनता के हकों, अधिकारों की रक्षा करने के लिए समय से आगे आयेंगे और समय रहते उचित कार्रवाई करेंगे।

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