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सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला…चुनाव और जनतंत्र की हिफाजत का अहम फैसला

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मुनेश त्यागी 

      अपनी पढ़ाई के दौरान और अपने गांव के ग्राम सभा के चुनाव के दौरान हमने एक सपना देखा था कि भारत में शीर्ष से लेकर निचले स्तरों तक के चुनाव निष्पक्ष और ईमानदारी पूर्ण तरीके से होने चाहिएं। जब हम वकालत करने के लिए मेरठ कचहरी में आए और वहां चुनाव का माहौल देखा तो हम भोंचक्के और आश्चर्यचकित रह गए। हमने देखा कि वहां पर हो रहे चुनाव में मतदाता सूची का प्रकाशन समय से नहीं होता, मतदान में गलत तरीके से वोट डाले जाते हैं और गैर मतदाता भी चुनाव में वोट डाले जाते हैं और इसी के साथ-साथ मतगणना में भी काफी गड़बड़ियां मौजूद थीं।

    उन चुनावों में जाति धर्म और पैसे के बल पर धांधली का माहौल था और चुनाव में ईमानदारी और निष्पक्षता का कहीं भी नामोनिशान नहीं था। इसके बाद हमने कचहरी के चुनावों में ईमानदारी और निष्पक्षता लाने के लिए पहल की। हमारे और हमारे अधिवक्ता सदस्यों के प्रयासों से कचहरी में एक निष्पक्ष चुनाव मशीनरी का गठन किया गया, जिसने निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए सबसे पहले फोटो लगी मतदाता सूची का निर्माण किया।

      इस फोटो लगी मतदाता सूची के बनते ही और एक ईमानदार टीम के गठन के बाद, चुनावों में एकदम ईमानदारी और निष्पक्षता आ गई। फोटो लगी मतदाता सूची बनाने का यह सबसे पहला उदाहरण मेरठ कचहरी का है। यह बात नब्बे के दशक की है। इसके बाद से लेकर आज तक मेरठ कचहरी के चुनाव की सूची में, मतदान में और मतगणना में किसी भी प्रकार की कोई गड़बड़ी नहीं है और आज वहां पर एकदम इमानदारी और निष्पक्षता के साथ चुनाव होते हैं।

      भारत में  टीएन शेषण के मुख्य चुनाव अधिकारी बनने के बाद के समय में भी भारत में इसी ईमानदारी और निष्पक्ष चुनाव होने के प्रमाण दिखाई दिए। कुछ वर्षों पूर्व तक भारत में ऐसे ही चुनाव सम्पन्न कराये जाते रहे। मगर पिछले दिनों देखा गया कि भारत के मुख्य चुनाव अधिकारी समेत निचले स्तर तक के चुनावों में काफी गड़बड़ियां पैदा हो गई। वहां ईमानदारी और निष्पक्षता का एकदम अभाव दिखाई देने लगा। जैसे वह सरकार का एक पिछलग्गू ही बनकर रह गया हो। इसी को लेकर पूरे देश भर के मतदाताओं में खलबली और अनिश्चितता की स्थिति बन गई और इसी कारण भारत के बहुत सारे मतदाताओं का चुनाव को लेकर और भारत में जनतंत्र की रक्षा और विस्तार को लेकर  अविश्वास बनता चला गया।

     भारत के अधिकांश लोग आज भी भारत में निष्पक्ष और इमानदार चुनाव होते देखना चाहते हैं। मगर पूंजीपतियों ने, कुछ बेईमान रहनुमाओं ने और उनकी सरकार ने अपने धनबल का प्रयोग करते हुए, भारत की चुनाव प्रणाली को भी पक्षपाती और प्रदूषित कर दिया था। सरकार द्वारा चुना गया मुख्य चुनाव अधिकारी भी अब संदेह के घेरे में आ गया था और इसको लेकर भारत की विभिन्न पार्टियों में यह संदेश पैदा हो गया था कि भारत में निष्पक्ष चुनाव होने बहुत मुश्किल हैं। मगर फिर भी ईमानदार और निष्पक्ष चुनाव का अभियान जारी रहा।

      भारतीय जनता और कई विपक्षी पार्टियों के इन प्रयासों को बल देते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अहम रोल अदा किया है और एक ऐतिहासिक फैसला दिया है। इस फैसले के अनुसार भारत के मुख्य चुनाव अधिकारी को ईमानदार और निष्पक्ष बनाए रखने की बात कही गई है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार अब भारत के मुख्य चुनाव अधिकारी की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी और इसका चुनाव एक कॉलेजियम द्वारा किया जाएगा जिसमें भारत के प्रधानमंत्री, संसद में विपक्ष के नेता और भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शामिल होंगे।

       सच में यह निर्णय बहुत उपयुक्त समय पर आया है और इस निर्णय के आने से अब भारत का मुख्य चुनाव अधिकारी एक निष्पक्ष और ईमानदार चुनाव अधिकारी होगा और यह निष्पक्ष चुनाव अधिकारी भारत के जनतंत्र को और भारत के संविधान के बुनियादी सिद्धांतों को अमल में लाते हुए भारत में एक ईमानदार और निष्पक्ष चुनाव का आगाज करेगा।

      हम अपने चिरसंचित सपनों की रोशनी में उम्मीद करते हैं कि इस ऐतिहासिक फैसले से भारत में उच्च स्तर से लेकर निम्न स्तर तक होने वाले सभी चुनावों में जाति, धर्म और पैसे के आधार पर की जाने वाली हर गड़बड़ी और अनियमितता से छुटकारा पाया जा सकेगा और अब भारत में होने वाले चुनाव निष्पक्ष और ईमानदार होंगे। इससे भारत की चुनाव प्रक्रिया, जनतंत्र और संविधान के बुनियादी मूल्यों को आगे बढ़ाया जा सकेगा।

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