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 *इतिहास सब नोट करता है*

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शशिकांत गुप्ते

आज जब मै सीतारामजी से मिलने गया,तब वे स्वतंत्रता आंदोलन में पत्रकारों की भूमिका पर अध्ययन कर रहे थे।
सीतारामजी ने मुझ से कहा
पत्रकारिता विषय विश्वविद्यालय में पढ़ाया जाता है। “विश्व” शब्द विद्यालय के साथ क्यों जुड़ा है। यहां विश्व का तात्पर्य विद्यालय में जो पढ़ाया जाता है,उसको व्यापक स्तर, मतलब विश्व स्तर के सोच के साथ समझने की कोशिश करना। सोच व्यापक होगा तो स्वार्थपूर्ति की मानसिकता समाप्त हो जाएगी।
यह समझाते हुए,सीतारामजी ने स्वतंत्रता आंदोलन में पत्रकारों की भूमिका के संदर्भ में कहा, तात्कालिक पत्रकार विदेशी हुकूमत के विरोध में साहस के साथ,बेबाक तरीके से,मुखर होकर अपनी कलम चलाते थे।
अनेक पत्रकार जेल भी गए। जेल से छूटकर आने पर पुनः कलम चलाते और जेल जाते थे।
गणेश शकर विद्यार्थीजी ने सांप्रदायिक विद्वेष मिटाने के प्रयास के दौरान अपनी कुर्बानी दी है।
लाला राजपत राय की छाती पर बरतानिया हुकूमत ने बेरहमी से लाठियां चलाईं। लाला राजपत रात नेतृत्व में कई युवा आंदोलन शरीक होकर अंग्रेजों की लाठियां खाई।
स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वालें पत्रकारों की बहुत बड़ी फेरहिस्त है।
राजा राम मोहन राय,भारतेंदु हरिश्चंद्र,लोकमान्य तिलक,आदि।इस फेरहिस्त में ऐसे प्रमुख अनेक नाम है।
स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक अखबार की ऐतिहासिक भूमिका रही है।
1907 में इलाहबाद से प्रकाशित साप्ताहिक स्वराज अखबार का नाम उर्दू सहाफत के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जायेगा। सहाफत का अर्थ होता है,संपादकीय लिखने की महत्वपूर्ण कला।
बाबू शांति नारायण भटनागर स्वराज अखबार के संस्थापक संपादक थे।
यह अखबार जंग-ए-आज़ादी का निडर सिपाही था। जिस दौर में अंग्रेजो के खिलाफ लिखना खतरों को दावत देना था, स्वराज ने सरफरोश सहाफत के जरिए,एक नया इतिहास बनाया था।इस अखबार से जुड़ने का अर्थ सीधा जेल जाना ही था। इस अखबार के एक एक करके सात संपादकों को जेल के सलाखों के पीछे जाना पड़ा था।
इन फौलादी हिम्मत वालें संपादकों के जज्बे और बागी तेवरों में कोई कमी नहीं आई।
सीतारामजी ने इतना लिखा हुआ पढ़ कर मुझे सुनाया और कहा यह तो सिर्फ भूमिका है। स्वतंत्रता आंदोलन में पत्रकारों का बहुत बड़ा इतिहास है।
मैने पूछा आज आप व्यंग्य विधा को छोड़ पत्रकारों के गंभीर इतिहास पर अध्ययन कर रहें हैं,इसकी कोई खास वजह है?
सीतारामजी ने कहा इन दिनों पत्रकारों पर गोदी मीडिया के पत्रकार का आरोप लगाना ही पत्रकारिता पर लज्जास्पद?
सीतारामजी ने कहां विदेशी हुकूमत के विरुद्ध स्वतंत्रता की लड़ाई निर्भीक होकर अपनी कलम चलाने वालें पत्रकार और कहां आज स्वतंत्र भारत में अपने कर्तव्य के प्रति न सिर्फ उदासीनता बल्कि पक्षपात पूर्ण रवैया रखने वाले पत्रकार हैं?
पत्रकार को सजग प्रहरी जैसा होना चाहिए। जिस तरह सजग प्रहरी देश की सरहद पर अपनी पैनी नजर गड़ाए रखता है,दुश्मन के हर एक गतिविधि पर ध्यान केन्द्रित रख कर अपने कर्तव्य का निर्वाह करता है। ठीक इसी तरह पत्रकार को भी जन हित के मुद्दों पर अपनी नजर रखनी चाहिए।
सत्ता से निर्भय होकर देश ज्वलंत समस्याओं पर सवाल करना चाहिए। सत्य का साथ देना चाहिए। पत्रकारों के इतिहास को पढ़ना चाहिए।
सत्ता से सवाल करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि, प्रश्न आमजन की पीड़ा से संबंधित हो न की आम नामक फल को खाने के तरीके के संबंधित हो?
किसी जनप्रतिनिधि से यह पूछने के पूर्व की आप कौनसा शक्ति वर्धक पेय पीते हैं,देश में कुपोषण के शिकार नोनिहालों की चिंता होंगी चाहिए।
इसीतरह अनेक मूलभूत समस्याओं पर प्रश्न उपस्थित करने का दायित्व पत्रकारों पर है।
इतना कहकर सीतारामजी ने कहा आज भी कुछ पत्रकार हैं।
जो अपने कर्तव्य का निर्वाह बहुत ईमानदारी से कर रहें हैं।
वैसे भी इतिहास साक्षी है। हमेशा हर क्षेत्र में क्रांति के लिए अग्रसर रहने वालों की तादाद बहुत कम ही होती है।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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