Site icon अग्नि आलोक

बर्बरता,पशुता की इंतिहा…..

Share

-कृष्ण कांत

फ़ोटो जर्नलिस्ट को सामने लाश दिख गई। वह लाश के ऊपर कूद गया। मुक्के मारे। लात मारी। उछल-उछल कर लाश पर कूदा। न्यूजरूम में लाश नहीं आ सकती तो एंकर अपने शो में आग जला लेता है। तलवार निकाल कर ललकारता है। चीखता है, चिल्लाता है। वह उन्माद प्रसारित करने का हर संभव प्रयास करता है। लाशों पर नाचने वाले बहुत हैं। वे लाशों का इंतजार कर रहे हैं। असम वाले फ़ोटो जर्नलिस्ट को मिल गईं। उसकी बर्बरता अंजाम तक पहुंच गई। उसकी घृणा और पशुता मिश्रित विजय भंगिमा से लग रहा है कि उसका जीवन सफल हो गया। एंकर के जीवन में ऐसी पाशविकता का क्षण अभी नहीं आया है। वह इंसानों को ‘महामारी’ बताकर संतोष कर रहा है।


बर्बरता और वहशीपन पर किसी का एकाधिकार नहीं है। सुरक्षाबलों के संरक्षण में इसे कोई भीड़ भी अंजाम दे सकती है और कोई सफेदपोश भी। विश्वगुरु भारत उन देशों जैसा बन रहा है, जिनसे रोज प्रतियोगिता करते हुए चैनल बहस करते हैं। हमारी प्रतियोगिता अफगानिस्तान, पाकिस्तान, तालिबान, आईएसआईएस से है। आपको ये नया भारत मुबारक हो! आपके विरोध के अधिकार को एक समूह के बर्बरता के अधिकार में बदल दिया गया है।
जो हो रहा है उसे किस तरह कहा जाए? जो दिख रहा है उस बारे में किससे शिकायत की जाए? किसके आगे रोया जाए? मेरा क्षोभ, मेरा दुख, मेरी बात के भी क्या मायने हैं? मायने तो उनकी बात के हैं जो लाखों शहादतों के बाद 70 साल में निर्मित एक लोकतंत्र को निर्ममता से कुचल रहे हैं और न्यू इंडिया के निर्माण का दावा कर रहे हैं।
एक पागल हो चुकी भीड़ का इंतजार कीजिए। अपना दरवाजा खुला रखिए। हर बर्बरता का समर्थन करते रहिए। हम सब शायद ऐसा ही देश चाहते हैं।

       -कृष्ण कांत,सुप्रसिद्ध लेखक,
Exit mobile version