इंदौर
इंदौर के इतिहास के बारे में जब हम बात करते हैं तो सबसे पहले होलकर शासन काल के राजबाड़ा, लालबाग, यहां मौजूद कई प्रकार की छत्रियों का जिक्र होता है। शहर में होलकर काल में पर्यावरण को लेकर भी काफी काम हुए हैं। इंदौर में आज भी ऐसे कई पेड़ मौजूद हैं जो अपने भीतर इतिहास को समेटे हुए हैं। इंदौर को तो पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से बगीचों का शहर कहा था। इंदौर में कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिनका नाम पेड़ों के कारण रखा गया है। जैसे 9 लाख पेड़ होने से नौलखा नाम पड़ा। हालांकि विकास की आंधी में कई पेड़ धराशायी हो गए। अभी भी शहर में कुछ ऐसे पेड़ हैं जो सन् 1857 की क्रांति के गवाह हैं। पर्यावरण दिवस के मौके पर ऐसे ही दो पेड़ों का हम जिक्र करने जा रहे हैं।
केईएच कंपाउंड स्थित नीम का 200 साल पुराना पेड़
डॉक्टर ओपी जोशी की किताब इंदौर शहर के पेड़ में 200 साल पुराने इस नीम के पेड़ का जिक्र है। किताब की माने तो आजादी पाने के लिए देशभर में बड़ी संख्या में लोगों ने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी है। इन्हीं में से एक नाम राजा बख्तावर सिंह और होलकर सेना के तोपची सआदत खां का भी शामिल है। इन्हें शहर में लगे दो पेड़ों पर फांसी दी गई थी। जो आज भी हमारे बीच हैं। प्रदेश के सबसे बड़े महाराजा यशवंत राव चिकित्सालय के पास केईएच कंपाउंड में नीम का 200 साल पुराना पेड़ है।
राजा बख्तावर सिंह और उनके साथियों को इसी नीम के पेड़ पर फांसी दी गई थी।
इस पेड़ पर 10 फरवरी 1858 को सुबह 9 बजे 34 साल के अमझेरा के राजा राणा बख्तावर सिंह राठौर को उनके सहयोगियों (सलकूराम, भवानी सिंह, चिमन लाल, मोहनलाल, मंशाराम, हीरा सिंह, गुलखां, शाह रसूल खां, वशीउल्ला खां, अता मोहम्माद, मुंशी नसरूल्ला तथा नगाड़ावादक फकीर) सहित फांसी दी गई थी। इन लोगों ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857) में भाग लेकर अंग्रेजों का विरोध किया था।
राणा बख्तावर सिंह को अंग्रेजों ने नहाते समय धोखे से पकड़ा और तीन माह तक महू जेल में रखा। बाद में मुकदमा चलाकर फांसी की सजा सुना दी। जनता में डर पैदा करने के लिए इसी नीम के पेड़ पर कई दिनों तक लाशों को लटकाए रखा। राणा बख्तावर सिंह की पत्नी रानी दौलत कुंअर भी अंग्रेजों से लड़ाई के दौरान मारी गई थीं।
रेसीडेंसी कोठी में मौजूद है वटवृक्ष
रेसीडेंसी कोठी परिसर में बरगद का एक प्राचीन वृक्ष है, जिसके पास होल्कर सेना के बहादुर तोपची सआदत खां पर गोलियां बरसाकर मारने का प्रयास किया गया था। तुकोजीराव द्वितीय के शासनकाल के समय 1857 के विद्रोह में सआदत खां ने अंग्रेजों को परेशान कर रखा था। बातचीत के दौरान कर्नल ने कुछ अपशब्द सआदत खां को कहे दिए। इस पर खां ने तत्कालीन अंग्रेजी कर्नल ड्यूरेंड पर गोली चला दी। कर्नल गोली लगने से घायल हो गया।
खां ने अपने सिपाहियों को गोलाबारी के आदेश दिए, जिससे 30 के करीब अंग्रेज मारे गए। बाद में अंग्रेजों ने भी जवानी कार्यवाही कर कुछ हिंदुस्तानी सिपाहियों को मारा और कुछ को गिरफ्तार किया। हालांकि खां उनके हाथ नहीं आए। जनवरी 1874 में उन्हें बदले भेष में झालावाड़ के जंगलों से पकड़कर इंदौर लाया गया। उन पर मुकदमा चलाया गया। सआदत खां द्वारा माफी न मांगने पर 7 सितंबर 1874 को उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। 1 अक्टूबर 1874 को रेसीडेंसी में लगे बरगद के पेड़ पर फांसी दी गई। यह पेड़ आज भी सआदत खां की बहादुरी एवं बलिदान का गवाह है।
रेसीडेंसी कोठी परिसर में मौजूद बरगद वृक्ष।
कौन हैं इंदौर शहर के पेड़ लिखने वाले डॉ. जोशी
डॉक्टर ओपी जोशी गुजराती विज्ञान महाविद्यालय के प्राचार्य रहे हैं। होलकर साइंस कॉलेज से एमएससी की उपाधि लेने वाले डॉ. जोशी अनेक स्थानों पर पर्यावरण के संबंध में 90 से ज्यादा व्याख्यान दे चुके हैं। इसके अलावा 30 शोध पत्र 20 से ज्यादा जर्नल्स भी उनके प्रकाशित हो चुके हैं।