जीवन की जद्दोजहद में हर जगह हारते, घिसटते लोग ‘घर में घुस कर मारने’ वाली बात पर बहुत आह्लादित हो जाते हैं. गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा से वंचित, अच्छे और सस्ते इलाज से वंचित, अच्छे पोषण से वंचित, वाजिब रोजगार से वंचित लोगों की बाहों और छातियों में कितना स्फूरण हो जाता है जब वे सुनते हैं, गौरवान्वित होते हैं, ‘हमारा देश घर में घुस कर मारता है.’कितना सस्ता है ये कथन…’घर में घुस कर मारना’. लेकिन, बेहद महंगे चुनावों में ये सस्ती बात बड़ा असर करती है. अच्छी शिक्षा मिलने लगे लोगों को, तो ऐसी सस्ती बातें असर नहीं कर सकती. इसलिए, यह सुनिश्चित किया जाता है कि सस्ती टिप्पणियों पर तालियां पीटती भीड़ को क्वालिटी शिक्षा नहीं मिले. क्वालिटी शिक्षा नहीं मिलेगी तो सोच में क्वालिटी आनी मुश्किल है. फिर, नेता में क्वालिटी भी क्यों और कैसे खोजें लोग ?
हेमन्त कुमार झा,
एसोसिएट प्रोफेसर, पाटलीपुत्र विश्वविद्यालय, पटना
इधर, रिपोर्ट जारी हुई तो पता चला कि भारत के बेरोजगारों में 83 प्रतिशत युवा बेरोजगार हैं. उधर, प्रधानमंत्री ने एक चुनावी सभा में ललकारते हुए कहा, ‘भारत अब घर में घुस कर मारता है.’ किसको मारता है ? उन्होंने सीधा नाम तो नहीं लिया, लेकिन समझने वाले समझ रहे होंगे. उससे भी बड़ी बात, प्रधानमंत्री ऐसा बोल कर भीड़ के जिस तबके तक जो मैसेज देना चाहते थे, उसमें वे सफल रहे होंगे.
हुआ हुआ की आवाज पर अपना माइंड सेट बनाने वाले लोग…हर दौर में ऐसे लोगों की बहुतायत रही है. आज के दौर में ऐसे लोगों की संख्या प्रतिशत में और अधिक हो गई है. उन्हें बहुत प्रयासपूर्वक ऐसा कूढ़ मगज बनाया गया है. नेता का प्रयास तो मीडिया का अथक प्रयास.
मुद्दा बेरोजगारी है, प्रधानमंत्री मतदाताओं को समझा रहे थे कि भारत पड़ोसी को घर में घुस कर मारता है. हालांकि, सब जानते हैं अपने से कमजोर पड़ोसी को. जो पड़ोसी हमसे मजबूत है और गाहे बगाहे हमारी बाहें ऐंठ देता है, उसके बारे में तो हमारे विदेश मंत्री बोल ही चुके हैं, ‘वह हमसे कई गुना बड़ी अर्थव्यवस्था है, हमसे बहुत अधिक शक्तिशाली है, हम उससे कैसे लड़ सकते हैं.’
तो, कमजोर पर धौंस दिखाकर खुद को बहादुर और पराक्रमी दिखाना बेरोजगारी से बेजार हमारे देश में चुनावी जीत का प्रभावी नुस्खा है. मोदी जी को पता है, पिछले चुनाव में जब जीवन से जुड़े जरूरी मुद्दों पर उनसे कुछ बोलते नहीं बन रहा था तो ‘यह मोदी है, यह घर में घुस कर मारता है’, वाला नुस्खा अपना कर उन्होंने अच्छी खासी जीत हासिल की थी.
जीवन की जद्दोजहद में हर जगह हारते, घिसटते लोग ‘घर में घुस कर मारने’ वाली बात पर बहुत आह्लादित हो जाते हैं. गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा से वंचित, अच्छे और सस्ते इलाज से वंचित, अच्छे पोषण से वंचित, वाजिब रोजगार से वंचित लोगों की बाहों और छातियों में कितना स्फूरण हो जाता है जब वे सुनते हैं, गौरवान्वित होते हैं, ‘हमारा देश घर में घुस कर मारता है.’
कितना सस्ता है ये कथन…’घर में घुस कर मारना’. लेकिन, बेहद महंगे चुनावों में ये सस्ती बात बड़ा असर करती है. अच्छी शिक्षा मिलने लगे लोगों को, तो ऐसी सस्ती बातें असर नहीं कर सकती. इसलिए, यह सुनिश्चित किया जाता है कि सस्ती टिप्पणियों पर तालियां पीटती भीड़ को क्वालिटी शिक्षा नहीं मिले. क्वालिटी शिक्षा नहीं मिलेगी तो सोच में क्वालिटी आनी मुश्किल है. फिर, नेता में क्वालिटी भी क्यों और कैसे खोजें लोग ?
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट है कि भारत के पढ़े लिखे युवाओं में बेरोजगारी की दर 65 प्रतिशत से ज्यादा है. क्या फर्क पड़ता है !सूखे चेहरों और धंसे गालों में भी पुरुषार्थ की लाली कुछ देर के लिए छा जाती है जब कानों में नेता की ललकार गूंजती है, ‘घर में घुस कर मारेंगे.’
नरेंद्र मोदी ने राजनीति के मानकों को गिराया है. उन्होंने भारतीय लोकतंत्र में कई मानकों के ह्रास के अध्याय रचे हैं. वे इसके लिए जिम्मेवार ठहराए जाएंगे कि अपने दौर की राजनीति को और मतदाताओं को उन्होंने स्तरहीनता की ओर धकेला है.
तभी तो, जब मोदी जी ने एक बार चुनावी सभा में लोगों के कपड़ों से उनकी पहचान की बातें की थी तो सामने का जनसमुदाय सन्नाटे में आने के बजाय शोर से भर गया था. वहां सन्नाटा छा जाना चाहिए था. भारत का प्रधानमंत्री आखिर क्या बोल गया ?
लेकिन नहीं. सामने बैठे प्रायोजित लोग ‘मोदी, मोदी’ का शोर मचाते इस सस्ती बात पर भी तालियों की ललकार देने लगे. नेता जनता की चेतना जगाता है. नेहरू ने जगाया था, मोदी ने गिराया है. इतिहास न नेहरू को भूलेगा, न मोदी को माफ करेगा.