डॉ हिदायत अहमद खान
रंगों से जो पूछा मैंने
इतना इतराते हो क्यों
कहने लगे ये सुर्खियाँ
तेरे ही सुर्खुरु हैं
ये बागो-बहार की
रंगत तुझी से हैं
ये हैं गुलाब सुर्ख
तेरे ही गाल से
टेसू हैं रंग लेते
तेरे ही जमाल से
सजती है रंगे हिना
तेरे ही खयाल से
यूं तेरे इशारे पे
दमकते हैं सभी रंग
तेरे तन-बदन से
दमकते हैं सभी रंग
तू रंगों की होली
दुनियाँ में हम सभी
खेले हैं तुझसे होली
और तू रंगों की होली
तू ही बता कैसे
हम रंगीन यूं न हों
तुझ से जो मिली रंगत
उसपर नाज़ क्यूं न हो
बस यूं ही
दिल से भाते हैं
रंग सारे
माँ ने रंग से है
दुनिया को भर दिया
बावस्ता सारी कायनात तुझसे
फिर कैसे न मनाऊं होली
मैं रंगों की होली
मैं रंगों की होली !!!