अग्नि आलोक

पुलिस की मौजूदगी में..धार्मिक पहचान के नाम पर गुंडागर्दी

Share

 हरनाम सिंह

राजनीति में कथनी और करनी में कितना अंतर होना चाहिए ? हालांकि इसका कोई निश्चित पैमाना तो निर्धारित नहीं है, लेकिन जो कहा उसके विपरीत आचरण आज के समय का सच  है।शासक दल के एक बहुचर्चित राजनेता ने प्रचारित झूठ को *जुमला* शब्द से परिभाषित किया तथा उसे गंभीरता से न लेने की बात कही थी। ऐसे ही जुमलो में यह जुमला बहु प्रचारित है कि *अपराधियों का कोई धर्म नहीं होता…* अर्थात धर्म के आधार पर किसी भी व्यक्ति को अपराधी घोषित नहीं किया जा सकता। अथवा यूं भी समझा जा सकता है कि सभी धार्मिक समूहों में अपराधी हो सकते हैं। लेकिन व्यवहार में शासक दल और उसके अनुयाई संगठनों द्वारा देश में एक अल्पसंख्यक धार्मिक समुदाय को पहचान के नाम पर अपराधी प्रचारित करते हुए उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है। यह सब सत्ता के सरंक्षण में हो रहा है इसलिए ऐसे सोच पर गंभीर चिंतन की जरूरत है।

 *गरबा में प्रवेश का अधिकार*

                समाज को विभाजित कर सत्ता पर काबिज बने रहने का फार्मूला कोई नया नहीं है। औपनिवेशिक काल में इसी तरीके से अंग्रेजों ने भारत को धार्मिक आधार पर विभाजित कर अपने शासन को बनाए रखा था। अब इस फार्मूले का उपयोग वर्तमान शासक दल और उसके अनुषांगिक संगठन कर रहे हैं। समाज में संगठित नफरत फैलाई जा रही है। *लव जिहाद* जिसे सर्वोच्च न्यायालय तक फर्जी घोषित कर चुका है, उसी के नाम पर डर दिखाकर नैतिकता के तथाकथित रखवाले अल्पसंख्यक समुदाय को अपराधी बताते हुए उनके खिलाफ घृणा और हिंसा का माहौल बना रहे हैं।

              वर्षों से भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हिंदूवादी संगठन नवरात्रि पर्व के दौरान होने वाले सांस्कृतिक आयोजन गरबा में गैर हिंदुओं के प्रवेश के खिलाफ रहे हैं। आरोप लगाया जाता है कि गैर हिंदू वहां छेड़छाड़ करते हैं। हालांकि गरबा स्थलों पर पुलिस मौजूद होती है। छेड़छाड़ की घटनाओं को रोकने के लिए संपूर्ण संवैधानिक कानूनी तंत्र मौजूद है। बावजूद इसके इन संगठनों के कार्यकर्ता धार्मिक पहचान के नाम पर हिंसा करते हैं, वह भी पुलिस की मौजूदगी में।

 *बयान बनता है आदेश*

                नवरात्रि पर्व प्रारंभ होने के पूर्व हिंदूवादी संगठनों द्वारा बयान जारी कर गरबा प्रांगण में गैर हिंदुओं के प्रवेश को रोकने का ऐलान किया जाता है। यही नहीं ऐसी सूचना गरबा पंडालों के बाहर भी लगा दी जाती है। कुछ वर्ष पहले तक तो पांडाल में प्रवेश के पूर्व यह मानकर तिलक लगाया जाता था कि गैर हिंदू तिलक नहीं लगाएंगे और उससे उनकी पहचान स्पष्ट हो सकेगी। अब ये कार्यकर्ता पांडाल में पहचान पत्र दिखाने के लिए लोगों को विवश करते हैं। हिंदूवादी संगठनों के बयान को पुलिस प्रशासन आदेश मानकर उसके पालन में तत्पर हो जाता है। जबकि वह विधि द्वारा निर्धारित कानूनों के तहत कार्यवाही करने के लिए बाध्य है। कोई भी गैर हिंदू युवक पहचाना जाता है तो फर्जी आरोप लगाकर  उसकी पिटाई की जाती है। बाद में उसे पुलिस गिरफ्तार कर लेती है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि ऐसी पहचान की जांच का अधिकार इन कार्यकर्ताओं को किसने दिया है ? सार्वजनिक रूप से पिटाई करने वालों के खिलाफ पुलिस अपराध पंजीकृत क्यों नहीं करती है ? पीड़ित को ही अपराधी  बताकर उसे क्यों गिरफ्तार किया जाता है ? 

              इन संगठनों द्वारा इंदौर, अहमदाबाद, उज्जैन सहित अनेक शहरों में मारपीट की गई है यही नहीं गरबा संचालकों को धमकाया गया कि वे अपने पंडालों में गैर हिंदुओं के प्रवेश को रोके। भोपाल में एक निजी शिक्षण संस्थान जिसमें गैर हिंदू छात्र भी अध्ययनरत हैं वहां आयोजित गरबे में भी उसी कॉलेज के  मुस्लिम विद्यार्थियों को जाने से रोका गया। जबकि महाविद्यालय प्रबंधन को इस पर कोई एतराज नहीं था।

                विगत 50 वर्षों से इंदौर में गरबा का आयोजन कर रहे “रॉयल गरबा मंडल” के अध्यक्ष सुरेंद्र पुरी और सचिव अभिभाषक राजीव का मानना है कि नवरात्रि उपासना और सामाजिक, सांस्कृतिक एकता का पर्व है। इसमें किसी भी तरह का भेद भाव नहीं होना चाहिए। गरबा  आयोजन में अनेक मुस्लिम धर्मावलंबी स्वयंसेवक के रूप में सहयोग करते हैं। उनका कहना है कि वैसे भी सार्वजनिक स्थलों पर होने वाले गरीबों को देखने से किसी को भी कैसे रोका जा सकता है ? जो संगठन ऐसा कर रहे हैं उन्हें यह नहीं करना चाहिए।

*सुरजनी में था आपसी विवाद*

               मंदसौर जिले के ग्राम सूरजनी में गरबा पांडाल पर पत्थर फेंकने के आरोप में तीन अल्पसंख्यक परिवारों के मकान तोड़ने की घटना को मुस्लिम संगठन जमीअत उलमा ने गंभीरता से लिया है। संगठन के अध्यक्ष हाजी हारून साहब ने घटना की निंदा करते हुए कहा कि आपसी विवाद को इरादतन सांप्रदायिक रंग दिया गया है। उन्होंने इस घटना की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है।

*हिन्दू महिलाओं का अपमान*

              राज्यसभा की पूर्व सदस्य विख्यात वामपंथी नेता वृंदा करात ने एक बयान में कहा कि ब्रिटिश भारत में कई सार्वजनिक स्थानों पर ” भारतीयों के प्रवेश पर प्रतिबंध ” था। गरबा पंडालों के बारे में बाहर केवल ” हिंदुओं के लिए प्रवेश ” का साइन बोर्ड उसी मानसिकता का प्रदर्शन है। गरबा समारोह में हिंदुत्व ब्रिगेड की निजी सेना द्वारा मुस्लिम पुरुषों की पिटाई, एक पूरे समुदाय को लव जिहादियों के रूप में चित्रित करना शर्मनाक है। गरबा कार्यक्रमों में शामिल होने वाली किसी भी महिला द्वारा उत्पीड़न की शिकायत नहीं मिलती है।

              मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ महिलाओं को लुभाने का आरोप हिंदू महिलाओं का भी अपमान है। जिनके बारे में यह मिथ्या धारणा है कि वे दिमाग से कमजोर होती हैं, उन्हें आसानी से बरगलाया जा सकता है। पुलिस ने अबतक मारपीट करने वालों को गिरफ्तार करने के बजाए पीड़ितों को ही गिरफ्तार किया है। कथित अपराध का कोई सबूत नहीं होता इसलिए पुलिस दंड विधान की धारा 151, शांति भंग करने का इस्तेमाल करती है।

              दूसरी ओर इंदौर में ही बिजासन मंदिर क्षेत्र में आयोजित मेले में हिंदूवादी संगठनों द्वारा दुकानदारों के पहचान पत्रों की जांच की गई। गैर हिंदू दुकानदारों को वहां से सामान समेट कर चले जाने के लिए विवश किया गया। कुछ दिन पूर्व ही समाचार सामने आया है कि इस्लाम धर्म को मानने वाले राष्ट्र दुबई में एक विशाल मंदिर का उद्घाटन वहां के शेख ने किया है। क्या हमारे देश के शासक और उनका दल उस छोटे देश की सहिष्णुता से कोई सबक सीखेगा ?

 हरनाम सिंह

Exit mobile version