~ पवन कुमार ‘ज्योतिषाचार्य’
बहुत सी बातो में तथ्य नहीं होता, और बहुत सी बातों में असमानताएँ होती हैं। कैसे? समझिये :
ज्योतिष, या जन्मपत्रिका में दो मुख्य भाग होते हैं: गणित और फलादेश। आपका प्रश्न फलादेश से सम्बंधित है, मेरा भविष्य कैसा होगा, इसी तरह के जीवन से जुड़े सवालों का उत्तर ज्योतिष में ढूँढना।
गणितीय ज्योतिष तथ्यात्मक है और विज्ञानात्मक भी। सारे ग्रह जो सूर्य की परिक्रमा करते हैं उनके वृत्त को ३६० डिग्री/अंश में बांटकर हर राशि को ३० डिग्री दी गयी हैं और पृथ्वी के परिप्रेक्ष्य में सारे ग्रह किस स्थान पर हैं इसके आधार पर उनका गोचर स्थिति अथवा वर्तमान राशि निर्धारित होती है।
प्रत्येक राशि में ९ चरणों की चौड़ाई होती है, और हर नक्षत्र ४ चरण की चौड़ाई लेता है, इस न्याय से हर राशि में लगभग २.२५ नक्षत्र समां सकते हैं। अतः एक नक्षत्र को १३.३ डिग्री की चौड़ाई प्राप्त है। अच्छा डिग्री/अंश से भी छोटी गणना/unit है मिनट, और मिनट से भी छोटी है सेकंड (१ डिग्री = ६० मिनट, १ मिनट = ६० सेकंड). ध्यान रहे की ये यूनिट्स समय की नहीं बल्कि कोण/angle की हैं, यदि पत्रिका में आप ग्रहों की स्थिति को देखेंगे, तो ये उपरोक्त यूनिट्स में ही बताई गयी हैं (लाभ, नवपंचम, षडाष्टक, युति इत्यादि का पता ग्रहों के बीच के डिग्री के अंतर से ही पता लगाया जाता है।
ज्योतिषीय कालगणना के द्वारा आज भी ग्रहणों के स्पर्श, मध्य और मोक्ष का पता लगाया जाता है , जो कि ज्योतिषीय गणित की सटीकता का प्रमाण हैं। तात्पर्य है की यह विश्लेषण सूक्ष्म से सूक्ष्म होते जाता है।
गणित का अपना कोई स्वभाव नहीं होता, २+२ = ४; इसे आप अच्छा या बुरा नहीं कहते, ये बस होता है। लेकिन, २ अंक चंद्र का है और ४ अंक हर्षल(यूरेनस) का है, यहाँ से फलादेश की गाथा शुरू होती है।
गणितीय स्थिति द्वारा जो चित्र प्रस्थापित होता है उसी पर फलादेश दिया जाता है। सारी चिन्ताएं, आकांक्षाएँ और गलतफहमियां यहीं (फलादेश) से चालू होती हैं।
फलादेश में हम अपने लिए इष्ट या अनिष्ट भविष्य की संभावनाओं को पडतालते हैं। माना कि कुछ घटनाएं हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण या कई बार ह्रदय विदारक होती हैं पर हमें यह भी समझना होगा कि कोई भी स्थिति पूरी तरह से इष्ट या अनिष्ट नहीं होती।
फलादेश देते वक्त लोग २ प्रकार से भविष्य का अनुमान लगाते हैं :
१.ज्योतिष सम्बंधित ग्रंथो अथवा शास्त्रों में वर्णित नियमो द्वारा।
२.ज्योतिषी के वर्षों से पत्रिका देखने के स्वानुभव में ध्यान में आई हुई बातों द्वारा।
अधिकांश बार आपको दोनों तरीकों का मिला जुला उत्तर मिलता है। पॉइंट नंबर २ की वजह से ही हमे ज्योतिषियों के वक्तव्य में विविधता नजर आती है। और ज्योतिषी का वक्तव्य ही तो जन्म पत्रिका में लिखा जाता है।
अधिकांश बार आपको दोनों तरीकों का मिला जुला उत्तर मिलता है। पॉइंट नंबर २ की वजह से ही हमे ज्योतिषियों के वक्तव्य में विविधता नजर आती है। और ज्योतिषी का वक्तव्य ही तो जन्म पत्रिका में लिखा जाता है।
*फलादेश संबंधी कुछ अहम पहलू :*
(१).ज्योतिष में ग्रहों का स्वभाव किस आधार पर तय किये गए हैं?
जैसे कि चन्द्रमा को ही मन का कारक, सूर्य को आत्मा का/देह का कारक क्यों बताया गया है, राहु, केतु, मंगल, शनि आदि ग्रहों को पाप ग्रह क्यों कहा जाता है?
(२).नक्षत्र याने की दूरस्थ तारों का समूह, ज्योतिष में नक्षत्राधिपति सौर मंडल के ९ ग्रहों मे से कोई एक होता है। पूछना ये है की हमने ग्रहों और नक्षत्रों में यह सम्बन्ध स्थापित कैसे किया, जबकि दोनों के आकार/स्वभाव में काफी अंतर हैं। ग्रह तारों की परिक्रमा करते हैं, और तारों में ऊष्मा और गुरुत्वाकर्षण बल बहुत प्रचंड मात्रा में होता है। अच्छा, ध्यान देने लायक बात ये भी है कि ये तारे हमसे कई प्रकाश वर्ष दूर हैं।
(३).ज्योतिष की गणना हम नव ग्रहों की वर्तमान/जन्म समय की स्थिति और स्वभाव के आधार पर करते हैं, किन्तु पृथ्वी ग्रह का प्रभाव हम क्यों नहीं देखते हैं ?
(४).यदि ग्रहों के स्वभावजन्य प्रभाव लम्बे समय से बहुत सारी केसेस के अवलोकन के आधार पर गढ़े गए हैं तो हमे यह भी मानना पड़ेगा कि अनुभवों/नियमों के अपवाद होते हैं।
भले ही ज्योतिष में कुछ तार्किक असमानताएं हों फिर भी इस विषय में बहुत कुछ ऐसा है जो अधिकांश लोग नहीं जानते, और मेरे अनुभव में बहुत से ज्योतिषी भी।
अतः १००% खरा भविष्य बता पाना लगभग असंभव है, और कोई बिरला ही होगा जो ऐसा कर सके, और ऐसे लोग सामाजिक तौर पर गुप्त रहना पसंद करते हैं।
भविष्य २ कारकों से तय होता है :
(१).एक, जो हमारे हाथ में हैं।
(२).दूसरे, जो हमारे हाथ में नहीं हैं।
ज्योतिष की आधी अधूरी जानकारी मनुष्य को दुखी या निराशावादी बना सकती है, क्योंकि कोई भी समय पूरी तरह अच्छा या बुरा नहीं होता, चार चाँद बहुत कम बार लग पते हैं। मुझे लगता है कि किसी के भी जीवन में पत्रिका देखने से कहीं अधिक महत्वपूर्ण काम हो सकते हैं।
समय के साथ साथ हमारा भविष्य, मुख्य रूप से हमारे द्वारा लिए गए निर्णयों पर निर्भर करता है। हमारे निर्णय हमारे मस्तिष्क की उपज हैं और मस्तिष्क निर्णय लेने के मामले में बहुत ही लचीला बनाया जा सकता है, अतः निर्णय बदल कर हम भविष्य भी बदल सकते हैं।
एक मानव रूप में हम क्या कर सकते हैं? जो हमारे हाथ में है, उसका सदुपयोग हम पूरी क्षमता के साथ करें ताकि यदि कोई समस्या भी हो तो हम उसे सम्भावना में तब्दील कर पाएं। (चेतना विकास मिशन).