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मध्यप्रदेश: बेरोजगारी का मुद्दा कैसे और कब हल होगा? 

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सतीश भारतीय

दुनिया में किसी भी देश के विकास में बेरोजगारी एक जटिल अवरोध है। दुनिया की सबसे बड़ी आबादी‌ वाले हमारे देश भारत में बेरोजगारी और भी बड़ी चुनौती है। देश के अंदर 49.6 प्रतिशत लोग रोजगार संबंधी कारणों से पलायन करते हैं। वहीं, देश के हदय प्रदेश के रूप में विख्यात मध्यप्रदेश से भी बड़ा पलायन होता है। यहां से 50.9 प्रतिशत लोग रोजगार के लिए पलायन करते हैं। 

बेरोजगारी की वजह से मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों से देश के अलग-अलग हिस्सों में पलायन होता है। प्रदेश के इन जिलों में एक नाम सागर का भी है। सागर प्रदेश का मध्यस्थ क्षेत्र और बुंदेलखंड का अहम हिस्सा है। सागर में काफी पिछड़ापन है। जिसकी प्रमुख वजह है यहां औद्योगिक क्षेत्र का विस्तार ना होना। वहीं सागर के ग्रामीण इलाकों में और भी प्रचंड बेरोजगारी है। जिसकी वजह है संसाधनहीनता या रोजगार के पर्याप्त साधन‌ न होना। 

सागर जिले के कुछ गांव में हमने बेरोजगारी की स्थिति जानने के लिए भ्रमण किया। जब हम सागर शहर से करीब 40 किलोमीटर दूर मिड़वासा गांव है। मुख्य सड़क से यह गांव 2 किलोमीटर दूरी पर बसा है। 

गांव में कुछ लोग हमें आपस में बतियाते दिखते हैं। तब हम उनके पास पहुंचते हैं। अपने बारे में बताते हुए हम बेरोजगारी पर बातचीत शुरू करते हैं। तब हमें ज्ञात होता है कि, गांव की आबादी लगभग 2000 है। 

इस संवाद में रामकृष्ण वासुदेव बताते हैं कि ‘बेरोजगारी की वजह से हालत बहुत खराब है। स्थिति यह है कि गांव में रोजगार ना होने के कारण गांव के करीब 300-400 लोग अन्य शहरों में काम के लिए पलायन कर गये हैं। बाकी जिन लोगों के पास खेती-किसानी है वह अपनी खेती-किसानी कर रहे हैं।

खुद पर बेरोजगारी के असर को लेकर रामकृष्ण कहते हैं कि, ‘मेरे गांव में पानी की बहुत किल्लत है। ऐसे में सालों से सोच रहा हूं कि,‌ घर पर एक हैंडपंप खुदवा‌ लूं‌। ताकि, परिवार और मवेशियों के लिए पानी की कोई समस्या ना हो। मगर, बेरोजगारी से दशा यह है कि इतना पैसा नहीं जुटा पाते कि, एक हैंडपंप खुदवा कर पानी का संकट दूर‌ कर सकें।

आगे हल्लेभाई अपने हालातों की सुनाते हैं। वे कहते हैं कि, ‘मेरे बेटे मनोहर और वीर सिंह दोनों काम के लिए बाहर जाते हैं। उन्हें दूसरे शहर में काम करते हुए 5 साल हो गए हैं।

जब हमने पूछा कि क्या गांव में मनरेगा योजना में काम नहीं मिलता? तब हल्लेभाई कहते हैं कि ‘नहीं मनरेगा योजना में कोई काम नहीं मिलता। मनरेगा में काम मिलता तो क्यों बाहर जाते। जैसे-तैसे आस-पास बेलदारी का काम मिलता भी है तब महीने में 5-10 दिन मिलता है।

हल्लेभाई से जब हम पूछते हैं कि आपके यहां की बेरोजगारी कैसे दूर की जाए? तब वह सुझाव‌ देते हुए कहते हैं कि, ‘गांव के पास और सागर में कहीं भी कोई बड़ी फैक्ट्री नहीं है। जिससे कि काम मिल सके। अगर, फैक्ट्री लगाई जाती है तब यहां काम मिल सकेगा। भले ही पैसा कम मिले पर कोई स्थाई काम मिलेगा।

आगे प्रीतम वासुदेव अपना दर्द बताते हुए कहते हैं कि, ‘गांव में मजदूरी 200-250 रुपए मिलती है। ऐसे में बड़ी मुश्किल से बच्चे पाल पाते हैं। बेरोजगारी के इस दौर में बेटा-बेटियों का क्या होगा समझ नहीं आ रहा। हम तो अपने बच्चे पाल चुके हैं। लेकिन हमारे बच्चों को जब रोजगार नहीं मिलेगा, तब वह अपने बच्चे कैसे पालेंगे? यह सवाल बडा़ कष्टदाई है।

प्रीतम सहित जो लोग हमसे संवाद कर‌ रहे थे, उसे एक युवा दूर से देख रहा था। फिर, वह भी बेरोजगारी पर हो रहे इस संवाद का हिस्सा बनने हमारे पास चला आया।

जब हमने पूछा आपका नाम क्या है। तब युवा बताता है कि, ‘मेरा नाम राम प्रसाद‌ चंदेल है। हमने पूछा आप कहां तक पढ़े हैं और करते क्या हैं? ‘तब राम प्रसाद‌ बताते हैं कि, मैं माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातक हूं। एक साल तक मैंने कई मीडिया समूह में रिपोर्टर का काम किया। इसके बाद‌ अब सिक्योरिटी सर्विस में काम करता हूं।’

जब हमने सवाल‌ किया कि, मीडिया में रिपोर्टिंग करना क्यों छोड़ा? तब राम प्रसाद‌ कहते हैं कि, ‘आज का मीडिया देश‌ के असली मुद्दे और लोगों की  भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहा है। ऐसे में मीडिया में काम करते वक्त मैं अंदर से दुखी रहता था। सोचता था कि, खबरों की दुनिया में मैं आम जन के साथ न्याय नहीं कर पा रहा हूं। तब मैंने मीडिया का काम छोड़ दिया।

जब हमने राम प्रसाद से यह सवाल‌ किया कि बेरोजगारी को‌ लेकर आप क्या सोचते हैं? तब वह कहते हैं कि, ‘बेरोजगारी इतना बड़ा मुद्दा है कि उससे आपका जीवन बहुत प्रभावित हो जाता है। आज का बेरोजगार व्यक्ति समाज में मान-सम्मान, प्रतिष्ठा हासिल नहीं कर पा रहा। वहीं, बेरोजगार को कोई लड़की देने को भी तैयार नहीं है। बेरोजगारी ग़रीबी, भुखमरी, कुपोषण जैसी कई समस्याओं को जन्म देती है।

जब हमने पूछा कि गांव की बेरोजगारी पर आपका क्या ख्याल है? तब राम प्रसाद कहते हैं कि, ‘शहर के मुकाबले गांव में बेरोजगारी अधिक है। शहर में व्यक्ति काम के चलते बहुत व्यस्त रहता है। वहीं, गांव में काम ना मिलने से व्यक्ति इतना फुर्सत होता है कि, अपने परिचितों का काम भी कई बार मुफ्त में या समय बिताने के लिए कर देता है।

राम प्रसाद आगे बताते हैं कि ‘मैं अपना सामाजिक दायित्व निभाते हुए, गांव के कई पढ़ाई छोड़ चुके बेरोजगार युवाओं को  रोजगार दिलाने के लिए इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर जैसे शहरों में ले जाता हूं। यहां पर सिक्योरिटी सर्विस जैसे अन्य क्षेत्रों में काम दिलाता हूं। कुछ समय पहले मैं 15-20 युवाओं को रोजगार दिलाया हूं। मैं निरंतर  प्रयासरत हूं कि गांव और गांव के आसपास के युवाओं को रोजगार दिला सकूं।’

मड़खेरा गांव को पीछे छोड़ते हुए जब हम आगे निकलते हैं तब तकरीबन 8 किलोमीटर चलने पर‌ हमें मिलता है चतुर्भटा गांव। खेती-किसानी से घिरा यह गांव काफी हरा-भरा दिखता है। गांव की आबादी लगभग 4000 होगी। 

गांव की आंगनबाड़ी के पास एक विशाल‌ बरगद का पेड़ हमें दिखता है। इस बरगद के नीचे कुछ लोग चिलचिलाती धूप में छांव का आनंद ले रहे थे। इन लोगों के पास पहुंचकर जब हमने पूछा कि, बड़ी फुर्सत से बैठे हैं आप लोग क्या काम से छुट्टी ले रखी है? 

तब लोकेश लोधी कहते हैं कि, ‘हमारी तो रोज ही छुट्टी चलती है। जितने दिन नौकरी-पेशा‌ वाले लोगों को रविवार और तीज-त्योहार के छुट्टी मिलती है, उतने दिन हमें काम मिलता है।, 

जब हमने पूछा कि क्या गांव में रोजगार के साधन‌ नहीं हैं? तब लोकेश कहते हैं कि, ‘यहां खेती के अलावा कोई रोजगार का साधन नहीं है। गांव से बेरोजगारी के कारण लोग दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, बेंगलुरु जैसे शहरों और‌ राज्यों में रोजगार के लिए जाते हैं। गांव से शहर गये लोगों पर शहरों का दबाव, मंहगाई, कमरे का किराया, बिजली-पानी इतना ज्यादा होता है कि, वह काम छोड़ गांव की ओर वापिस चले आते हैं।’

राजेन्द्र रजक अपने विचार रखते हुए बोलते हैं कि, ‘बेरोजगारी से सबसे ज्यादा खर्च उठाना खल रहा है। वहीं, मंहगाई इतनी बढ़ गयी हैं कि दाल, चावल, आटा,  तेल‌ लेने में हमारी कमर‌ टूट रही है। बेरोजगारी का घाव तब और‌ गहरा हो‌ जाता है जब खाने-पीने का सामान खरीदते वक्त हमारी मुलाकात मंहगाई से होती है।’

राजेन्द्र के बोल‌ थमते हैं कि संतराम बोल‌ पड़ते हैं। वह कहते हैं कि ‘बेरोजगारी से समस्याएं फैलती जा रही हैं। बेरोजगारी  बच्चों को पढ़ाने में बहुत खलल डालती है। अगर, बच्चे पढ़ भी गये, तब रोजगार की चिंता सिर पर होती है। गांव में रोजगार तब ही मिलता है, जब फसलें नींदने, काटने का समय आता है। बाकी समय तो‌ लोग बड़े फुर्सत नजर आते हैं।’

लक्ष्मण एक बुजुर्ग व्यक्ति हैं दुखी स्थिति में कहते हैं कि, ‘आज का दौर मन को बहुत दुखी कर रहा है। जब हम देखते हैं हमारे नाती-पोता फ्री घूम रहे हैं। उनको कोई रोजगार नहीं मिलता। तब लगता है वे अपनी जिंदगी कैसे जियेगें। परिवार कैसे चलाएंगे? हमारे गांव से 1000-1200 लोग बाहर भी जाते हैं काम के लिए। मगर, कईयों को काम नहीं मिलता तब अपने गांव वापस आ जाते हैं।’

इसके आगे हम बातचीत करते हैं भीकम से‌। 29 वर्षीय भीकम पैर से विकलांग है। मगर वह अध्ययनरत हैं। भीकम पढ़े-लिखे युवाओं की हालत बयां करते हुए कहते हैं कि, ‘मैं बीएससी पास हूं। कई साल से प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा हूं।’

भीकम आगे फरमाते हैं कि, ‘जब विद्यार्थी था तब फितूर था कि देश संभालना है। आज बेरोजगार हूं तब लगता खुद को कैसे संभालें? बेरोजगारी की स्थिति में रेलवे, बैंक, पटवारी जैसी कई नौकरी के लिए फार्म भरता जा रहा हूं। लेकिन जिस तरह से देश में पेपरलीक, नौकरियों में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है उससे लगता बेरोजगार ही रह जाएंगे।’

भीकम आगे जिक्र करते हैं कि, ‘शुरुआती शिक्षा से लेकर अब तक परिवार लाखों रुपए पढ़ाई पर खर्च कर चुका है। मगर, मैंने अब तक एक रुपए नहीं कमाया। ऐसे में खुद पर‌ दुख होता है कि, जिंदगी में हम करेगें क्या? आज के पढ़े-लिखे युवा वर्ग का सबसे बड़ा दुख बेरोजगारी है। आज के युवाओं में अध्ययन, समझ की कमीं नहीं है, बस उनके लिए कमीं हैं तो सिर्फ रोजगार की।’

चतुर्भटा गांव से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर बसा है  खमकुआं गांव। ऊंची-नीची जगह पर बसा यह गांव सूखे की स्थिति से प्रभावित नजर आता है। गांव‌ में कमलेश, राजेश सहित कुछ व्यक्तियों से हमारी मुलाकात होती है। जब बेरोजगारी को लेकर‌ हम चर्चा करते हैं। तब  कमलेश जिक्र करते हैं कि, ‘गांव में बहुत से युवा पढ़ाई-लिखाई कर चुके हैं लेकिन सब के सब बेरोजगार हैं। मेरा लड़का भी स्नातक है। मगर्, कोई रोजगार नहीं मिला है। गांव में रोजगार के नाम पर जो मनरेगा योजना होती है उसका काम अब मशीन कर रही हैं।’

आगे कमलेश बोलते हैं कि, ‘एक बेरोजगार व्यक्ति को गरिमापूर्ण जीवन के लिए रोजगार की आवश्यकता है। सरकार को ज्यादा ध्यान रोजगार की तरफ देना‌ चाहिए ताकि बेरोजगार लोग आत्मनिर्भर बन पायें।’ 

आगे राजेश का वक्तव्य कुछ यूं होता है कि, ‘हमारी बेरोजगारी का पहाड़ हमारे बच्चों के ऊपर टूट रहा है। बच्चे को मैंने सोचा एक अच्छे स्कूल में पढाऊं, तब स्कूल में पहले ही 10000 रुपए की मांग की गयी। ऐसे में इतना रूपए मेरे पास नहीं था‌। तब बच्चे का एडमिशन अच्छे स्कूल में नहीं करा पाये।’

राजेश अपनी हालत बताते हुए कहते हैं कि, ‘आज मेरी हालत यह है कि, परिवार में किसी का गंभीर रूप से स्वास्थ्य खराब हो जाये, तब इलाज के लिए घर बेचना पड़ेगा। यह हालात पैदा करने में बेरोजगारी ही शामिल रहेगी।’

प्रहलाद कहते हैं कि, ‘बेरोजगारी की हालत हमें कर्ज में ढुबो कर मानती है। अपनी बेटी की शादी के लिए 3 लाख रुपए का कर्ज हमारे सिर पर है। सोच तो थी कि बेटी शादी में कम खर्च करेगें। मगर अच्छा परिवार ना मिलने से कर्ज लेना पड़ा शादी के लिए। अब कर्ज कैसे चुकाएं यह सवाल हमारे दिलो-दिमाग में बैठा है।’

प्रहलाद की बात सुनते-सुनते राममिलन अपने शब्द सुनाने लगते हैं। वे कहते हैं कि, ‘इस देश के युवाओं को बेरोजगारी से कैसे बचाया जाए? यह कठिन सवाल है। आज युवा को योग्यता के हिसाब से काम नहीं मिल रहा। काम मिल भी रहा है, तब गुलामों जैसा काम करना‌ पड़ रहा है। आज हजार पद के लिए लाख फार्म भरे जा रहे हैं। ऐसे में किस-किस को रोजगार मिलेगा‌?’

राममिलन आगे अपनी बात रखते हुए कहते हैं कि, ‘मैं सरकार विरोधी नहीं हूं। ना ही मुझे सरकार से नफरत है। सरकार देश के विकास को लेकर बहुत से क्षेत्रों में अच्छा काम कर रही है। मगर, बेरोजगारी का हल‌ सरकार नहीं तलाश पा रही है। आज बेरोजगारी से सबसे ज्यादा व्यक्तियों का मानसिक संतुलन बिगड़ रहा है। लोगों की परिवार में कलह बनी हुई है। बेरोजगारी लोगों को नशे के दलदल में ढकेल रही है। ऐसे में इंसान खुश कैसे रहेगा।’

गौर सिंह का कहना है कि, ‘मैं एक पेंटर हूं। आठ साल से बाहर रहता हूं। चार साल इंदौर में काम किया। फिर, चार साल पूना में काम किया। कुछ दिनों से मैं गांव में रह रहा हूं, यहां देखा रहा हूं कि, हर‌ आदमी बेरोजगारी से दुखी है। यहां गांव में रोजगार की कोई सुविधा नहीं है। खासकर मुझे अपने क्षेत्र में तो बिल्कुल काम नहीं मिलता। यदि मुझ जैसे व्यक्ति को‌ गांव में 400-500 रुपए दिन का काम ना मिले, तब मैं क्यों गांव में रहूं?’

गौर सिंह आगे कहते हैं कि, ‘सरकार संसाधनहीन लोगों को उभारने के लिए कोई विशेष रोजगार, लघु उद्योग योजना लाये तब शायद थोड़ी राहत मिल सकती है। यह बेरोजगारी से निजात पाने का एक रास्ता भी हो सकता है।’

बेरोजगारी के मुद्दे को  लेकर देश में एक वोट एक रोजगार अभियान चलाने वाले समाजिक कार्यकर्ता प्रवीण काशी कहते हैं कि, ‘हमारे देश में समृद्धि और तकनीकी बढ़ती जा रही है। लेकिन, इन‌ दोनों ने बेरोजगारी कम करने में कोई मदद नहीं की है। बेऱोजगारी के कई कारण हैं जैसे कि देश में…बेरोजगारी खत्म करने के लिए इच्छा शक्ति की कमी है।’  

प्रवीण आगे कहते हैं कि, ‘हमारा देश तरक्की के मामले में चांद पर जा चुका है। देश के अरबपति दुनियां के अरबपतियों को टक्कर दे रहे हैं। लेकिन, इसी समय युवा बेरोजगारी के कारण आत्मदाह…कर रहे हैं। बेरोजगारी हल‌ करने के लिए रोजगार का मुद्दा कानून बनना चाहिए, ताकि बेरोजगार आत्महत्या ना करें और रोजगार पाने के लिए न्यायपालिका का दरवाजा भी खटखटा सकें।’

एक नजर जब हम बेरोजगारी के आंकड़ों पर डालते हैं, तब फोर्ब्स इंडिया की एक रिपोर्ट में बेरोजगारी के इतिहास का जिक्र हमें मिलता है। फोर्ब्स का डेटा बताता है कि, जनवरी,2024 में बेरोजगारी दर‌ 6.57 प्रतिशत थी। वहीं वर्ष 2023 में 8.003 प्रतिशत रही‌। वर्ष 2022 में बेरोजगारी दर 7.33 प्रतिशत और वर्ष 2021 में 5.98 प्रतिशत थी। जबकि, 2020 में बेरोजगारी दर 8.00 प्रतिशत रही।

ऐसे में वर्तमान वर्ष 2024 से एक दशक पीछे देखा जाए तब  वर्ष 2014 में बेरोजगारी दर 5.44 प्रतिशत थी। इससे भी पीछे देखा जाए तब मालूम होता है कि, 2008 में बेरोजगारी दर 5.41 प्रतिशत रही थी। 

फोर्ब्स इंडिया की रिपोर्ट यह भी बताती है कि, जनवरी 2024 में बेरोजगारी दर पिछले 16 महीनों में सबसे कम रही है। हालांकि, 20 से 30 साल के युवाओं में बेरोजगारी दर में 2023 की अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। 20 से 24 साल के युवाओं में बेरोजगारी दर बढ़कर 44.49 प्रतिशत हो गई थी। 

वहीं, डीडब्ल्यू की एक रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत के कुल बेरोजगारों में 80 फीसदी युवा हैं। ‘द इंडिया इंपलॉयमेंट रिपोर्ट 2024’ के मुताबिक पिछले करीब 20 सालों में भारत में युवाओं के बीच बेरोजगारी लगभग 30 फीसदी बढ़ चुकी है। साल 2000 में युवाओं में बेरोजगारी दर 35.2 फीसदी थी जो 2022 में बढ़कर 65.7 फीसदी हो गई। भारत में बेरोजगारी का आंकड़ा बहुत व्यापक है। देश में 12 करोड़ लोग बेरोजगार हैं। 

जब हम बेरोजगारी की वजह से आत्महत्या का रिकॉर्ड देखते हैं तब डीडब्ल्यू की ही रिपोर्ट में उल्लेख किया जाता है कि, वर्ष 2020 में 3,548 लोगों ने बेरोजगारी के कारण आत्महत्या की। वर्ष 2018 से 2020 के बीच 16,000 से अधिक लोगों ने दिवालिया होने या कर्ज में डूबे होने के कारण आत्महत्या कर ली। जबकि, इसी अवधि में बेरोजगारी के कारण 9,140 लोगों ने अपनी जीवनलीला समाप्त की है। 

बेरोजगारी से लोगों के बदतर हालात देखकर सवाल यह उठता है कि, बेरोजगारी का मुद्दा कैसे और कब हल होगा? युवा वर्ग पढ़ाई-लिखाई करके करेगा क्या?

क्या आने‌ वाले समय में बेरोज़गारी का मुद्दा हल हो पायेगा या फिर, बेरोजगारी से यूं ही लोग अपनी और अपने बच्चों की जिंदगी राख होते देखते रहेगें।

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