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 *मोदी सरकार के सामने कैसे चुनौती बना हुआ है ब्रजभूषण?*

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*यह लेख पुराना है पर आज भी प्रासंगिक है*

*रजनीश भारती*

महिला पहलवानों ने ब्रजभूषण शरण सिंह के खिलाफ यौन शोषण का आरोप लगाया है। न्याय पाने के लिए पहलवान लड़ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की फटकार पर बड़ी मुश्किल से एफआईआर दर्ज हो पाया है मगर सरकार बलात्कार के आरोपी ब्रजभूषण को बचाने में लगी हुई है।

विपक्ष की लगभग सभी पार्टियाँ उत्पीड़ित महिला पहलवानों का समर्थन कर रही हैं। कुछ अपवादों को छोड़कर सारे किसान संगठन, संयुक्त किसान मोर्चा के सभी घटक संगठन महिला पहलवानों के साथ खड़े हैं। देश की कम से कम 90% जनता की सहानुभूति भी महिला पहलवानों के साथ है। यहाँ तक कि भाजपा का एक उपेक्षित गुट अन्दर ही अन्दर महिला पहलवानों के साथ सहानुभूति रखता है फिर भी आरोपी ब्रजभूषण कितना ताकतवर है कि उस एक आदमी को बचाने में पूरी सरकार लगी हुई है, यह कैसा आदमी है? सरकार इसके सामने बौनी क्यों लग रही है? हर मामले में बढ़-चढ़ कर बोलने वाले मोदी ब्रजभूषण मामले में चुप क्यों हैं? 

पाक्सो एक्ट का आरोपी मोदी सरकार के सामने कैसे चुनौती बना हुआ है? वह खुलेआम स्वीकार कर रहा है कि ‘हाँ, मैने एक व्यक्ति की हत्या किया है।’ इसके अलावा वह खुद बता रहा है कि घनश्याम शुक्ला की हत्या हो जाने के बाद उसे अटल बिहारी बाजपेयी ने फोन करके पूछा कि “मार दिया?” 

 इतना सब के बावजूद पुलिस की हिम्मत नहीं कि हाथ लगा दे।  कुछ लोग बता रहे हैं कि 10-15 विधानसभा सीटों पर ब्रजभूषण का प्रभाव है और पूरे प्रदेश में उनके स्वजातीय वोटर हैं। इन वोटरों को भाजपा सरकार नाराज नहीं करना चाहती। मगर ये सब सतही बातें हैं। 10-15 विधानसभा सीटों के लिए सरकार पूरे देश में थू-थू नहीं करा सकती। ब्रजभूषण की जाति के लोग भी जाति के नाम पर इतने नीचे नहीं गिर सकते ? मुझे यकीन नहीं होता। मामला कुछ और ही है।

 सरकार मगरूर है या ब्रजभूषण की शक्ति के आगे मजबूर है, क्या सही है? क्या गलत है? इसकी तह में जाने के लिए उक्त सतही बातों को छोड़ कर कुछ तथ्यों की गहराई पर ध्यान देना होगा-

 1- हमारे देश का पूँजीवादी लोकतंत्र संसदीय लोकतंत्र नहीं है। यह संवैधानिक लोकतंत्र है जो काले धन पर टिका हुआ है। मौजूदा सरकार कालेधन की बदौलत जातिवाद, साम्प्रदायिकता का दुष्प्रचार करके, जाति के चौधरियों, छुटभैए नेताओं, गुण्डों, माफियाओं, टेलीविज़न चैनलों समेत सारी प्रमुख पूँजीवादी मीडिया एवं धार्मिक नेताओं तक को खरीद करके जनता को गुमराह करके जनता का वोट लेकर कल, बल, छल, छद्म, धोखा से बनी है। चुनाव आयोग कहता है कि एक संसदीय सीट के चुनाव में एक प्रत्याशी अधिकतम 70 लाख खर्च कर सकता है। इससे अधिक खर्च करने पर उसका जीता हुआ चुनाव भी रद्द हो जाएगा। मगर लोक सभा चुनाव में एक-एक सीट पर बड़ी पूँजीवादी पार्टियों के प्रत्याशी पन्द्रह-बीस करोड़ से अधिक खर्च करते हैं। 20 करोड़ में से 70 लाख तक का तो हिसाब दे सकते हैं मगर शेष 95% से 98% का हिसाब नहीं देते। जिस रकम का हिसाब नहीं दिया जाता उस पर कोई टैक्स भी नहीं दिया जाता वही तो कालाधन है। जो भी पार्टी चुनाव में सबसे ज्यादा काला धन खर्च करती है अक्सर उसी पार्टी की चुनाव में जीत होती है। वही पार्टी किसी न किसी तरीके से अपनी सरकार बना लेती है। हर चुनाव में बड़े पैमाने पर होने वाला कालाधन कहां से आता है। भारत में कालेधन के सबसे बड़े हिस्से पर दाऊद इब्राहिम का नियंत्रण है।

2- कालाधन कहां से आता है? कालाधन सूदखोरी, जमाखोरी, मिलावटखोरी, भ्रष्टाचार… आदि कई तरीकों से बनते हैं, मगर तस्करी मुख्य है। गुजरात में सरकार भाजपा की है। यहाँ कच्छ की खाड़ी के उत्तरी तट पर मुंद्रा पोर्ट है। अदानी पोर्ट्स एंड एसईजेड लिमिटेड द्वारा नियंत्रित इस मुंद्रा पोर्ट पर सितंबर 2021 में 3000 किलोग्राम हेरोइन पकड़ी गई। इसकी कीमत 21000 करोड़ रुपये बताई गयी थी। यह देश में पकड़ी गई अब तक की सबसे बड़ी ड्रग्स सप्लाई मानी जाती है। सन् 2022 मई में 56 किलोग्राम हेरोइन इसी पोर्ट पर मिली, जिसका बाजार मूल्य 500 करोड़ रुपये है और उसी साल 22 जुलाई को फिर 75 किलोग्राम हेरोइन मुंद्रा बंदरगाह पर बरामद की गई, जिसकी कीमत 375 करोड़ रुपये है। 

18 सितंबर 2022 को जानकारी आई कि सूरत और अहमदाबाद की डीआरआई की टीम ने संयुक्त अभियान में मुंद्रा बंदरगाह से 48 करोड़ रुपये की ई-सिगरेट जब्त की है। कुछ दिन पहले भी मुंद्रा पोर्ट पर 85 हजार ई-सिगरेट मिली थी, जिनकी बाजार की कीमत 20 करोड़ बताई गई। ये आंकड़े अकेले मुंद्रा पोर्ट के हैं। देश के नौजवानों की खोपड़ी में अंधविस्वास और उनकी नशों में नशीले पदार्थों का संचार किया जा रहा है। ये तो चन्द आँकड़े हैं जो पकड़ में आ चुके हैं। बाकी जो पकड़ में नहीं आ सके, उसका आँकड़ा बहुत भयावह है, इसका अन्दाजा मुंबई यूनिवर्सिटी की 2019 की एक रिसर्च रिपोर्ट से लगाया जा सकता है- इस रिपोर्ट के अनुसार “75 प्रतिशत युवा 21 साल से पहले नशे का सेवन करता है और इसका आदी हो जाता है। वही 88 प्रतिशत 18 साल या इससे कम उम्र के बच्चे अलग अलग नशा करते पाए गए हैं। खासकर 12 से 16 साल के बच्चे सिगरेट, स्मैक जैसे नशे के आदि होते जा रहे है।” यह आंकड़ा 2023 में घटा नहीं है बल्कि बढ़ा है।

 मुंद्रा बन्दरगाह पर तस्करी का अन्तर्राष्ट्रीय अड्डा दाऊद कनेक्शन के बिना चल ही नहीं सकता। क्योंकि भारत में ड्रग्स की तस्करी के नेटवर्क का सबसे बड़ा डान दाऊद इब्राहिम है। उसके मुकाबले अगर कोई अलग सप्लाई चेन बनाता है तो दाऊद गैंग उसे रास्ते से हटाकर उसकी सप्लाई चेन तोड़ देता है। 

 भारत ही नहीं एशिया के कई देशों में दाऊद का नेटवर्क फैला हुआ है। इतना बड़ा नेटवर्क फिलहाल सीआईए के संरक्षण के बिना संभव नहीं है। क्योंकि चीन, उत्तरकोरिया, वियतनाम, लाओस जैसे कुछ समाजवादी देशों को छोड़कर पूरे एशिया में अमेरिका के सैकड़ों फौजी अड्डे हैं। और सीआईए अमेरिका की खुफिया एजेंसी है। तीसरी दुनिया के देशों के युवाओं को नशे की लत में फँसाने के लिए सीआईए का अन्तर्राष्ट्रीय षडयंत्र चल रहा है। दाऊद गैंग एशिया में सीआईए का सबसे बड़ा सहयोगी है। दाऊद का नेटवर्क ब्रजभूषण शरण सिंह जैसे सामन्तों(बाहुबलियों) के बिना चल नहीं सकता।  ब्रजभूषण शरण सिंह का सम्बन्ध दाऊद गैंग से रहा है अथवा नहीं इसके लिए दूसरे तथ्यों पर ध्यान देना होगा।

3- शायद वह कहानी आपने पढ़ा या सुना होगा कि अरुण गवली गिरोह दाऊद गिरोह के समानान्तर अपना तस्करी का नेटवर्क खड़ा कर रहा था। तब दाऊद और गवली के बीच गैंगवार शुरू हुआ। दाऊद ने गवली के बड़े भाई की हत्या करवा दिया। इसका बदला लेने के लिए गवली ने दाऊद के बहनोई इस्माईल पार्कर की हत्या करवा दिया। इस्माईल पार्कर को मारने जो गवली के गुण्डे आये थे उनको पब्लिक ने पकड़ कर बुरी तरह पीटा पास में ही मौजूद पुलिस स्टेशन पर मौजूद पुलिस को शोरगुल सुनाई दिया तो पुलिस ने वहाँ पहुँच कर गवली के उन गुण्डों को अपनी कस्टडी में ले लिया और जेजे हास्पिटल में भर्ती करवा दिया। 

 दाऊद ने जेजे हास्पिटल में भर्ती गवली के आदमियों को मरवाने के लिए महाराष्ट्र के बाहर से 24 शूटर बुलवाए। जेजे हास्पिटल जेल की तरह सुरक्षित किया गया था। इस सुरक्षा को भेदने के लिए इन शूटरों ने पुलिस की वर्दी पहना और ऊर्जा मंत्री कल्पनाथ राय के पी ए वीरेन्द्र राय ने उनको पुलिस की गाड़ी मुहैया करायी। इस तरह दाऊद के शूटर पुलिस की वर्दी पहनकर जेजे हास्पिटल में घुस कर करीब 500 राउण्ड गोली चलाए थे। गवली के चारों आदमी मारे गये थे।

  ब्रजभूषण सिंह पर आरोप था कि उन्होंने दाऊद इब्राहिम के शूटरों को अपने सरकारी आवास में कई दिन तक छिपाया था। इसके बाद कई दिन तक देहरादून के एक होटल में अपने नाम से कमरा बुक करके उन्हें अपने साथ छिपाये रखा था।

4- जेजे हास्पिटल गोली काण्ड में शामिल दाऊद के शूटरों को शरण देने के मामले में ब्रजभूषण को जेल जाना पड़ा। तब अटल ने ब्रजभूषण को चिट्ठी लिख कर सान्त्वना दिया था कि ‘अच्छे दिन नहीं रहे तो बुरे दिन भी नहीं रहेंगे…सावरकर भी तो जेल गये थे।’ इस तथ्य से ब्रजभूषण, अटल बिहारी बाजपेयी, दाऊद इब्राहिम और सीआईए का कनेक्शन किस तरह का है, इसे समझा जा सकता है और यह आँकलन किया जा सकता है मौजूदा प्रधानमंत्री, गृहमंत्री आदि का अण्डरवर्ल्ड से किस तरह का सम्बन्ध है। कुछ भी हो, अण्डरवर्ल्ड के लोग आपस में बड़े धर्मनिरपेक्ष होते हैं भले ही वे जनता को जनता से लड़ाने के लिए गाय, गोबर, गंगा, गीता, कुरान आदि के नाम पर जनता को जनता से लड़ाते हों।

5- टीना मुनीम, जो अपने समय की मशहूर अदाकारा रही हैं, एक समय संजयदत्त से उनका अफेयर चल रहा था और संजयदत्त की दाऊद इब्राहिम से बड़ी नजदीकी थी। इस तरह टीना मुनीम व दाऊद इब्राहिम के बीच नजदीकी सम्बन्ध था। यह संबंध कितना अंतरंग था यह कह कर हम अपनी बात का स्तर नहीं गिरा सकते। टीना मुनीम की शादी अनिल अंबानी से हुई तो वह आज टीना अंबानी बन गयी हैं। ऐसा लगता है कि दाऊद इब्राहिम के संकेत पर ही टीना की शादी अनिल अम्बानी से हुई थी।  टीना मुनीम और अनिल अंबानी के अफेयर के बाद धीरूभाई अम्बानी की दौलत तेजी से बढ़ती जा रही थी।

 सन् 1990 के दशक में जब धीरू भाई अम्बानी के शेयरों को भारत में कोई नहीं पूछ रहा था तो उनके शेयर मारीशश, दुबई में धड़ल्ले से बिक रहे थे। उस वक्त कुछ अर्थशास्त्रियों में यह चर्चा थी कि दाऊद की काली कमाई से अंबानी के शेयर खरीदे जा रहे हैं। यानी दाऊद अपनी काली कमाई अम्बानी की कम्पनी में घुसा रहा था।

 इस तरह अम्बानी को आगे बढ़ाने में टीना मुनीम, संजयदत्त और दाऊद के बीच जो संबंध रहे हैं, उसकी बड़ी भूमिका है। अडानी को भी आगे बढ़ाने में दाऊद की ही भूमिका है। अडानी से ब्रजभूषण के अच्छे संबन्ध रहे हैं। मोदी जी को अडानी अंबानी ने राजनीति के शिखर पर पहुँचाने में बड़ी भूमिका निभाई है।

अब उपरोक्त सारे तथ्यों को एक दूसरे से अलग करके देखेंगे तो बात एकदम उलझ जाएगी, सच तक नहीं पहुँच सकते। अगर सभी तथ्यों को एक-दूसरे से जोड़ कर देखेंगे तो सच्चाई अपने आप खुल कर सामने आ जाएगी।

लोग कहते हैं कि नरेन्द्र मोदी देश को चला रहे हैं, हम इसे आँख मूँद कर मान लेते हैं मगर यह झूठ है। सच्चाई यह है कि देश नरेन्द्र मोदी नहीं चला रहे हैं। देश तो मेहनतकश मजदूरों-किसानों के श्रम से ही चल रहा है। उपरोक्त तथ्यों एवं आँकड़ों से यह साफ हो जाती है कि नरेन्द्र मोदी देश का संचालन नहीं कर रहे हैं वे तो मजदूरों किसानों को लूटने वाली व्यवस्था को चला रहे हैं। 

 उपरोक्त तथ्यों के आधार पर आप कह सकते हैं कि मेहनतकशों को लूटने वाली मौजूदा सरकार को नरेन्द्र मोदी चला रहे हैं, नरेन्द्र मोदी को अडानी – अम्बानी चला रहे हैं, और अडानी – अम्बानी को दाऊद इब्राहिम चला रहा है, दाऊद इब्राहिम को सीआइए चला रहा है, सीआईए को अमेरिका चला रहा है क्योंकि सीआईए अमेरिका की खुफिया एजेंसी है। इस तरह पूरा देश अमेरिकी साम्राज्यवाद के चँगुल में है। ब्रजभूषण जैसे बाहुबली अमेरिकी साम्राज्यवाद के स्थानीय एजेन्ट हैं।

अत: जब तक अमेरिकी साम्राज्यवाद का संकेत नहीं होगा तब तक ब्रजभूषण को कोई सरकार छू नहीं सकती। चाहे 56 इंच वाले की सरकार हो या बुलडोजर वाले की सरकार हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

*रजनीश भारती*

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