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कितना खतरनाक हो सकता है डॉक्टर गूगल से इलाज कराना

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     ~ डॉ. प्रिया 

सर्च इंजन, सोशल नेटवर्क्स, और स्मार्टफोन, टैबलेट, और लैपटॉप से इंटरनेट की पहुंच ने जानकारी प्राप्त करने और साझा करने के तरीके को पूरी तरह बदल दिया है। 

     लोग अपनी ज्यादातर  समस्याओं के जवाब इंटरनेट पर ढूंढते हैं। उनमें से लगभग 4.5% सवाल स्वास्थ्य से जुड़े होते हैं। इनमें भी कुछ सवाल गंभीर बीमारियों से भी संबंधित होते हैं। 

    यदि इनके लिए आप गलत जानकारी की गिरफ्त में आ जाते हैं, तो यह न केवल उपचार को बाधित करती हैं, बल्कि उसे और भी गंभीर बनाती हैं।

       आप जान तक से हाथ धो बैठते हैं. मेडिकल टर्म में इस स्थिति को साइबरकॉन्ड्रिया कहा जाता है। इसका शिकार व्यक्ति हर बीमारी का उपचार गूगल पर ढूंढ कर खुद करने लगता है।

*हेल्थ पर सर्च बढ़ा रही है साइबरकॉन्ड्रिया :*

      WHO द्वारा COVID-19 महामारी के दौरान “इंफोडेमिक” के रूप में मानी जाने वाली खबरों, सार्वजनिक स्वास्थ्य दिशा-निर्देशों, इन्फोग्राफिक्स, रिसर्च, राय, अफवाहों और मिथ्स  का व्यापक प्रसार देखा गया। इनमें जनता को लाभकारी स्वास्थ्य जानकारी के साथ-साथ गलत सूचनाएं भी परोसी गईं।

      इससे साइबरकॉन्ड्रिया जैसी स्थिति उत्पन्न हुई। साइबरकॉन्ड्रिया का अर्थ उस स्थिति से है जहां बार-बार इंटरनेट पर सर्च करने से स्वास्थ्य संबंधी अत्यधिक चिंता होती है। 

     इसके साथ ही आईडीआईओटी (IDIOT) नामक समस्या भी उभरी। जिसका अर्थ है ‘इंटरनेट से प्राप्त जानकारी जो इलाज में रुकावट डालती है’।

    इसमें मरीज ऑनलाइन गलत जानकारी के आधार पर अपना इलाज बंद कर देते हैं। भारत में ‘हेल्दी इंडियन प्रोजेक्ट’ द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार, तीन में से पांच भारतीय इंटरनेट पर सही स्वास्थ्य जानकारी तक नहीं पहुंच पाते।

    विभिन्न ऐप्स, वेबसाइट्स लिंक से भरे गूगल पर तमाम फ़र्ज़ी लोगों का जमावड़ा है. डिग्रियां भी फेक. 

     अगर यह जानकारी किसी लाइसेंसधारी डॉक्टर द्वारा नहीं दी गई है, तो यह अधूरी या गलत होती है। जिससे गलत निदान, अधूरे इलाज, या खुद से दवाई लेने का खतरा बढ़ता है।

अस्थमा और गलत जानकारी का खतरा :

     दमा या अस्थमा उन बीमारियों में से एक है जो ‘इंफोडेमिक’ के नकारात्मक परिणामों से बुरी तरह प्रभावित होती हैं। इस बीमारी से संबंधित कई मिथक और गलत धारणाएं प्रचलित हैं। कई लोग “अस्थमा” शब्द का उपयोग करने से बचते हैं और इसकी जगह “सांस की तकलीफ,” “दमा,” या “सर्दी-खांसी” जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं।

      ग्लोबल अस्थमा नेटवर्क (GAN) के एक अध्ययन के अनुसार, गंभीर अस्थमा के लक्षणों वाले लगभग 70% लोगों का अस्थमा के रूप में निदान नहीं हो पाता है। 

     भारत में, रेस्पिरेटरी से संबंधित इन्हेल करने वाली दवाओं के बारे में क्लिनिकल गाइडलाइन्स मौजूद हैं।

      जो इन दवाओं को सुरक्षित और प्रभावी मानती हैं। इसके बावजूद भी इनहेलर्स को लेकर कई गलत धारणाएं बनी हुई हैं।

स्टेरॉयड और इनहेलर को लेकर डर :

       कई लोग “स्टेरॉयड” और “इनहेलर्स” को नकारात्मक परिणामों से जोड़ते हैं। उन्हें लगता है कि इससे लत लगने का जोखिम होता है। इसलिए मानते हैं कि केवल गंभीर मामलों में ही इनका उपयोग किया जाना चाहिए।

      इसके अलावा, ऑनलाइन उपलब्ध कई घरेलू उपचार, वैकल्पिक चिकित्सा और गलत सलाह खतरनाक होती हैं। गलत जानकारी का पालन करने से लक्षण बिगड़ते हैं, गलत दवाओं के उपयोग से प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और गंभीर जटिलताओं के इलाज में देरी होती है।

       इसलिए यह ज़रूरी है कि लोग इंटरनेट पर उपलब्ध स्वास्थ्य जानकारी का सही मूल्यांकन करें और लाइसेंसधारी डॉक्टरों से खुलकर परामर्श करें।

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