आज ही का दिन था। साल था 2002। मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में गहमागहमी बढ़ गई थी। देश का सबसे बड़ा बिजनेस टाइकून बिस्तर पर अंतिम सांसें गिन रहा था। इसने दलाल स्ट्रीट की सांसों को भी थाम दिया था। 24 जून 2002 को धीरूभाई अंबानी को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। दूसरा ब्रेनस्ट्रोन पड़ा था उन्हें। इसके पहले 1986 में उन्होंने इसका सामना किया था। इसके बाद उनके दाहिने हाथ को लकवा मार गया था। आखिरकार डॉक्टरों की टीम हार गई। 6 जुलाई को धीरूभाई ने अंतिम सांस ली। धीरूभाई अंबानी से जुड़ी कई कहानियां हैं। ऐसा ही एक किस्सा उनके मायानगरी आने से जुड़ा है। वह सिर्फ 500 रुपये लेकर मुंबई आए थे। इसके बाद उन्होंने अरबों का साम्राज्य खड़ा कर दिया।
धीरूभाई का पूरा नाम धीरजलाल हीराचंद अंबानी था। उनका जन्म 28 दिसंबर 1932 को सौराष्ट्र के जूनागढ़ में हुआ था। पिता स्कूल टीचर थे। घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। धीरूभाई इसे हर हाल में बदल देना चाहते थे। इस जुनून के चलते ही उन्होंनें छोटी उम्र से कारोबार की शुरुआत कर दी थी। उन दिनों तमाम लोग गिरनार पहाड़ी पर तीर्थ के लिए आते थे। इन तीर्थयात्रियों को धीरूभाई भाजिया बेचते थे। वह 10वीं तक ही पढ़ सके।
उम्र करीब 16 साल की होगी। पैसा कमाने के लिए वह अपने भाई रमणिकलाल के पास यमन चले गए थे। यह 1949 की बात है। वहां उन्हें एक पेट्रोल पंप पर नौकरी मिल गई थी। तनख्वाह थी 300 रुपये महीने। धीरूभाई के काम से कंपनी बहुत खुश थी। उन्हें फिलिंग स्टेशन मैनेजर बना दिया गया था। कई साल काम करने के बाद वह 1954 में दोबारा भारत लौट आए। उन्हें मालूम हो गया था कि जो चाहत उन्होंने मन में पाल रखी है वह घर में रहकर पूरी नहीं होगी। लिहाजा, वह मायानगरी मुंबई में लिए रवाना हो गए। उनकी जेब में सिर्फ 500 रुपये थे।
समझ ली थी बाजार की नब्ज
मुंबई पहुंचकर वह अलग-अलग तरह के कारोबारों में हाथ आजमाने लगे। उन्हें बाजार की काफी ज्यादा समझ हो गई थी। धीरूभाई ने पकड़ लिया था कि भारत में पॉलियस्टर की जोरदार मांग है। इसके उलट विदेश में भारतीय मसालों की। इसने उन्हें बड़ा आदमी बनने का आइडिया दिया। अपने चचेरे भाई चंपकलाल दमानी के साथ उन्होंने 1960 में रिलायंस कमर्शियल कॉरपोरेशन की नींव डाली। इसने भारतीय मसालों को विदेश में और विदेश का पॉलियस्टर देश में बेचने शुरू किया। धीरूभाई का पहला ऑफिस एक कमरे में खुला था। मुंबई के मस्जिद बंदर क्षेत्र में नरसीनाथन स्ट्रीट के पास। यह 350 वर्गफुट का एक कमरा था। कमरे में दो मेज, 3 कुर्सी और एक फोन के सिवा कुछ भी नहीं था।
कई बार बदला कंपनी का नाम
सिर्फ 50 हजार की पूंजी और दो हेल्परों के साथ धीरूभाई अंबानी ने अपना बिजनेस शुरू किया था। 2000 में वह देश के सबसे दौलतमंद शख्स बन गए थे। इस तरह पहले रिलायंस का नाम रिलायंस कमर्शियल कॉरपोरेशन था। बाद में इसका नाम बदलकर रिलायंस टेक्सटाइल्स प्राइवेट लिमिटेड किया गया। अंत में कंपनी का नाम रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड रखा गया। धीरूभाई अंबानी को परिवार के साथ रहना ही ज्यादा पसंद था। वह ज्यादा पार्टी वगैरह नहीं करते थे।
बुरे दिनों में महानायक के लिए बढ़ाया था मदद का हाथ
धीरूभाई अंबानी से जुड़ा मानवीय पहलू भी है। इसे बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन उजागर कर चुके हैं। यह उन दिनों की बात है जब वह बेहद बुरे दौर से गुजर रहे थे। कुर्की तक के आदेश आ गए थे। बैंक अकाउंट खाली था। जब इसकी जानकारी धीरूभाई को मिली तो उन्होंने मदद का हाथ बढ़ाया था। यह बात खुद अमिताभ बच्चन ने बताई थी। रिलायंस इंडस्ट्रीज के 40वें स्थापना दिवस पर उन्होंने पूरा किस्सा सुनाया था। यह किस्सा सुनाते-सुनाते अमिताभ बच्चन भावुक हो गए थे। अमिताभ ने बताया था कि एक समय वह दीवालिया हो गए थे। उनकी कंपनी घाटे में चली गई थी। कमाई के सभी जरिये बंद हो गए थे। तब धीरूभाई ने अपने छोटे बेटे अनिल अंबानी को उनके पास भेजा था।
अमिताभ ने बताया था कि अनिल अंबानी उनके बहुत अच्छे दोस्त हैं। धीरूभाई ने उन्हें यह कहकर भेजा था कि उसकी मदद करनी है। उसे कुछ पैसे दे दो। मदद की रकम इतनी थी जिससे अमिताभ बच्चन की सभी मुश्किलें खत्म हो सकती थीं। यह और बात है कि अमिताभ ने बड़ी विनम्रता से यह रकम लेने से मना कर दिया था। लेकिन, वह इस उदारता से भावुक हो गए थे। बाद में अमिताभ की स्थिति सुधर गई। उन्होंने अपने सिर पर चढ़ा पूरा कर्ज उतार दिया था।