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समसामयिक:कैसे बने ‘जीरो वेस्ट’ समाज?

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डॉ. सन्तोष पाटीदार

कचरा संकट अब सिर्फ धरती तक सीमित नहीं, बल्कि अंतरिक्ष तक फैल चुका है। जल, थल, नभ हर जगह मानव निर्मित अपशिष्ट का अंबार लगा है, जिससे पर्यावरण और जैव विविधता पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। इसी को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने 30 मार्च को “अंतर्राष्ट्रीय शून्य अपशिष्ट दिवस” घोषित किया, ताकि कचरा रहित समाज की दिशा में वैश्विक स्तर पर प्रयास तेज़ किए जा सकें। अब सवाल है—कैसे बने ‘जीरो वेस्ट’ समाज?

इंसान की फितरत से गांव शहर ही नहीं जल थल नभ हर कहीं जिधर भी नजर जाए कचरा ही कचरा या अपशिष्ट इसमें जहरीले से लेकर कभी नष्ट नहीं होने वाला मानव निर्मित कचरा   व्याप्त है । यही नहीं अब समूचे ब्रह्मांड  को मानव अपने अपशिष्ट की चपेट में ले रहा है अंतरिक्ष में भी कुछ समय में मानव उत्सर्जित कचरे का संकट खड़ा हो जायेगा। हिमालय जैसा विशाल पर्वत इंसानी कचरे से नहीं बच पाया तो क्या धरती और क्या ब्रह्मांड बचेगा। इसी से उपजी है जीरो वेस्ट की अवधारणा यानी कचरा रहित समाज। कैसे बने कैसे जीरो वेस्ट, कैसे प्रकृति को फिर से बचाया जा सके। इसी को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2 बरस पहले 30 मार्च को जीरो वेस्ट डे के रूप में मनाने का फैसला किया और तभी से 30 मार्च को वर्ल्ड जीरो वेस्ट डे की शुरुआत हुई है।

 बीते दिनों अंतरिक्ष स्टेशन की तस्वीर बता रही थी कि  अंतरिक्ष में मानव निर्मित स्टेशन पर कचरे के ढेर लग रहे है। नतीजे में यह तय है कि कुछ समय बाद पृथ्वी की तरह अंतरिक्ष में भी स्वच्छता मिशन पर अत्यंत महंगे साधन संसाधन और पैसा झोंकना  पड़ेगा। जैसा अभी भारत राष्ट्र में स्वच्छता अभियान का सर्वेक्षण संचालित हो रहा है। सामाजिक व्यवहार में परिवर्तन करने के लिए और स्थानीय निकाय के साथ जनता को मनोवैज्ञानिक तरीके से गंदगी से निकाल कर स्वच्छता की ओर प्रेरित करना स्वच्छता अभियान के उद्देश्य  है।

आधुनिक होने के चक्कर में मानव समाज ने जिसे सिरफिरे तरीके से गंदगी के पहाड़ खड़े करके पूरी पृथ्वी को संकट में डाल दिया अब जान बचाने के लिए महंगे साधन संसाधन और  अरबों   रुपए खर्च करके घर बाजार का कचरा  समेटने के प्रयास किये जा रहे हैं। इससे बड़ा कचरा तो नदियों, तालाब और समुद्र में हर क्षण डाला जा रहा है इसको रोकने नदियों सहित सभी जल स्रोतों को शुद्ध करने के उपचार के उपाय करने में आज की  सरकारें और  दोहरे माप दंड अपनाता हमारा सभ्य सनातन समाज और उसकी विशिष्ट अवतार नुमा सरकारें और उनके जन् प्रतिनिधि तमाम प्रयासों के बाद भी सफल होते नजर नहीं आते क्योंकि आधुनिक विकास पर सवार हमारा समाज और सरकार  विकास के जिस मॉडल पर सवार है, वह कचरे को दोगुना ताकत से उत्सर्जित करने वाला है। कचरे का संकट बना हुआ है। कचरा और इसके कारण नष्ट होता पर्यावरण प्रकृति गांव संस्कृति खेत, खलियान, जंगल, नदियां, समुद्र, तालाब, वनवासी जीवन दर्शन सब कुछ समाप्त होने के प्रकार पर आ गया है या कहे की ला दिया गया है।

अंतर्राष्ट्रीय शून्य अपशिष्ट दिवस वैश्विक अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को मजबूत करने और संधारणीय उपभोग और उत्पादन पैटर्न को बढ़ावा देने के महत्व पर प्रकाश डालता है। दुनिया में हर साल 2 बिलियन टन से अधिक नगरपालिका ठोस अपशिष्ट उत्पन्न होता है और वर्ष 2050 तक इसके दोगुना होने की उम्मीद है, इसका एक बड़ा हिस्सा कुप्रबंधित है। शहरी भारत में हर साल 56 मिलियन टन कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें से 34% लैंडफिल और निपटान की अन्य पारंपरिक प्रथाओं से डायवर्ट किया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय शून्य अपशिष्ट दिवस का उद्देश्य कचरे के इन असंख्य प्रभावों को दुनिया के ध्यान में लाना और प्रदूषण और अपशिष्ट को कम करने के लिए सभी स्तरों पर वैश्विक कार्रवाई को प्रोत्साहित करना है। इससे हम “संधारणीय शहर और समुदाय” और “जिम्मेदार उपभोग और उत्पादन” को प्राप्त करने के एक कदम करीब होंगे।”

वेस्ट कलेक्शन की बात करें, तो विश्वभर में हर साल लगभग 2 बिलियन टन कचरा उत्पन्न होता है। यह कचरा विभिन्न स्रोतों से आता है, जैसे कि घरेलू कचरा, औद्योगिक कचरा, कृषि कचरा और निर्माण कचरा।

कचरा उत्पादन के मामले में, कुछ देशों की स्थिति चिंताजनक है। इनमें से कुछ प्रमुख देश हैं:

कचरा प्रबंधन की चुनौतियां

कचरा प्रबंधन एक बड़ी चुनौती है, खासकर विकासशील देशों में। कचरा प्रबंधन के लिए प्रभावी नीतियों और तकनीकों की आवश्यकता होती है। कुछ प्रमुख चुनौतियां हैं:

कचरा प्रबंधन के लिए कई समाधान हो सकते हैं। कुछ प्रमुख समाधान हैं:

ट्राईबल लाइफ स्टाइल जीरो वेस्ट का एक अच्छा उदाहरण हो सकता है, क्योंकि आदिवासी समुदायों में अक्सर प्रकृति के साथ घनिष्ठ संबंध होता है और वे अपने दैनिक जीवन में संसाधनों का उपयोग करने के लिए अधिक जागरूक होते हैं। आदिवासी समुदायों में अक्सर निम्नलिखित प्रथाएं होती हैं, जो जीरो वेस्ट को बढ़ावा देती हैं:

1. प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण: आदिवासी समुदाय प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करने के लिए जाने जाते हैं।

2. संसाधनों का पुनर्चक्रण: आदिवासी समुदाय संसाधनों का पुनर्चक्रण करने के लिए जाने जाते हैं।

3. कचरे का प्रबंधन: आदिवासी समुदाय कचरे का प्रबंधन करने के लिए जाने जाते हैं।

आदिवासी जीवनशैली के कुछ उदाहरण हैं जो जीरो वेस्ट को बढ़ावा देते हैं:

1. जंगल के आदिवासी: जंगल के आदिवासी अपने दैनिक जीवन में जंगल के संसाधनों का उपयोग करते हैं।

2. ग्रामीण आदिवासी: ग्रामीण आदिवासी अपने दैनिक जीवन में कृषि और पशुपालन के संसाधनों का उपयोग करते हैं।

आदिवासी जीवनशैली जीरो वेस्ट का एक अच्छा उदाहरण हो सकती है, क्योंकि आदिवासी समुदायों में अक्सर प्रकृति के साथ घनिष्ठ संबंध होता है और वे अपने दैनिक जीवन में संसाधनों का उपयोग करने के लिए अधिक जागरूक होते हैं।

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