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कैसी तूने रीत रचि भगवान?

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शशिकांत गुप्ते

एक बिल्ली सड़क किनारे हताश होकर बैठी थी। दूसरी बिल्ली ने पूछा बहन तुम हताश क्यों हो गई हो?
बिल्ली ने कहा मै एक चूहे का पीछा कर रही थी,उसे अपने पंजे में दबोचने ही वाली थी,उसी समय एक आदमी ने रास्ता काट दिया।
दूसरी बिल्ली हँसते हुए बोली, तुम भी इंसानों जैसी अंधश्रद्धा रखती हो? यह शगुन अपशगुन सब इंसानों ने बनाएं हुए भ्रम है।
अंधश्रद्धा के भ्रम में इंसान स्वयं रहता है,और अंधश्रद्धा पर कटाक्ष करने के लिए कहावतों में पशु पक्षियों को प्रतीक बनाता है।
पहली बिल्ली ने कहा हाँ यह तो गम्भीरता से सोचने की बात है।
बहन अपनी शारीरक क्षमता देखों, कहीँ से भी कहीं तक ऐसा सम्भव है कि,कोई भी बिल्ली नो सौ चूहे खा सकती है?
दुनियाभर के पाप मानव करता है, और पाप धोने के लिए तीर्थ स्थान चला जाता है। कहावत में बदनाम बिल्ली को करता है।
संसार में समस्त प्राणियों में मानवों जैसा स्वार्थी अन्य कोई भी प्राणी नहीं है।
दोनों बिल्लियों की बातें सुनकर,मुझे सन 1965 में प्रदर्शित फ़िल्म ऊंचे लोग (नाम में ही व्यंग्य है।) के गीत की पंक्तियां याद आ गई। इस गीत को लिखा है,गीतकार मजरूह सुलतानपुरी ने।
कैसी तूने रीत रचि भगवन
पाप करे पपी भरे पुण्यवान
अजब तेरी दुनिया गज़ब इंसान

मानवों ने अपनी हरएक समस्या के लिए विभिन्न तरह के उपाय खोज रखें हैं।
सबसे सरल उपाय है,अपने पापों को धोने के लिए,पवित्र नदियों में डुबकी लगा लो।
नदियों में तैरना और डुबकी लगाकर नहाने में अंतर है।
तैरना एक कला है। कोरोना महामारी के दौरान तो निर्जीव मानव शरीरों को भी तैरते देखा है। सम्भवतः व्यवस्था ने मृत शरीरों को यह मरणोपरांत पुण्य प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया हो?आस्थावान लोगों के हाथों व्यवस्था हो तो,ऐसा हो सकता है।
ऐसी मान्यता है कि,डुबकी लगाकर नहाने से पाप धुल जातें है।
नहाते समय लोग शरीर पर से कपड़े उतार कर नहाते है। कहावत है, अपने हमाम में सभी …… होतें हैं।
जो दिनभर में चार से आठ बार कपड़े बदलने की क्षमता रखतें हैं, वे शरीर पर वस्त्र धारण कर नदी में डुबकी लगा लेतें होंगे!
सम्भवतः इस क्रिया से शरीर साथ कपड़ों पर लगे दाग भी धूल जातें होंगे?
मै उक्त विचारों में कब खो गया मुझे पता ही नहीं चला। पुनः होश संभालने के बाद मैने देखा दोनों बिल्लियां नदारद हो गई थी।
बिल्लियों की शिकायत भरी व्यथा सुनकर मुझे बिल्ली का प्रतीक के रूप में प्रयोग की हुई एक और कहावत का स्मरण हुआ, जब बिल्ली दूध पीती है,तब अपनी आँखें बंद कर लेती है
यह कहावत तब इस्तेमाल होती है,जब कोई व्यक्ति अपनों को ही धोखा देकर चोरी छिपे किसी गैर कानूनी कार्य को अंजाम देता है।
यह लेख हास्यव्यंग्य के साथ काल्पनिक है। इस लेख में बिल्ली का प्रयोग व्यंग्य के संदर्भ में किया है।
लेखक के लिए यह स्पष्टीकरण देना अनिवार्य है।कारण लेखक को अंत में एक कहावत का और स्मरण हुआ है।
खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचती है

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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